शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

क्या सिंधु-सरस्वती सभ्यता महाभारत कालीन नगर सभ्यता थी ?

                                                                           
सिंधु घाटी सभ्यता के लगभग एक हजार स्थल अब तक खोजे जा चुके हैं. इनमें से अधिकांश स्थल विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के तटों पर मिले हैं. यही कारण है कि अब सिंधुघाटी की सभ्यता को अधिकांश विद्वान सिंधु- सरस्वती सभ्यता कहने लगे हैं.  ये सारे उत्खनन स्थल वास्तव में महाभारत कालीन नगरों, जनपद मुख्यालयों की भौगोलिक स्थितियों के आस पास ही हैं.  
थर्मोल्यूमिनिसेंस विधि से या रेडियो कार्बन विधि से इन उत्खनन स्थलों के अवशेषों की आयु निकालने पर मालूम होता है कि ये ईसा से लगभग 1500 वर्ष पुराने हैं
अनेक साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि महाभारत युद्ध लगभग इसी समय हुआ था. उधर यही समय सिंधु –सरस्वती सभ्यता के अवसान का काल भी है.  लगभग इसी समय से सरस्वती के लुप्त हो जाने के संकेत भी मिलने लगते हैं.
महाभारत का अध्ययन करने पर अनेक ऐसे उद्धरण मिलते हैं जिनका उत्खनन स्थलों से मिले पदार्थों से आश्चर्यजनक साम्य है. उदाहरण के लिए:
1.    शंख की चूड़ियां.
2.    भुने हुए जौ का आटा (सत्तू)
3.    नगर संरचना










1.    शंख की चूड़ियां : हड़प्पा व मोहेंजोदारो में काफी मात्रा में शंख की चूड़ियां मिली हैं.  दफनाए गए स्त्री कंकालों के हाथों में भी ये चूड़ियां पाई गई हैं.
महाभारत के शल्य पर्व में एक ऐसे व्यक्ति का कथन मिलता है जो मूलत: मद्र राज्य की राजधानी शाकल  का निवासी था और किसी कारण कुरु राज्य में रह रहा था. वह कहता है:
शतद्रु कामहं तीर्त्वा तां च रम्यामिरावतीम ।
गत्वां स्वदेशं द्रक्ष्यामिस्थूल शंखा: शुभास्त्रिय: ॥
अर्थात मैं कब सतलज और उस रमणीय रावी नदी को पार करके अपने देश में पहुंच कर शंख की बनी हुई मोटी मोटी चूड़ियां धारण करने वाली वहां की सुंदर स्त्रियों को देखूंगा.

2.    भुने हुए जौ :  हड़प्पा तथा अन्य अनेक स्थलों की खुदाई में  भुने हुए जौ मिले हैं ,जो इस बात के प्रमाण हैं कि उन का मुख्य भोजन जौ था.
3.    नगर संरचना :    सिंधु-सरस्वती सभ्यता के प्राय: सभी नगरों की संरचना एक जैसी पाई गई है. ये नगर त्रिस्तरीय हुआ करते थे:
3.1. एक्रोपोलिस : यह नगर का सबसे ऊंचा मध्य भाग था. इस आयताकार भाग में पूरब पश्चिम  व उत्तर मे दरवाजे होते थे.  इस भाग में बने मकान तीन कमरों या उससे अधिक कमरों के हुआ करते थे. कमरों का आकार भी सबसे बड़ा होता था.
संभवत: इस भाग में राज्य के शासक, नगर के प्रशासक, नगर श्रेष्ठि व अन्य गण्यमान्य व्यक्ति  निवास करते थे.  यह नगर ऊंची दीवार से घिरा होता था.
2. मिडल टाउन  : यह एक्रोपोलिस के बाद , उससे कुछ कम ऊंचा नगर होता था. कमरे दो या फिर तीन  थे. कमरों का आकार एक्रोपोलिस से छोटा होता था. यह नगर भी चहारदीवारी से घिरा होता था. इसकी पूर्वी दीवार पर दो या तीन दरवाजे होते थे. संभवत: इस भाग मे कृषि या व्यापार से जुड़े अपेक्षाकृत संपन्न लोग रहते थे.
3. लोअर टाउन :  यह नगर सबसे बाहर व सबसे कम उंचाई पर था. मकानों मे एक कमरा व एक रसोई घर होता था. यह नगर  दीवारों से घिरा नहीं था. संभवत: इस  भाग  में मजदूर या दस्तकार लोग रहते थे.

इन सभी नगरों में सड़कें सीधी, पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं. नगर में गंदे पानी की निकासी के लिए उत्तम सीवेज व्यवस्था देखने मे आई है.

नगरों का इससे काफी कुछ मिलता जुलता वर्णन महाभारत में द्वारिका नगरी के संदर्भ में मिलता है:

    

महाभारत के शल्य पर्व में भी यह उल्लेख है:
धाना गौड्यासवं पीत्वा गोमांसं लशुनै सह: ।
अपूप मांस वाट्यानां माशिन शीलवर्जित: ॥
अर्थात वे भुने हुए जौ और लहसुन के साथ गोमांस  खाते हैं और गुड़ से बनी हुई मदिरा पीकर मतवाले बने रहते हैं. पुआ मांस और बाटी खाने वाले वाहीक देश के लोग शील और आचार से शून्य हैं.   (क्रमश:) 

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