नक्षत्र तथा राशि आधारित फलादेश

 चारों वेदों मे, रामायण व महाभारत आदि पुरातन ग्रंथों मे बारह राशियों का जिक्र नही आता। केवल नक्षत्रों का उल्लेख है।

नक्षत्र 27 हैंं। एक नक्षत्र पृथ्वी के त्रिविमीय गोलाकार आकाशीय परिधि का 360/27 अर्थात 13.33 अंश होता है जबकि एक राशि 360/12 अर्थात 30 अंश की होती है।
इसीलिए राशियों के आधार पर किया गया फलादेश ज्यादा सटीक नहीं होता। नक्षत्रों के आधार पर किया गया फलादेश राशि के फलादेश से ज्यादा सटीक होता है।
नक्षत्र के भी चार चरण किये गए हैं । इस प्रकार कुल चरण हुए 27*4 अर्थात 108. अत: एक चरण राशिचक्र के 360/108 अर्थात 3.33 अंश को व्यक्त करता है।
नक्षत्र मंडल पृथ्वी से सैकड़ों प्रकाश वर्ष दूर हैं जबकि सूर्य, चंद्र तथा सौर परिवार के सभी ग्रह पृथ्वी से कुछ करोड़ किलोमीटर के भीतर हैं। परिभ्रमण का पथ नक्षत्र तथा ग्रहों का एक ही है।
फलित ज्योतिष के ग्रंथ हमे बताते हैं कि विभिन्न ग्रह विभिन्न नक्षत्रों मे कैसा फल देते हैं। जन्म के समय जो ग्रह किसी नक्षत्र के जितने अंश पर स्थित होता है , गोचर मे उतने ही अंश पर जब वह ग्रह उसी नक्षत्र मे आता है तो अपने भाव के अनुसार उस वर्ष, उस माह, उस सप्ताह मे फल देता है।
हमने यवन देशों की ज्योतिषीय परंपराओं को पिछले कुछ हजार सालों मे काफी हद तक अपनाया है। ताजिक नीलकंठी जैसे ग्रंथ इसके प्रमाण हैं। इस प्रयास मे हमने प्राचीन भारतीय ज्योतिष की सटीकता को खो दिया। भले ही कुछ नए योग आदि हमे मिल गए। किंतु फलित ज्योतिष की जिस सूक्ष्मता के लिए हम वैदिक काल से जाने जाते थे वह हमने खो दी। (क्रमश:)
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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