शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

व्यंग्य-हृदय सम्राट जी का इंटरव्यू


   सुबह का वक्त था। वह लान में बैठे चाय पी रहे थे, और अकेले थे। हमने बिना वक्त खोए, सामने की कुरसी खींची और कहा-

‘आप आजकल सुर्खियों में छाए  रहते हैं। जहां देखिये इश्तिहारों पर आप ही आप नज़र आते हैं। सोचा, आपका इंटरव्यू हम भी अपने समाचार पत्र में छाप दें। इजाजत है?’

इस पर उन्हें हंसी आ गई। हमें लगा जैसे सोडे की बोतल से झाग उठने लगा हो।

तब तक भीतर से चाय आ गई। चाय पीते हुए पहला सवाल दागा-

सवाल-आप मुंबई आए थे अभिनेता बनने, मगर बन बैठे नेता। यह हृदय-परिवर्तन कैसे हुआ ?
जवाब- दरअसल छोटे शहरों में रहने से सोच भी छोटी हो जाती है। पटने में जब तक हम थे तो सोचते थे अभिनेता बहुत बड़ा आदमी होता है। यहां आके जाना अभिनेता से बड़ा नेता होता है। सो नेतागिरी में उतर गए।

सवाल -आपके जीवन का लक्ष्य क्या है?

जवाब -प्रधानमंत्री बनना।

सवाल -ये तो काफी मुश्किल है। क्या आपको लगता है कि ये हो पाएगा ?

जवाब -आप हमें जानते नहीं जनाब। हम बड़ी कुत्ती चीज हैं ?

सवाल -अब तबीयत कैसी है ? पता चला था कि आपकी हृदय-गति एकाएक रूक गई थी और आईसीयू में रखना पड़ा था आपको।

जवाब -अजी हृदय-गति रूके हमारे शुभचिंतकों की। कई रोज़ तक आला कमान के चुनाव क्षेत्र में जगराता करना पड़ा। नींद पूरी नहीं हो रही थी। आप जैसे वेलविशर इंटरव्यू पर इंटरव्यू लिये जा रहे थे। ऊटपटांग सवाल पूछ रहे थे । तभी ये आइडिया दिमाग में आया कि क्यों न हृदयगति रुकने की खबर चलवा दूं ।  बस चलवा दी ! इसके कई फायदे भी हुए। शोहरत मिली। आलाकमान ख़ुद, मिजाज पूछने आया। जनता की सहानुभूति मिली-यानी अपनी औकात पता चली, और नींद पूरी हुई, सो अलग।

सवाल -मगर डाक्टरों ने सलाह दी है कि आप हृदय की शल्य-क्रिया जल्दी से जल्दी करा लें ?

जवाब -वह हमने ही कहलाया था।

सवाल -आपको चिकन-मटन-फिश खाने तथा शराब पीने से मना किया गया है। क्या आप छोड़ सकेंगे?

जवाब -मुफ़्त का माल कहां छोड़ा जाता है?

सवाल -अभी तक आप युवा हृदय सम्राट है। भविष्य में क्या बनना चाहते हैं?

जवाब -ये तो मार्केट की डिमांड तय करेगी। वैसे मैं मुस्लिम हृदय सम्राट बनना पंसद करूगा।

सवाल -इसकी वजह?

जवाब -हम कोई क़दम बेवजह नहीं उठाते। आज नहीं तो कल, आला कमान हमें टिकट ज़रूर देगा। इस इलाके में मुस्लिम वोट काफी हैं। फतवा तो आलाकमान जारी करा ही लेगा। बस सारे वोट अपने हैं।

सवाल -हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मगर किसी वजह से फतवा जारी न हुआ तो?

जवाब -तो क्या? अपने उत्तर भारतीय भाई थोड़े है क्या? उत्तर भारतीय हृदय-सम्राट बन जाऊंगा। बाकी हिंदू तो जनम से हूं ही, हिंदू हृदयसम्राट बन जाऊंगा। हिंदुओं में भी मै यादव हूं, अतः ज़रूरत पड़ी तो यादव हृदयसम्राट भी बन सकता हूं। अब यादव चूंकि अन्य पिछड़ी जातियों मे आ गए हैं, इसलिये अन्य पिछड़ी जाति  हृदयसम्राट बनने का भी स्कोप है। थोड़ी बहुत क़लम भी घिस लेता हूं-‘लेखक-हृदयसम्राटी’ का दावा भी कर सकता हूं। तो भई हरि अंनत हरि कथा अनंता वाली बात है। जंहा जैसा छंद बैठे वहां वैसी कविता। ठीक है न?

सवाल -पहली बार जिस पार्टी ने आपको राज्यसभा में भेजा, वह हिंदुत्व की बात करती थी। आपने भी सदन में जोरदार लेक्चर हिंदुत्व के पक्ष में पिलाया था। आपकी प्रतिभा का लोहा अच्छे-अच्छे मान गए थे। मगर जल्दी ही आपके सुर-ताल बदलने लगे। आप अचानक सेकुलरिज़्म की चालीसा बांचने लगे और अपनी ही पार्टी को कम्युनल कहने लगे। जैसे ही आपको पार्टी से निकाला गया, आप इस बड़े सेकुलर दल में शामिल हो गए। अब आप वही बोलते हैं, जो पार्टी कहना तो खुद चाहती है पर बुलवाना आपके मुंह से चाहती है। वह स्वतंत्र पत्रकार, वह निर्भीक वक्ता अब कहां चला गया?

जवाब -वह पत्रकार, वह निर्भीक वक्ता नहीं-ताश का एक पता था, जिसे खेलकर ही मैंने इस पार्टी में अपनी जगह बनाई थी।

सवाल -अगला पत्ता कौन सा चलेंगे ?  जरा खुलासा कीजिये।

जवाब -कौन बेवकूफ़ होगा, जो अपने पत्ते पहले ही खोल दे? वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां। हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।

सवाल -एक अखबार में छपा था कि आप जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं, क्या ये सच है ?

जवाब -ये सच नहीं है। मै जितना खाता हूं उतना ही गाता हूं। मगर लोग चाहते है कि एक मुट्ठी भात खिलाकर जिंदगी भर गवाते रहें। जब नहीं गाता तो मुझे गद्दार कहते हैं।

सवाल -अगर मालिक गोश्त न खिला सके तो कुत्ते को मालिक बदल लेना चाहिये ?

जवाब -जी हां। फौरन बदलना चाहिये।

सवाल -मगर ऐसे लोगों को मतलबपरस्त कहा जाता है।

जवाब -क्या फ़र्क पड़ता है ? कुत्ते भौंकते रहते हैं, हाथी चलता रहता है। यहां का हिसाब तो सीधा है-इस पार्टी में रहो, उस पार्टी से सौदेबाज़ी करते रहो और जैसे ही बात बने, आगे निकल लो। जरा-सा भी नैतिकता-वैतिकता के चक्कर में पड़े, तो हज़ारों तुम से आगे निकल जाएंगे।

सवाल -जब आपकी ये वाली पार्टी सत्ता में आई थी तो ग़रीब-किसान-मज़दूर बताते हैं बडे़ खुश थे। आपकी पार्टी को वे अपनी पार्टी समझते थे। पर अपने गरीबी हटाने के बदले गरीबों को  ही उठाना शुरू कर दिया। हजारों किसानों ने आत्महत्या की। पर आप उनकी मदद करने का नाटक करते रहे। उनकी चिताओं पर रोटियां सेंकते रहे और अब आपने अच्छे-भले उपजाऊ खेतों को किसानों से ज़बर्दस्ती छीनना शुरू कर दिया है-स्पेशल इकोनामिक जोन्स बनाने के नाम पर। और ये सारे जोन्स है बड़े-बड़े पूंजीपतियों के। गांवो को उजाड़कर अमीरोंं को ज़मीनें औने-पौने दामों में दिलाना-क्या ये अन्याय नहीं है?

जवाब -(मुस्कराकर) आप अख़बारवालों और हम नेताओं में यही फर्क है। अरे पार्टी फंड में करोड़ों का चंदा कौन देते हैं? ये बड़े घराने या फिर ये लुटे-पिटे किसान, जो अपना पेट तक नहीं पाल सकते?

सवाल -मगर हृदय सम्राट जी, इंसानियत का भी कुछ तकाजा  है कि नहीं?

जवाब -इंसानियत गई तेल लेने। अपनी पार्टी का सीधा-सा उसूल है-इस हाथ दे, उस हाथ ले।

सवाल -मगर डेमोक्रेसी में तो अमीर-गरीब सब बराबर हैं। वोट की क़ीमत तो सबकी एक ही है न? गांववाले नाराज हो गए तो आप हारेंगे नही?

जवाब -नहीं हारेंगे।

सवाल -आप इतने यक़ीन से कैसे कह सकते हैं?

जवाब -हम गांवों में ज़्यादातर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन भेजते हैं। इन मशीनों की अदृश्य कार्य प्रणाली पर हमें पक्का यक़ीन रहता है। लोग वोट कहीं भी डालें, फै़सला वही आएगा, जो हम चाहेंगे। फिर हम इन भूखे नंगे किसानों पर सदन का वक्त क्यों बरबाद करें। हमारी मेट्रो, हमारी बिजली, हमारी सड़कें, हमारा पानी सिर्फ उन दौलतवालों के लिए हैं, जो ख़ुद भी अमीर होते जा रहे हैं और हमें भी तंदुरूस्त रखते हैंं।

सवाल -तो फिर डेमोक्रेसी कहां रही? ये तो डेमोक्रेसी के नाम पर धोखा है। विश्वासघात है?
जवाब -सो व्हाट? धोखा कहां नही है? हमने कर दिया तो आसमान क्यों फट पड़ा?

   तभी गेट की तरफ ग़रीब किसानों की भीड़ इकट्ठी होने लगी। एक युवा नेता भीतर आया। हृदय-सम्राट जी के चरण छूकर बोला-बटाटा जी का एसईज़ेड जहां एप्रूव हुआ है-‘वहीं के काश्तकार हैं। आपसे फरियाद करने आये है कि आप हृदय-सम्राट हैं तो आपमें थोड़ी बहुत संवेदना ज़रूर बची होगी। हमें, हमारे गांव को, हमारी ज़मीनों को न उजाड़ा जाए। अगर सरकार को जमीन ही चाहिए तो जंगलात के पास हज़ारों-लाखों एकड़ ज़मीन खाली पड़ी है, उसे आबाद कर लें। पर हमें न उजाड़ें। आदेश दीजिए  क्या करना है ?’

    हृदय सम्राट जी ने थोड़ी देर सोचा और धीरे से कान में कहा-‘गांव में कौमी दंगा भड़का दो। जब तक दोनों फिरके लड़ते रहें, भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही पूरी करा लो।’ युवा नेता ने मुस्कराकर चरण छुए और कहा-‘ऐसा ही होगा।’

    फिर हृदयसम्राट जी भीड़ के पास आए। मुस्कराकर हाथ जोड़े। भीड़ चीख रही थी-‘हमारा नेता कैसा हो, हृदयसम्राट जैसा हो।’ ‘हमारी आवाज़-हृदयसम्राट के साथ’, ‘जीतेगा भई जीतेगा, हिरदयवाला जीतेगा।’

   हृदयसम्राट जी ने भीड़ को शांत करते हुए कहा-भाइयों, आपकी मांग जायज है। विकास किसी को उजाड़ कर नहीं होना चाहिए । मैं आपकी आवाज़ आज-कल में आला-कमान तक पहुंचा दूंगा। अब आप बेफिक्र होकर अपने घर जाएं।

  भीड़ खुशी खुशी लौट गई। हमने हृदयसम्राट ज़ी की आंखों में झांका, हमें लगा-वहां से दो विशालकाय भूखे गिद्ध उड़कर गांव के आकाश पर मंडराने लगे हैं।

    हम भारी पांव घसीटते हुए लौट पड़े अखबार के दफ़्तर की तरफ। दिमाग काम नही कर रहा था कि हृदयसम्राट जी का इंटरव्यू  छापें या रहने दें ?

(समाप्त)


1 टिप्पणी:

  1. वर्रमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य का सचित्र उदाहरण है यह व्यंग्य ...सभी को किसी न किसी जाति का ह्रदय सम्राट बनना है ...आम जनता का ह्रदय सम्राट बनने के लिये आवश्यक कठिन श्रम कौन करे जब किसी वर्ग विशेष का नेता बन कर ही सब आकांक्षाएं व महत्वाकांक्षाएं पूरी हो सकती हैं !

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