शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

लेख- समकालीन वैश्विक राजनीति और अखंड भारत


       इस लेख के शीर्षक मे दो शब्द छिपे हुए हैं।
पहला शब्द है- समकालीन वैश्विक राजनीति । और दूसरा शब्द है अखंड भारत ।

       इन दोनो शब्दों मे  कहीं न कहीं गहरा संबंध है । विश्व पटल पर इस समय जो हलचलें चल रही हैं- उनके मूल मे वर्चस्व की भावना है ।  यह वर्चस्व राजनीतिक भी हो सकता है, आर्थिक भी हो सकता है और धार्मिक भी हो सकता है । भले ही अंतत: ये तीनो वर्चस्व एक दूसरे से भीतर ही भीतर जुड़े हुए हैं।

      इस समय विश्व मे धर्म के आधार पर मनुष्य मुख्यत: तीन हिस्सों मे बंटा हुआ है – ये हैं इसाई, मुसलमान तथा हिंदू । वैसे तो यहूदी भी एक अलग धर्म है, किंतु उसका मूल ग्रंथ ज़ेंदावेस्ता और ऋग्वेद मे अद्भुत समानताएं होने  के कारण हम इसे वैदिक धर्म की एक प्राचीन शाखा मान सकते हैं।  बौद्ध और जैन भी अलग धर्म हैं। सिक्ख संप्रदाय भी स्वयं को अलग धर्म कहता है ।लेकिन बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिक्ख धर्म भारतीय उपमहाद्वीप मे ही पैदा हुए। यहां जो सनातनी या कहिए वैदिक संस्कृति फलफूल रही थी, उसी के विकारों के  फलस्वरूप इन धर्मों का उदय हुआ । इसलिए फिलहाल हम बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्मों को एक व्यापक सनातनी धर्म की अंतर्धाराएं मानते हुए केवल इसाई, मुस्लिम तथा हिंदू धर्म के वर्चस्वों पर बात करेंगे ।  

      इसाई धर्म का मूल ग्रंथ बाइबिल है । उसी के आधार पर इस धर्म के नीति, नियम बनाए गए । इसी तरह मुस्लिम धर्म का मूल ग्रंथ कुरान है । कुरान के आधार पर ही इस्लाम के नीति नियम बनाए गए।

जबकि हिंदू धर्म किसी एक किताब के आधार पर नहीं बना है। वेदों को आधार मानें तो ये चार हैं । शास्त्रों को आधार मानें तो ये छह हैं।  उपनिषदों को आधार मानें तो ये भी 108 हैं। पुराणों को आधार मानें तो ये भी अठारह मुख्य तथा अठारह उप पुराण हैं। महाकाव्यों को आधार मानें तो ये भी मुख्यत: दो हैं।

अत: हिंदू धर्म किसी एक किताब पर सीमित नहीं है। इसमे सभी जीवन दर्शन शामिल हैं । देखा जाय तो इस्लाम का निराकारवाद या एकेश्वर वाद छह शास्त्रों मे से अद्वैत मे निहित है।  इसी प्रकार इसाई धर्म का एकेश्वर किंतु मूर्त रूप वाला, करुणा से परिपूर्ण, अवतारी स्वरूप कुछ हद तक सांख्य दर्शन तथा गीता मे निहित है।

एक समय जब विश्व के ज्यादातर देश ब्रिटिश हुकूमत के आधीन थे- इसाई धर्म खूब फैला। भारतीय उपमहाद्वीप हो या अफ्रीका महाद्वीप, अमेरिका महाद्वीप हो या यूरोप महाद्वीप, प्राय: सभी जगह राजनीतिक संरक्षण मे इसाई धर्म फल फूल रहा था ।  

      किंतु भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विरासत अत्यंत समृद्ध थी अत: चाहे  इस्लाम मानने वाले शासक हों या इसाई धर्म मानने वाले शासक – कोई भी यहां की ज़मीन पर इस्लाम या इसाइयत के बीज नहीं बो  पाए।

      मध्य एशिया मे ही चूंकि इस्लाम का उद्भव हुआ, अत: जाहिर सी बात है कि वहीं इसे ज्यादा फैलना था । मध्य एशिया का अधिकांश भूभाग रेतीला तथा बंजर था। वहां अनाज का उत्पादन बहुत कम था । जिंदा रहने के लिए संघर्ष जरूरी था। अत: इस क्षेत्र मे उत्पन्न हुए धर्मों मे भी मार काट व संवेदनहीनता प्रमुख आधार बन गई। सह अस्तित्व या शांति जैसे विचार यहां नही पनप सके। अनाज की कमी से मांसाहार यहां वैकल्पिक नही बल्कि अनिवार्य भोजन बन गया. जब मांस ही मुख्य भोजन हो तब अहिंसा, संवेदना या करुणा की बात करना तो बेमतलब था । दूसरों को मारकर खुद जिंदा रहना यहां मजबूरी बन गई।

     भौगोलिक कारणों से पैदा हुई वही क्रूरता व कट्टरता वहां की विचारधाराओं मे आना भी स्वाभाविक था । जब ऐसे विचार संकलित होकर पुस्तकाकार हुए तो क्रूरता, हिंसा, नफरत और कबीलाई मानसिकता भी अनजाने अनचाहे ही विचारों के साथ संकलित हो गई ।   नफरत, हिंसा क्रूरता और संकीर्ण मानसिकता बीज की भांति पुस्तकों मे भी आ गए । जब इन पुस्तकों ने धार्मिक ग्रंथों का रूप लेना शुरू किया तो ये नकारात्मक विचार धर्म मे भी आ गए ।

    जहां तक प्रश्न है इसाई धर्म का , तो इसके मूल व्यक्ति ईसा मसीह आजकल के फिलीस्तीन के बेतलहम नामक कस्बे मे पैदा हुए थे। भले ही यह इलाका भी बहुत उपजाऊ तो न था किंतु मक्का की तुलना मे काफी बेहतर था । जलवायु भी मक्का से अच्छी थी।

      दक्षिण मध्य एशिया के बर्बर कबीलों की अपेक्षा इस नई विचारधारा का प्रसार यूरोप के ठंडे प्रदेशों मे अधिक हुआ । भोजन के मांसाहार से इतर विकल्प होने के कारण विचारधारा भी मध्यमार्गी रही। उसमे कुछ स्थान करुणा , अहिंसा, प्रेम और आस्तिकता के लिए भी बचा रह गया। व्यक्ति के मन पर पड़ा यह भौगोलिक प्रभाव  विचारों से होते हुए पुस्तकों मे संकलित हुआ । और पुस्तकों ने जब धर्म ग्रंथों का रूप लिया तो इसाई धर्म मे भी मानवता, प्रेम, करुणा, अवतारवाद आदि सकारात्मक विचारधारा आ गई।

     मध्य एशिया से  निकल कर यह विचारधारा उत्तरी गोलार्ध मे फैल गई । यूरोप क्रिश्चियनिटी मे तब्दील हुआ ।
इसी तर्ज पर मक्का से निकल कर दूसरी विचार धारा दक्षिणी एशिया मे फैल गई । समय के साथ  धीरे धीरे सारे अफ्रीकी महाद्वीप  मे इस्लाम ने जड़ें जमा लीं। फिर पूर्वी एशिया की तरफ भारतीय उपमहाद्वीप से होते हुए सारे मध्यपूर्व एशिया मे यह विचारधारा फैल गई। बर्बरता, आतंक, नरसंहार, लूट खसोट, व्याभिचार आदि नकारात्मक सोच तथा भय और मारकाट के साथ सारे एशिया पर इस विचारधारा का जबरन कब्जा हो गया ।

      अरब के बाहर जितने गुलामों ने भी मारकाट मचाकर नए भूभाग जीते वे सब अरब के खलीफा के मुस्लिम साम्राज्य के ही भाग बनते गए । भारत मे भी सिंध हो या दिल्ली सल्तनत – ये सभी गुलामों या दूसरे सरदारों द्वारा शासित होते हुए भी खलीफा के साम्राज्य के भाग माने जाते थे । यहां तक कि मुगल वंश भी खिलाफत के प्रतिनिधि के तौर पर यहां राज करता रहा  । 

        इसी तरह यूरोप मे भी इसाई धर्म अनेक देशों मे फैला किंतु सभी राजधर्मों की तरह इसका मुख्यालय  वेटिकन सिटी स्थित पोप ही रहा । सभी राज्य पोप के धार्मिक ही नहीं राजनीतिक साम्राज्य के उपनिवेशों की तरह व्यवहार करते थे । 
  
      भारतीय उपमहाद्वीप मे जब इस्लाम धर्म मानने वाले शासक आए तो जाहिर था कि वे यहां भी इस्लाम का प्रचार प्रसार करते। खलीफा के आदेशों का पालन सभी विजित प्रदेशों मे अनिवार्य था। लिहाजा बड़े पैमाने पर मंदिर तोड़े गए। मूर्तियों को तोड़ कर मस्जिदों की सीढ़ियों पर चिनवाया गया। जजिया जैसे टैक्स नॉन मुस्लिमों पर जबरन थोपे गए । भीषण, अमानवीय अत्याचार करके लोगों को इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया गया। यहां के देवी देवताओं तथा युग पुरुषों  जैसे शिव, विष्णु, दुर्गा,  राम, कृष्ण   आदि के मंदिरों को ढहाकर मस्जिदें बना दी गईं।

    जबकि इसाई धर्म के प्रचारकों ने लालच का सहारा लेकर लोगों को इसाइयत की तरफ खींचा। उन्होने धर्मस्थल नहीं तोड़े। जोर जबरदस्ती किसी की जान नही ली। इस्लाम की अपेक्षा इसाइयत इंसानियत के ज़्यादा करीब थी।

     अब बात करते हैं हिंदू धर्म की । जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं कि हिंदुत्व किसी एक किताब पर आधारित धर्म नही था। बल्कि यह प्रकृति के साथ साहचर्य बिठाते हुए जीने की स्वाभाविक शैली थी। इसमे मानव ही नही, पशुओं आदि सभी जीवधारियों के समाजों के साथ मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति थी । इसमे सभी लोगों को अपनी आस्थाओं के साथ किसी भी जीवन दर्शन को अपनाने की खुली छूट थी । ऐसी धार्मिक स्वतंत्रता प्राचीन व मध्य युगीन इतिहास मे और कहीं देखने को नही मिलती ।

     एक बात और । भारतीय उपमहाद्वीप के राजाओं ने पिछले लगभग एक हजार वर्षों मे किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। किसी भी देश पर बलपूर्वक अपनी विचारधारा नही थोपी। मध्यपूर्वी देश जैसे जावा (यव द्वीप) मलाया (मलय द्वीप), म्यांमार (बर्मा या ब्रह्म देश), सुमात्रा , बोर्नियो थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया आदि देशों तक भारतीय संस्कृति का प्रभाव राज धर्म के कारण या तलवार के कारण नहीं बल्कि बौद्धिक स्वीकार्यता के कारण था।

वर्तमान स्थिति :

बताते हैं कि मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों से कहा था कि आते वक्त तुम्हे हिंदुस्तान का राज्य मुसलमानों से मिला था। अत: जाते वक्त भी तुम्हे हिंदुस्तान मुसलमानों को सौंपना चाहिए।

     पता नही अंग्रेज सरकार इस तर्क से कितनी सहमत हुई ? लेकिन धर्म के आधार पर अंग्रेजों ने भारत के दो टुकड़े जरूर कर दिये। भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध प्रांतों पंजाब व बंगाल का विभाजन करके भारत की मानो आत्मा को ही खंडित कर दिया गया । इससे पहले अंग्रेज अफगानिस्तान के रूप मे भारत के महत्वपूर्ण सीमांत को छोड़ चुके थे । बर्मा पर भी उन्होने दावा छोड़ दिया था ।

इस प्रकार अखंड भारतीय उपमहाद्वीप को छिन्न भिन्न करने मे ब्रिटिश शासकों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ।
आज स्थिति यह है कि भारत के मुसलमान इसे मुस्लिम देश बनाना चाहते हैं । इंदिरा जी के जमाने मे मुरादाबाद मे दीवारों पर इश्तिहार चिपके मिले थे जिन पर लिखा था-

हंस के लिया पाकिस्तानछीन के लेंगे हिंदुस्तान आबादी बढ़ने दो ।

 तो आबादी बढ़ाने के पीछे असली मंशा यह है कि लोकतंत्र की कमियों का फायदा उठाते हुए हिंदुस्तान की हुकूमत पर कब्जा किया जाए और फिर इसे भी मलेशिया, इंडोनेशिया, जावा, ब्रुनेई  की तरह मुस्लिम देश घोषित कर दिया जाए ।

इस्लाम मानने वाले लोगों मे ऐसी भावना क्यों है ? जबकि वे सभी हिंदुओं  से पैदा हैं। क्या हुआ अगर आज उनकी आस्था के केंद्र हिंदुस्तान से बाहर मक्का या मदीना मे शिफ्ट हो गए ? खून तो वही है!  जो राम और कृष्ण की रगों मे था !

इसी तरह इसाइयत की आस्था का केंद्र भी पोप का वेटिकन शहर है । फिर हिंदुस्तान की सर ज़मीं से उन्हे कैसे लगाव हो सकता है ?

मध्य एशिया मे अभी हाल ही मे आइएस नामका जो जो संगठन उभरा है उसका मकसद भी सारी दुनिया को इस्लामी साम्राज्य बनाना है । मतलब कि उनकी धार्मिक विचारधारा से जो भी लोग अलग हैं वे सब काफिर हैं। और काफिरों को तो जिंदा रहने का कोई हक ही नहीं है ।

तो भारत मे ऐसी कट्टर विचारधाराएं नहीं टिक सकतीं। क्यों कि यहां का आदमी धार्मिक रूप से सबसे ज़्यादा आज़ाद रहा है। वह बंदिशों मे क्यों जीना चाहेगा? इंसान ने मजहब बनाए हैं। मजहबों ने इंसान नही बनाए।
जहां हजारों साल पहले से एक उन्नत , सभ्य, परिपक्व तहजीब चली आ रही है वहां दकियानूसी विचारों पर टिके हुए न तो साम्राज्य स्थिर रह पाए न वो धर्म स्थिर रह पाएंगे। 

     यहां के इंसान ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी जीवन शैली को अब एक नाम दे दिया है – हिंदू. हिंदू को अपना अखंड भारत, अपना गौरवशाली अतीत चाहिए जो उसे भारतीय उपमहाद्वीप मे ही  मिल सकता है, सऊदी अरब या ईराक, ईरान या रोम मे नही मिल सकता । अपनी सदियों से चली आ रही मान्यताओं, परंपराओं के साथ वह अपने इसी भूभाग मे अपने देश के रूप मे रहना चाहता  है । इसमे कुछ भी गलत नही है । भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से भी यहां ऐसी ही विचारधारा जिंदा रह सकती है जो जीती है और जीने भी देती है। अगर कोई ताकत इसके स्वाभाविक प्रवाह मे गतिरोध पैदा करेगी तो इतिहास गवाह है -  उसे नष्ट होना पड़ेगा ।

(समाप्त)




  




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