रविवार, 30 अगस्त 2020

व्यंग्य-टाई पहनने का डिसीजन


आखिरकार मीटिंग शुरू हुई |

‘माइ फ्रेड्स’....बास बोले-‘आज की मीटिंग एक इंपोंटेंट मीटिंग है। कंपनी के सीएमडी चाहते हैं कि आफिस में सभी लोग टाई पहनकर आया करें। कल ही यह केस ईसी में पुटअप हुआ और बिना किसी आब्जेक्शन के क्लियर हो गया। टाई का शेड, साइज, लोगो डिसाइड हो चुका है। मंथ ऐंड तक सबको टाई मिल जाएगी।

            -‘जब सभी कुछ डिसाइड हो चुका है तो हमें बुलाया क्यों गया है। सीधे सर्कुलर निकाल देते !” पीछे से आवाज़ आई।

इस पर बॉस ने सफाई दी- 

-‘हमें अपनी रिपोर्ट भेजनी थी  कि टाई पहनने के डिसीजन से सभी खुश हैं।

-  मगर ये आपने कैसे मान लिया कि इस डिसीजन से हम सब खुश हैं?  खुद पेपर बनाओ, खुद ही हल करो और खुद ही चेक करो ! भई वाह ! चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का !  पीछे से फिर दूसरी आवाज़ आई।

“अमको बी खुश नहीं है! ये कैसा डिसीजन ? किसी से कुछ पूछा तक नहीं और फरमान का माफिक जारी कर दिया ! दिस इज़  अगेंस्ट अवर फंडामेंटल राइट ऑफ एक्स्प्रेशन” सीनियर सुपरिटेंडेंट चौगुले बोले.

  दफ़्तर के सबसे बुजुर्ग बाबू रंजन भट्टाचार्य बोले, ‘धोती-कुरता के साथ टाई कैसा पहनेगा?  आज तक किसी को देखा है अइसा?

-‘तो आप धोती-कुरता पहनते ही क्यों है। पेंट-शर्ट पहनिये न । प्राब्लम अपने आप हल हो जाएगी-

बास का सुझाव था, जिसे सुनकर रंजन बाबू चौंक गए । चश्मे को आंखों पर बिठाते हुए उन्होंने बॉस को देखा, फिर अपने धोती-कुरते को देखा और बोले-

-‘हमारा रिटायरमेंट का खाली एक साल बाकी है। एक साल के लिए अंग्रेज़ का पोशक पहनना पडे़गा? ना बाबा ये हमसे नहीं होगा।’ कहते हुए रंजन बाबू अपनी जगह बैठ गए। उनके बैठते ही फाइनेंस आफिसर मिस्टर पीके बालू बोल उठे-‘ये टांय टांय क्या करता  सर? काम तो बराबर ओता न सर!’ उन्होने चटख सफ़ेद शर्ट और लुंगी पहनी हुई थी।

            -‘देखिये मिस्टर बालू

- बॉस समझाने लगे, टाई से इंसान की पर्सनलिटी निखरती है। नॉलेज तो बाद में देखी जाती है। पहले तो आपकी ‘लुक’ मैटर करती है। आप स्मार्ट दिखते है तो आपका बिजनेस भी बढ़ता है। आउट डेटेड ड्रेस अडॉप्ट करेंगे तो बिजनेस डाउन होता जाएगा। स्मार्ट बिजनेस के लिए स्मार्ट ड्रेस जरूरी है ।  एमआइ राइट मिस्टर बालू?

    इस पर राजभाषा विभाग के प्रधान डॉ शुक्ल बोले- श्रीमान जी , मुझे विश्व हिंदी दिवस पर कंपनी की तरफ से मॉरीशस जाना है। अपनी हिंदी को प्रमोट करना है। आप ही बताइये मैं टाइ पहन कर हिंदी की बात कैसे कर पाऊंगा? लोग मेरी और कंपनी की हंसी नहीं उड़ाएंगे ? कंपनी की इंसल्ट तो मै किसी कीमत पर नही होने दूंगा । भले ही सीएमडी साहब मेरी नौकरी खा जाएं। आखिर ये देश के स्वाभिमान का प्रश्न है। देश की संप्रभुता बचाने  के लिए मुझे नौकरी भी छोड‌नी पड़ेगी तो मै नहीं सोचूंगा। फौरन त्यगपत्र दे दूंगा। 

इस पर बॉस भड़क उठे और डॉ शुक्ल को झिड़कते हुए बोले-

   मिस्टर शुक्ला, ऑफिशियल लैंग्वेज डिपार्ट्मेंट इज़ द मोस्ट अनप्रोडक्टिव डिपार्टमेंट । आप भी मानते हैं इस बात को ? आपके डिपार्टमेंट  का सबसे कम आउटपुट  और सबसे ज़्यादा एक्स्पेंडीचर ! क्यों गलत तो नही है न ? सबसे ज़्यादा टूरिंग आपकी। सबसे ज़्यादा टीए डीए आपके डिपार्टमेंट का ! फिर भी सी एमडी की इच्छा पूरी करने की जगह आप उसमे टांग अड़ा रहे हैं? अरे मॉरीशस मे कौन आ रहा है देखने कि आपने टाइ पहन रक्खी है या नहीं? आप हिंदी वालों से तो कोई एक्स्पेक्ट भी नहीं करता कि आप इंगलिश बोलें, टाई पहनें!

            बास को जवाब देना चाहते थे डॉ शुक्ला, लेकिन कुछ सोचकर चुपचाप बैठ गये । उनके बैठते ही  मैडम पुजारी खड़ी हो गईं

-‘अपुन का साइड ह्यूमिडिटी जास्ती होएला ए सर, इदर टाई पहनने नईं सकता। स्वेटिंग होंएंगा शर्ट-पैंट भीग जाएंगा सर ! में बराबर बोलती न सर?’

            मैडम पुजारी की बात पर ज़्यादातर लोग खिलखिला कर हंस पडे। आडिएंस को चुप कराते हुए बॉस बोले

-मैडम पुजारी, आप तो लेडी हैं, ये टाई की प्राब्लम आपकी नहीं है। सिट डाउन प्लीज़।’

            साड़ी का पल्लू संभालती मैडम पुजारी अपनी जगह बैठ गई । 

‘एनी कमेंट प्लीज’

 बास ने चारों तरफ सरसरी नज़र दौड़ाई।

 तभी कंपनी के पीआरओ मिस्टर थामस खड़े हुए और बोले

-‘सर, अवर सीएमडी इज़ ग्रेट। उनका फोरसाइट ग्रेट। अमारा सीएमडी ग्लोबल मैन । तबी वो ग्लोबली सोचता । अमारा इंजीनियर टाई पहन कर फारेन जायेगा तो स्मार्ट लगेगा न सर? अम तो आज से ही टाई पहनना मांगता सर। आई कांट वेट एनी मोर....’

  -‘थैक्स मिस्टर थामस’ बॉस खुश होकर बोले ‘ग्लोबलाइजेशन के इस पीरियड में आप जैसे ओपन माइंड की ज़रूरत है। हमारा थिकिंग डायनामिक होना चाहिए। जस्ट लाइक रिवर वाटर। रूक गया तो इंफेक्शन हो जायेगा। थैंक्स अ लॉट फॉर पॉजिटिव अप्रोच !  प्लीज बी सीटेड माई डियर थामस।’

            अभी थामस बैठा भी नहीं था कि सबसे पिछली सीट पर बैठा सतवीर सिंह उठ खड़ा हुआ और मूछों पर ताव देता हुआ बोला-

            ओय चिड़ी दे  पुत्तर थामस दी  औलाद, मक्खन मारता है ? ओए अंग्रेजों के टट्टू अब तुम आज़ाद हो। अंग्रेज कब के चले गए ! यकीन नहीं आता क्या ?

            फिर बाजुओ के डौले दिखाते हुए गरजा सतवीर सिंह उर्फ सत्ता -कोई टाइ-शाइ नी  पाणी किसी को....ये कंपनी सरकारी कंपनी है किसी के बाप की जागीर नहीं.....

अभी सतवीर सिंह जाने क्या-क्या कहता कि बास बीच में बोल उठे

-‘मिस्टर सिंह आपको तो दो महीने के लिए फारेन जाना है न टूर पर । अपनी कंपनी की खेल टीम को नए ग्राउंड पर प्रेक्टिस करानी है न ? वैसे भी आप स्पोर्ट्स वालों के लिए इस नियम मे छूट है। आप इस झमेले में क्यो पड़ते है।’

            सतवीर सिंह ने मन ही मन कुछ हिसाब लगाया। हजार डॉलर रोज के हिसाब से साठ दिन के साठ हजार डॉलर । रहने- खाने का खर्चा कंपनी उठा ही लेगी। दो महीने यूरोप की वादियों मे भी घूम लेंगे। मूड  फ्रेश हो जाएगा। आम के आम गुठली के दाम ! क्या बुरा है ?

     फिर हंसते हुए सतवीर बोला - सारी बास! अपणे को तो खेलणे और खिलाणे से मतलब है । टाइ फाइ से अपणे को क्या लेणा-देणा।’ कहते हुए सतवीर मीटिंग हाल से उठ कर बाहर चला गया।

(समाप्त)



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