
विकास की अनिवार्य शर्त - ऊर्जा(Energy) :
ब्रह्मांड (Universe) मूलत:
दो वस्तुओं द्रव्य (matter) और ऊर्जा (energy) से बना है ।
द्रव्य को कर्मेंद्रियों
व ज्ञानेंद्रियों (Sense
organs) द्वारा अनुभव कर सकते हैं, जबकि ऊर्जा
को न तो आंखें देख पाती हैं, न जीभ चख पाती है, न कान सुन पाते हैं, न नाक सूंघ पाती है और न त्वचा
जिसे छू पाती है. फिर भी यह ऊर्जा कितनी महत्वपूर्ण है- यह हम सब जानते हैं. ऊर्जा
का अजस्र स्रोत 'सूर्य' यदि हमारे पास
न होता तो मानव सभ्यता की कल्पना करना भी कठिन होता. हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों
तरफ इसी ऊर्जा के बूते चक्कर लगा रही है.
पृथ्वी पर जो भी जीवन विद्यमान है, जो भी विकास है-
उसका मूल आधार ऊर्जा ही है. चाहे वह जल द्वारा उत्पन्न ऊर्जा ( Hydel
Power) हो, पवन ऊर्जा (Wind Energy) हो, प्रकाश ऊर्जा (
Light Energy) हो, परमाणु ऊर्जा (Atomic
Energy) हो, या फिर पेट्रोलियम ऊर्जा (Petroleum
Energy) - इन सभी ऊर्जाओं का मूल आधार ( Root Cause) सूर्य ही है. शायद इसीलिए वैदिक साहित्य में सूर्य को देवता कहा
गया है.
मानव आज विकास के उस शिखर पर जा पहुंचा है, जहां हर कदम पर उसे
ऊर्जा की आवश्यकता है. ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत के आधार पर ही किसी राष्ट्र के
विकास का अनुमान लगाया जाता है.
ऊर्जा-सुरक्षा (Energy security) -
मानव सभ्यता की अपरिहार्य आवश्यकता :
किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा आज इस
बात से आंकी जा रही है कि वह कितना ऊर्जा सुरक्षित है. क्या उसके पास ऊर्जा के
पर्याप्त भंडार हैं ?
ऊर्जा के मामले मे दुनियां के सभी देश
आज सजग व सतर्क हैं. खाड़ी के दोनो युद्ध ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के संघर्ष का परिणाम
थे. ईरान पर मंडरा रहा युद्ध का संकट भी इसी ऊर्जा सुरक्षा के कारण है. अमेरिका आज विश्व मे जो गैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार कर रहा है, उसका कारण भी आने
वाले कल को ऊर्जा सुरक्षित बनाना है.
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पवन ऊर्जा |
संक्षेप में कहें तो आज विश्व में शीत
युद्ध की जो स्थितियां बन गई हैं,
उनके पीछे ऊर्जा सुरक्षा ही कारण है । ऊर्जा असुरक्षा की भावना बढ़ेगी तो वैश्विक संघर्ष
भी बढ़ेंगे । युद्ध भी होंगे ।
किसी भी राष्ट्र का भविष्य आज इस बात
पर निर्भर करता है कि वह कितना ऊर्जा सुरक्षित
है.
ऊर्जा सुरक्षा के साथ साथ यह देखना भी जरूरी है कि हम ऊर्जा के प्राकृतिक
स्रोतों (Natural
Resources) का दोहन(exploitation) किस प्रकार करते हैं? अत्यधिक दोहन के कारण कहीं ये स्रोत नष्ट तो नहीं हो जाएंगे. यदि हम ऊर्जा स्रोतों
के दोहन के साथ साथ उनका रख रखाव नहीं करते हमारी भावी पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं
करेंगी,
ऊर्जा के अनेक स्वरूप ( Various Forms of Energy) :
ऊर्जा प्राप्ति के अनेक स्रोत आज
मानव के सम्मुख उपलब्ध हैं,
और वह सभी का दोहन भी कर रहा है. कुछ मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं:
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विद्युत ऊर्जा |
- पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस (Petroleum and Natural gas)
- परमाणु (Nuclear)
- कोयला (Coal)
- विद्युत ( Electrical)
- सूर्य(Solar)
- पवन (Wind)
- रासायनिक(Chemical)
- समुद्री ज्वार से उत्पन्न ऊर्जा
( Tidal )
- भूतापीय ( Geothermal) ऊर्जा
- जैविक ऊर्जा (Bio energy)आदि
प्रस्तुत विवेचन में हम केवल
पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस से उत्पन्न ऊर्जा पर विचार करेंगे.
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस – ऊर्जा
का प्राकृतिक किंतु सीमित स्रोत :
धरती
के गर्भ मे पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस कहां से आए ? अभी तक यही माना जाता है कि लाखों वर्ष पहले
पृथ्वी पर डायनासॉर नामक विशालकाय प्राणी बड़ी संख्या में मौजूद थे. पृथ्वी के अधिकांश भाग पर फर्न के विशाल वन और उनमें निर्द्वंद विचरते उन महाकाय जीव-जंतुओं का ही एकछत्र साम्राज्य था.
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पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस का दोहन |
कालांतर में किसी भीषण भौगोलिक
परिवर्तन के कारण वे डायनासॉर तथा प्रागैतिहासिक वन एकाएक लुप्त हो कर भूगर्भ में
समा गए.
लाखों वर्ष तक अत्यधिक ताप तथा दबाव
की स्थितियों में रहने के कारण इन दबे हुए वनों तथा प्राणियों का उस द्रव
तथा गैस में रूपांतरण हो गया जिसे आज हम कच्चा तेल व प्राकृतिक गैस कहते हैं, तथा जिसे हम वेधन
प्रक्रियाओं द्वारा भूगर्भ से निकालते हैं. पेट्रोलियम दो शब्दों से मिल कर बना
है- पेट्रो तथा ओलियम. पेट्रो का अर्थ है- चट्टान तथा ओलियम का अर्थ है- तेल. इस
प्रकार पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ हुआ- चट्टान से निकलने वाला तेल.
भूगर्भ मे कच्चा तेल व गैस असीमित मात्रा में नहीं हो सकते. भूगर्भ में छिपे ऊर्जा
के ये स्रोत एक न एक दिन समाप्त अवश्य होंगे.
विश्व मे कच्चे तेल के भंडार :
वर्ष 2009 में बीपी
स्टैटिस्टिकल रिव्यू द्वारा की गई गणना के
अनुसार केवल 42 वर्ष के पेट्रोलियम भंडार अब बचे रह गए हैं, अर्थात सन 2051 तक
विश्व के सभी पेट्रोलियम भंडार समाप्त हो जाएंगे.
यह गणना एक सरल सूत्र द्वारा की गई
है. इस सूत्र के अनुसार :
विश्व के कुल पेट्रोलियम भंडार (P)
पेट्रोलियम भंडारों
की आयु = ------------------------------------
विश्व
का प्रतिदिन का उत्पादन (R)
हो सकता है कि यह गणना एकदम सटीक न बैठे, क्योंकि विश्व का प्रतिदिन का उत्पादन घटता
बढ़ता रह सकता है. साथ ही विश्व के कुल ज्ञात भंडारों में वृद्धि भी हो सकती है.
फिर भी इतना तो मानना ही पड़ेगा कि 42 वर्ष न सही, एक न एक
दिन तो पेट्रोलियम के ये भंडार समाप्त अवश्य होंगे.
जैसा कि इस चित्र में दिखाया गया है, पेट्रोलियम भंडारों के दोहन की एक उच्चतम
सीमा भी होती है, इसे पीक प्रोडक्शन यानी शिखर उत्पादन भी कह
सकते हैं.
विश्व में आज पेट्रोलियम का उत्पादन इस शिखर सीमा पर पहुंच
चुका है. बल्कि सच तो यह है कि अब हम शिखर उत्पादन के बाद ढलान वाले भाग पर आ
पहुंचे हैं. अब दिनों दिन पेट्रोलियम का उत्पादन कम ही होगा. उसके बढ़ने की संभावना
अब समाप्त हो चुकी है.
अमेरिका के 45वें उपराष्ट्रपति व
नोबल शांति पुरस्कार विजेता अलगोर ने वर्ष 2004 में अमेरिकी कांग्रेस में कहा था-
हम या तो पीक ऑयल पर पहुंच चुके हैं, या फिर उसके बहुत करीब हैं.
कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस की
उपलब्धता :
पेट्रोलियम उत्पादन का कोई भी ज़िक्र
ओपेक के बिना अधूरा माना जाएगा. ओपेक (
ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़ ) आज विश्व में पेट्रोलियम उत्पादन में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. ओपेक में शामिल देश हैं- अल्जीरिया, अंगोला, इक्वाडोर, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर,सऊदी अरबिया, यूनाइटेड
अरब अमीरात व वेनेजुएला. पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत ही विश्वव्यापी कीमतों का
निर्धारण करती है, अत: पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत पर गहन
राजनीति होना स्वाभाविक है. ओपेक संगठन चूंकि पेट्रोलियम उत्पादन को मनमाने ढंग से
बढ़ाता घटाता रहता है, अत: विश्व बाज़ार में तेल की कीमतें उसी
के अनुसार बढ़ती घटती रहती हैं.
आंकड़े बताते हैं कि 1980 से 1990 के
दौरान ओपेक देशों ने तेल का उत्पादन नाटकीय ढ़ंग से बढ़ाया था. वह भी तब, जब कि सन 1970 के
बाद से उन देशों में तेल के नए भंडारों की खोज नहीं हुई है.
प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री डॉ. एलेन
केंपबेल बताते हैं कि सन 1985 में कुवैत ने अपना उत्पादन 50% बढ़ा दिया था. कारण यह
था कि उसने बताया कि उसके पेट्रोलियम भंडार बढ़ गए हैं. उस समय ओपेक देशों की
उत्पादन नीति इस बात पर निर्भर करती थी कि जो देश जितने अधिक भंडारों की घोषणा
करेगा, वह उतना ही अधिक उत्पादन कर सकेगा.
कुवैत की घोषणा सही नहीं थी. वहां के
शासक अधिक विदेशी मुद्रा चाहते थे. इसीलिए भंडारों की संख्या वास्तविक संख्या से
दुगनी बताई गई.
आज स्थिति यह है कि सभी ओपेक देश
अपने उत्पादन के उच्चतम शिखर पर आ चुके हैं. वहां आज 'पीक ऑयल' निकाला जा रहा है.
वर्ष 2008 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा
एजेंसी (IAE) ने लगभग 800 विश्व
भंडारों का सर्वेक्षण किया और पाया कि विश्व में तेल भंडारों में प्रतिवर्ष 6.7%
से लेकर 8% तक की कमी आ रही है. अगर यही
स्थिति जारी रहती है तो वर्ष 2030 तक विश्वव्यापी उत्पादन में 50% की कमी आ जाएगी.
विश्वव्यापी बढ़ती कच्चे तेल व
प्राकृतिक गैस की मांग :
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अपतटीय पेट्र्लियम स्रोतों का दोहन |
एक ओर जहां कच्चे तेल का उत्पादन
तेज़ी से गिर रहा है,
वहीं दूसरी तरफ तेल की मांग बढ़ती जा रही है. एक गणना कहती है कि
2051 तक विश्व के कच्चे तेल के भंडार समाप्त हो जाएंगे, ठीक
उसी समय दूसरी गणना कहती है कि वर्ष 2050 तक तेल की खपत दुगनी हो जाएगी.
कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस पर आधारित
ऊर्जा का भविष्य :
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि
कच्चा तेल व प्राकृतिक गैस मानव सभ्यता के विकास में बहुत दूर तक साथ नहीं दे
सकते. आगामी बीस वर्षों के भीतर हमें
कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस का विकल्प निश्चित रूप से खोजना ही होगा.
दिसंबर 2004 में डच बैंक के
प्रतिनिधि ने कहा था- जीवाश्म ईंधन की समाप्ति की बात न तो निराशावादियों का
वक्तव्य है, और न ईश्वर के अवतारों की भविष्यवाणी, यह आने वाले
दिनों की एक कड़वी सच्चाई है, जिसे हमें गंभीरता से लेना
होगा.
भारत
में पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस की स्थिति :
ओपेक
देशों के ठीक विपरीत भारत एक तेल आयातक देश है. हमारी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का
एक बड़ा भाग कच्चे तेल के आयात में ही खर्च होता है.

हमारी रोजाना तेल खपत करीब 1.5
मिलियन बैरल है, जिसका 80% अर्थात 1.2 मिलियन बैरल तेल तथा तेल समतुल्य गैस अकेला ओएनजीसी
प्रदान करता है.जाहिर है कि भारत स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी ओएनजीसी देश की कीमती
विदेशी मुद्रा को बाहर जाने से काफी हद तक रोके
रखती है.
किंतु लगभग एक बिलियन टन के भंडार के
आधार पर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता. भारत तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है, जिसकी ऊर्जा की मांग़
हर रोज बढ़ती जा रही है. भले ही भारत अब गहरे समुद्र में भी तेल की खोज करने लगा हो,
भले ही क्षैतिज वेधन की तकनीक अपना ली गई हो, भले
ही बैक्टीरिया की मदद से बहुत छोटे छोटे तेल क्षेत्रों के दोहन की प्रणाली भी परख
ली गई हो, किंतु जब तक देश और विदेश स्थित हमारी पेट्रोलियम
कंपनियों को विशाल तेल भंडार नहीं मिल जाते, तब तक भावी
ऊर्जा जरूरतें पूरी होने में संदेह बना रहेगा. विश्व पहले ही पीक ऑयल से उतर चुका
है. अब उत्पादन तो बढ़ाया जा सकता है, किंतु उसे काफी समय तक
स्थिर नहीं रखा जा सकता.
एकमात्र विकल्प है नए और विश्वसनीय
तेल व गैस क्षेत्रों की खोज.
(समाप्त)
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