मंत्री परेशान थे।
सहयोगी दल ने सरकार बनवा तो दी, मगर सरकार
में शामिल नहीं हुआ। सदन में पक्ष में बैठा पर भूमिका विपक्ष की निभाने लगा।
जरा-सा किसी सरकारी कारख़ाने को बेचने की बात करते तो बिदक जाता और गिरने-गिराने पर
उतारू हो जाता। पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढाने की सोचते तो विपक्ष के साथ मिलकर सदन की
कार्रवाई रूकवा देता। अंकल सैम के सामने सज़दा करते, पूंछ
हिलाते या इशारा पाकर ईरान की दिशा में भौंकते तो गुर्राने लगता। दिक्कत यही थी कि इस नादान दोस्त को रास्ते
पर कैसे लाया जाय ?
अचानक मंत्री जी के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़
गयी। आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और ब्रेन स्टार्मिंग सेशन शुरू हो
गया।
पार्टी अध्यक्ष बोले-
साथियों, सालभर होने को आया, पर आप में से कोई भी मंत्री तगड़ा
सा शिकार नहीं कर सका। इस सहयोगी दल ने हमारी ऐसी गत बना दी है कि गरम दूध न उगले
बनता है न घूंटे। पिछली सरकार के पार्टनर कितने समझदार थे ! दरअसल उनकी अक्लमंदी का पता पहले ही चल गया था
जब वे सरकार में शामिल हुए। न्यूनतम साझा कार्यक्रम की एक शर्त उन्होंने यह भी रखी
कि न तुम हमें टोकना, न हम तुम्हें देखेंगे। हम खुद भी जीना
चाहेंगें और बदले में जीने भी देंगे।
नतीजा यह हुआ कि कोलीशन पार्टी के मंत्रियों ने भी जमकर माल खाया । इतनी खुराक खाई कि अगले पांच
साल तक बगैर खाये-पिये आराम से खींच सकते हैं। और एक पार्टनर ये हमारे मत्थे पड़ा, जो न खुद
खाता है न खाने देता है। शौचालय मे पानी नहीं, बाहर करने नहीं देता ! इन हालातों में सरकार चलाना फजीहत कराना है। आप का
क्या विचार है।
पार्टी प्रवक्ता उठे और कहने लगे
-मंत्री जी
ने जो कुछ कहा वह कड़वा सच है। सहयोगी दल सौ तोरियां तो छीलने देता है, पर उनके बदले एक कद्दू छीलने की इज़ाज़त नहीं देता। जब देखो आम आदमी की बात
करता है। इतना भी नहीं जानता कि आम खा-खा कर ही हम आज थोड़ा बहुत खास बन सके हैं,
वरना कभी के निपट गए होते। मेरे ख़्याल से हम एक तजुर्बेकार, पेशेवर पार्टी
हैं। तभी तो नंगे नहाते हैं। जबकि हमारा सहयोगी दल पहली बार हमाम में उतरा है।
उसकी चड्डी अभी नहीं उतरी है, इसलिये इतरा रहा है। वक्त की
मांग है कि सहयोगी दल की चड्डी जल्द से जल्द उतार ली जाये, ताकि
हमाम के बाकी नंगों के बीच वह अपनी चड्डी की शेखी न बघार सके । खुद
भी सहज होकर नहा सके और हमे भी खुल कर नहाने दे ।
संस्कृति मंत्री बोले- वैसे चड्डीहरण की
ज़रूरत पड़ेगी ही नहीं। नया मुल्ला पांचों वक्त नमाज पढ़ता ही है। हमारे ज़माने में जब
बहू पहली बार ससुराल आती थी तो मारे लाज के तीन-तीन दिन तक खाना नहीं छूती थी। जब
भी पूछा-लाड़ो, एक कौर तो तोड़ ले। तो यही कहा करे थी- मां जी
भूख नहीं है। अब भूख है या नहीं ये तो वही जानती होगी। पर थोड़े दिन बाद वही बहू
राशन पर ऐसे हाथ साफ़ करती कि आगे-पीछे की
सारी कसर पूरी कर जाती। इसी से कहता हूं, तेल देखो, तेल की धार देखो। वक़्त हर शख्स को हर चीज़ सिखा देता है।’
भूतल परिवहन मंत्री खड़े हुए- हमें अपने
गिरेबान में भी झांकना होगा। आपने सपोर्ट मांगा, सपोर्ट मिल
गया। पर आपने इस इंसानियत का क्या जवाब दिया ? उनके स्टेट में थोड़ी बहुत बारिश-बाढ़
भी आई थी। मौक़ा अच्छा था। भेज देते हज़ार दो हजार करोड़ की कैश सहायता ! मगर आपको तोरियां
छीलने से फुर्सत मिले तो सही।
इस पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मंत्री
कहने लगे- ‘वो कहते हैं न दुर्घटना से देर भली। अभी ज़्यादा डैमेज नहीं हुआ।
जल्दी पार्टनर दल के अध्यक्ष, सचिव और ट्रेज़रार के नामों से टैक्स
हेवेन कंट्रीज़ के बैंको में जितना कुछ पत्रम -पुष्पम बने- फौरन जमा करा दिया जाय
और कानी लड़की के बाप की तरह हाथ जोड़कर, सर झुकाकर
दबी जुबान से कहा जाय- इतना ही बन पड़ा था।’
इस पर गृह मंत्री उठे और बोले
- सरकार मे तो
अमारा पार्टनर पहली बेर आया । अब तक तो वो जगे जगे यूनियन बनाया, स्ट्राइक कराया,
फैक्टरी मे तालाबंदी कराया ।
पुलिस का लाठी और मिल मालिक का गाली ख़ाया
। अब टाइम था खीर खाने का । पर अब वो
नॉन्सेंस आइडियलिस्ट बन गया ! मौरल पर, वैल्यूज़ पर लेक्चर झाड़ने लगा । गीले
साबुन की तरह टाइम हाथ से फिसलते जा रहा
है और ये स्टूपिड समझने को रेडी नहीं। पांच मे से तीन साल आलरेडी निकल गया ! व्हट इज़ द यूज़ ऑफ द
रेन व्हेन क्रॉप इज़ ड्राइड ? तब रोने का कोई
मीनिंग नहीं जब बर्ड्स सारा फील्ड खा कर फिनिश कर दिया ? मेरा
एडवाइज़ मानो । कोलीशन पार्टनर को फर्स्ट
आफ आल डिनर पर इनवाइट करो । गेट टुगेदर के
बिना कोऑपरेशन कैसा मिलेगा भला ? डिनर का टेबल पर वर्ड का बिग्गेस्ट प्रॉब्लेम भी
इज़िली सॉल्व हो जाता है । लाल ही पर अटके रहने में कोई फाइदा नहीं।’
इस पर रेल मंत्री पगुराये
- अरे धुत्त बुड़बक ! हम कब
से कह रहा हूं, उनके तबेले में खूंटा खाली है, एक ठो भंइसिया काहे
नहीं बांध देते हैं ? मज़े से दूध दुहें, सेहत
बनाएं । डंड पेलें । शरीर जदी मजबूत होगा तो इरादा भी मज़बूत होगा । तभी न सपोट भी
मज़बूत होगा ! तभी न हमारा गभरमेंट सालों-साल चलने शकेगा ! हमको देखिये न ! लोहिया जी
फ़सल बोकर उड़ गए । जेपी साहब ऊकी देखभाल किये रहे, और फ़सल जब तैयार हुई तो काट हम रहा हूं ।
काट-काट कर उसी चरई में भंइसियन के संगे संगे हम भी भकोस रहा हूं । जलने वाले लाख
हंसी उड़ावें, हमरे ठेंगा से। अपनी कनपटिया का बाल भी बांका
नहीं होता । तो ऐसा ही समाजवाद ई बड़के भइया भी काहे नहीं अडाप्ट कर लेते ? कौन टोकता है ? पर ये भूंक हड़ताल जो चल रहा है बरसों से, अब
जूस का गिलास पीकर कर डारें उसका समापन।
कुछ खावें पीवें । अपने चार्वाक चचा ठीक ही
तो कह गए हैं- करजा करके भी घी पीओ। जाने
काहे नहीं समझ में आती है इत्ती सी बात !
सभी मंत्रियों की दलीलें सुनने के बाद अध्यक्ष जी खड़े हुए और पगुराए-
साथियों, इस
मीटिंग से एक बात बिल्कुल साफ़ है- कि हमें मिलजुल कर काम करने की आदत डालनी पडे़गी। हमारी
जो ये अकेले खाने -पीने की आदतें हैं, ये उस ज़माने की हैं जब अकेली पार्टी की सरकार हुआ
करती थी। मगर आज वक्त बदल गया है। वो दिन गए, जब खलील खां
फाख्ता उड़ाते थे । वो भी अकेले अकेले। मिली-जुली सरकारों के इस युग में खाना-पीना भी
मिल जुलकर ही पड़ेगा। है तो ये काम बड़ा मुश्किल, पर वो कहते
हैं न सारी दीखै जात, आधी लीजै बांट। तुम भी नहाओ, हम भी नहावें । न तुम हमे टोको, न हम तुम्हें टोकें । तभी ये दोपहियों की गाड़ी चलेगी ।
अगर आप सब को मंजूर हो तो मैं खुद पार्टनर को डिनर पर इनवाइट करूं।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अध्यक्ष जी उठे और
कोलीशन पार्टनर को डिनर का न्यौता देने चल पड़े।
(समाप्त)
धन्यवाद बंधु । आप सुधी पाठक ही लेखकों का मार्गदर्शन करते हुए सम्यक लेखन कराते हैं।
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