गुरुवार, 9 जुलाई 2020

व्यंग्य - संशोधन आयोग


आज़ादी के बाद नया संविधान लागू तो ­हुआ पर उसमे  कई संशोधन हो चुके थे, और होते ही जा रहे थे. देश का बोझ कंधों पर उठाए नेता सोचने लगे- अगर इसी रफ्तार से संशोधन होते रहे तो संविधान से ज़्यादा तो संशोधन हो जाएंगे. कोई न कोई तरकीब निकालनी ही होगी. आला कमान ने सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया. हर दल ने अपनी राय दी. सबका यही कहना था कि वक्त के हिसाब से मौजूदा संविधान पुराना पड़ चुका है. इसे बदल देना चाहिये. अगर बदलना मुश्किल हो तो आयोग गठित करना चाहिये, जो एक बार मे  ही सारे संशोधन पेश कर दे.


      बात सबको जंच गई. आयोग गठित हो गया. चार साल मे आयोग ने रिपोर्ट पेश कर दी. चार साल इसलिए लगे कि  आयोग को कई देशों  मे  जाना पड़ा, वहां के संविधानों  का अध्ययन करना पड़ा. यह कोई छोटा-मोटा काम न था. बेहिसाब हवाई यात्राएं करना, तमाम मुल्कों के लक्ज़री  होटलों मे  महीनों ठहरना, नित नए लज़ीज़ पकवान मन मार कर खाना, बेहतरीन पिकिनक स्थलों मे  इच्छा  न होते हु­ए भी घूमना ! आत्मा की आवाज़ दबा कर सेमीनारों मे भाग  लेना. संविधान विशेषज्ञों  से मूड न होते ­हुए भी मिलना, थके हु­ए प्रेज़ेंटेशन झेलना, ज़बरदस्ती  सवाल पूछना, किसी तरह मन  मार  कर नीरस व उबाऊ लेक्चर सुनना- कि तना तकलीफ का काम था !

      मगर सवाल था-देश का ! अगर प्राइवेट होटलों  को बचाने मे  हमारे कंमांडो जान गंवा सकते हैं, , नकली बुलेटप्रूफ  जैकेट पहने पुलिस अफसर आतंकवादियों  की  गोलियों  से छलनी हो सकते हैं, तो यह छोटी सी कुरबानी आयोग के सदस्य  कैसे न कर पाते !

     देश के नाम पर सारी जहालत उन्होने  खुशी खुशी झेली. चार साल की मशक्कत  के बाद जो दस्तावेज़ तैयार ­हुआ, उसे बड़ी हिफाज़त से रक्खा  गया था, पर उसकी  कॉपी हमे  उसी तरह मिल गई जैसे रेलवे परीक्षा  के पर्चे पहले ही बाहर आ कर लाख लाख रुपए मे बिक जाते हैं. दस्तावेज़ मे  एक अध्याय सिफारिशों का था. आयोग ने दावा किया था कि  इन सिफारिशों पर अमल किया गया तो भविष्य मे  कभी संविधान संशोधन की  ज़रूरत नही  पड़ेगी. सि फारिशें  संक्षेप मे  इस प्रकार थीं :

1. किसी   भी देश की सबसे ज़्यादा क्रिएटिव पावर होती है युवा पीढ़ी. इसे सत्ता  से दूर रखने के लिये निम्न लिखित  उपाय करने ज़रूरी हैं

(क) इन्हें रोज़ी रोटी मे बुरी तरह जकड़ कर रखा जाय.

(ख) रिज़र्वेशन के ज़रिये इन्हें संगठित न होने दिया जाय.

(ग) इन्हें पब संस्कृति मे ढाला जाय, ताकि ये पी कर मस्त रहें, गर्ल फ्रेंड्स के साथ घूमें फिरें, सपनों की दुनिया मे खोए रहें और अनुभव के दलदल मे आकंठ डूबे व अन्य लोकों के यात्री मरणासन्न नेता सत्ता की बागडोर अपने तजुर्बेकार हाथों मे उसी तरह संभाले रहें जिस तरह वे आज तक संभाले आ रहे हैं. 

 (घ) युवाओं को सेनाओं मे बांट दिया जाए. ताकि  ये सेनाएं आपस मे  घमासान युद्ध  करती रहें  तथा सत्ता मे भागीदारी करने का कुत्सित विचार इनके दिमाग मे आ तक न सके.

 (ङ) काले पैसे का प्रवेश चुनावों मे अनिवार्य कर दिया जाए. ताकि  एक तो अपने को ईमानदार बताने वाले दलिद्दर किस्म के जंतु चुनाव लड़ने की  सोच ही न सकें,   दूसरे-समाज मे  काले पैसे की प्रतिष्ठा स्थापित हो सके. लोग गर्व  से कह सकें कि हमारे पास भी ब्लैक  मनी है.

 2. देश में सिर्फ दो कानून हों. एक अमीरों  का, और दूसरा भेड़-बकरियों  का. अमीर चाहे जितनी लूटमार मचाए, उसे कभी सज़ा न हो. गरीब अगर सुई भी चुराए तो उसे बुरी तरह पीटा जाए. जेल मे  ही यातना देकर मार दिया जाए, ताकि  कोई दूसरा गरीब सुई चुराने की  भी हिम्मत  न कर सके. 
अमीरों  की  लाख गलतियां  भी न देखी जाएं. अगर लोकलाज से देखनी ही पड़े तो गिरफ्तार न किया जाए. करना ही पड़ा तो निजी  मुचलके पर फौरन छुड़वा लिया जाय. मान लो सबूत भी खिलाफ हो  तो रिमांड पर लिया जाय पर सज़ा न हो. अगर सज़ा देनी ही पड़े तो कोर्ट के थ्रू  उसे सारी सुविधाएं जेल के भीतर ही मुहैय्या कराई जाएं. तभी जनता मे  संदेश जा सकेगा कि  एक ही देश मे  दो कानून लागू करने मे  सरकार कितनी कामयाब रही है.

 3. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अगर सरकार गिरने का खतरा हो तो दूसरी पार्टियों के सांसदों को अंतरात्मा की आवाज़ पर वोटिंग करने का अधिकार दिया जाय और दैव की इच्छा मानते हु­ए राष्ट्रहित मे उसे वैध ठहराया जाए. क्रॉस वोटिंग करने वाले साहसी देशभक्त सांसदों  का नागरिक अभिनंदन किया जाए, उन्हें शॉल, श्रीफल से सम्मानित किया जाए. सहायता राशि के रूप मे कम से कम दस दस करोड़ रुपए का मानदेय भी ज़रूर दिया जाय.

4. संविधान मे 'परिवारवाद' की  समुचित व्यवस्था हो. राजनीतिक पार्टियां किन्हीं परिवारों की जागीर हों. पार्टी के सदस्य उन जागीरों के कारिंदे भर हों. अगर किसी कारिंदे को पार्टी प्रधानमंत्री  या राष्ट्रपति बना दे तो वह खुद को सचमुच का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति  न समझने लगे. बल्कि तब भी पार्टियों के लिए वफादार बना रहे, अपनी मरज़ी से संवाददाता सम्मेलन तक न बुलवाए, जहां दस्तखत करने को कहा जाए, वहीं  करे, अपनी मरज़ी न चलाए. अपने सुझाव भी न दे. पार्टियों के हर आदेश का सिर नवा कर पालन करे.

5. देश की सभी पार्टियां इस 'परिवारवाद के सिद्धांत का कड़ाई से पालन करें. किसी ऐसी पार्टी  को ऊपर न उठने दिया  जाय, जो किसी 'आइिडयोलोजी' पर आधारित हो.

6. कोई भी संवैधानिक अधिकारी योयता से नहीं, बल्कि, सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष की  'पसंद' से चुना जाए. जिस अधिकारी का पिछला रिकार्ड हेराफेरी, घूसखोरी व घोटाले आदि कारनामों  से विभूषित हो,जिसमे रिस्क लेने की क्षमता कूट कूट कर भरी हो, दुस्साहस की  कमी न हो, जो अपनी सीमाएं लांघ कर कहीं तक भी जा सकता हो,  उसी को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाय. किसी डरपोक या सीधे सादे पप्पू  को या फिर ज़्यादा पढ़ेलिखे  को इस कुरसी पर न बिठाया जाए. क्योंकि एन वक्त पर ऐसे आदमी की अंतरात्मा जाग उठती है. वह तत्काल  ईमानदार, देशभक्त व  धर्मात्मा हो जाता है.

7. सूचना के अधिकार से नेताओं, जजों व ब्यूरोक्रेटों को बाहर रखा जाए. उनकी  संपत्तियों का ब्यौरा मांगने वाले को गैर ज़मानती वारंट निकाल कर सीधे उठवा लिया जाय, उस पर 'रासुका' लगाई जाए, सश्रम कारावास के साथ दस साल के लिए  'अंदर किया जाए.

8. धर्म के ठेकेदारों को हवा मे ज़हर घोलने के लाइसेंस बांटे जाएं. ऐसा माहौल बनने दिया जाए कि  मजहब,जाति  व धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. दंगे भड़क उठें. जितने ज़्यादा लोग मरेंगे, उतना ही तंत्र  मज़बूत होगा.

9. पड़ोसी देशों के साथ दोस्ताना संबंध रखे जाएं, ताकि जब अपने यहां खतरे के बादल दिखाई दें तो पड़ोसी हमला करके कुरसी बचा सकें.

10. ऊपर जितने लोग बैठे हैं - सबके आगे गांधी जी के तीन बंदर रखवा दिए जाएं. आंखें, मुंह और कान बंद रखने की कसम खाकर ही वे कुरसी पर बैठें. चाहे आग लगे, भूकंप आए, बाढ़ आए, जनता महंगाई की  चक्की मे पिसती रहे, बेरोज़गारी बढ़ती रहे, आतंकवादी निहत्थी  जनता को भूनते रहें, रेल दुर्घटनाओं मे  बेकसूर लोग मरते रहें, हवाई कंपनियां गाहकों  को लूटती रहें,  घोटाले होते रहें, पर कोई न तो बोले, न देखे और न सुने.

11. ऐसा कानून बने कि न्यूज़ चैनल वाले, नेताओं के स्टिंग ऑपरेशन न कर सकें. नेता को छींक आए, जुकाम हो या फिर वह किसी घोटाले मे लिप्त हो तो भी बंगले पर जाकर डिस्टर्ब न  करें. इसके बजाय गांवों  मे  जाएं. आत्महत्या करते किसान का सीधा प्रसारण दिखाएं, बिजली, पानी, सड़क, रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए तरसते लोगों का कवरेज लें !  सनसनी  फैलाएं या फिर नेता, अभिनेता व क्रिकेटरों के तलुए ही चाटें.

12. वेतन आयोग आंखों मे धूल झोंकने के लिए बना ज़रूर था, पर वेतन बढ़ाने न लग जाएं. वेतन के लिए  हडताल करने वालों  को 'देशद्रोही  करार दें.  उन पर 'एस्मा का  चाबुक मारें. उन्हें  ऐसे कुचलें कि, देश सिर्फ नेताओं की जागीर नज़र आए. मीडिया को खूंखार कुत्तों की  तरह हड़तालियों  के पीछे लगा दें. याद रहे- सरकारी कर्मचारी घोड़े-गधे होते हैं. जितना पीटो, उतना काम करते हैं. इनके लिए क्या महंगाई ? ये तो चना चबैना खाकर भी जी लेते हैं . न हो कमीज़ तो पांवों  से पेट ढकते हैं. नेता या नौकरशाह ऐसा नहीं कर सकते. वे तो देश के मालिक जो  ठहरे ! 

  इसीलिए  अपने भत्ते  बढ़ाने मे  नेता देर न करें. ध्वनिमत  से प्रस्ताव पास करके भत्ते  बढ़ा लें क्योंकि देखिए महंगाई बढ़ती जा रही है ! जजों  और नौकर शाहों  के लिए  भी महंगाई बढ़ रही है. उनका भी ध्यान  रक्खें !.

  ये एक दर्जन सिफारिश  'संशोधन आयोग' की  अप्रकाशित  रिपोर्ट से साभार हैक   की गई  हैं. इनका जनता से सीधा ताल्लुक है. इसिलए इन्हें  पाना जनता का अधिकार है. इन्हें  चुरा कर जारी किए जाने को गोपनीयता कानून का उल्लंघन न माना जाय.

(समाप्त)




















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