बुधवार, 15 जुलाई 2020

व्यंग्य -- नेता- पुत्रों का अवतार


     हमेशा की तरह इस बार भी ऊपर वाले ने नेता जी का छप्पर फाड़ा था. ऊपर वाले की अदा भी कुछ निराली है. जब भी देगा, छप्पर फाड़ कर ही देगा. पता नहीं क्या दुश्मनी है उसकी छप्पर से ! एनी वे ! फटे हुए छप्पर से नेता जी के लॉन में टपके थे दो सुनहरे रत्न. वो भी एक साथ. जिस दुर्लभ घड़ी में ये  लाल टपके, ठीक उसी वक्त नेता जी विलायत में अपनी चौथी शादी का सातवां फेरा ले रहे थे. 

     उनके मोबाइल की घंटी तो वैसे पहले फेरे से ही बजनी शुरू हो गई थी. मगर नेता जी जनम जनम के बन्धन को अधूरा छोड़ कर कॉल अटेंड कैसे कर सकते थे.  नंबर था उनके तीसरी बार के दूसरे साले का, जो टिकट कटने के फौरन बाद से अपोजीशन से जा मिलने की धमकी देता आ रहा था. सातवां फेरा संपन्न करने के बाद भी नेता जी ने साले को अटेंड नहीं किया. बल्कि एसएमएस भेज दिया-"मीटिंग विद होम सेक्रेटरी. कॉल लेटर."

       एक कहावत और भी है जो इस दुर्घटना के साथ मेल खाती है. वह है- पूत के पांव पालने में ही दीख जाते हैं. जब ये दोनो आत्माएं पृथ्वी लोक  पर उतर रही थीं, ठीक उसी वक्त नेता जी के चुनाव क्षेत्र में आठ रिक्टर स्केल का भयानक भूकंप आया. हजारों की तादाद में जानें गईं. शहर के शहर खंडहरों में तब्दील हो गए. जान माल का ऐसा भारी नुकसान हुआ कि विरोधी नेताओं के दिलों पर सांप लोट गए. क्या भाग्यशाली औलादें हुई हैं ? आते ही पिता की खर्राटे लेती किस्मत जगा दी !

        नेता जी अभी विदेश में ही थे. भूकंप  की खबर पाकर उन्हें यकीन हो गया कि  औलादें वाकई उन्हीं की हैं. और ये भी आभास हो गया कि ये औलादें उनके नाम चार नहीं तो दो चांद ज़रूर लगाएंगी. ठीक वैसे ही, जैसे चन्द्रमोहन जी ने चाँद मुहम्मद बन कर भजन लाल जी के नाम पर दो चाँद जड़े हैं और फिज़ां अलग बिखेरी है.  
 
       ऐसे भूकंप-सुना है, कि पूरी सदी में एकाध बार ही आते हैं. कितना खुशनसीब होता होगा वह मंत्री, जिसके चुनाव क्षेत्र मे ऐसा कमाऊ भूकंप आता होगा.  अपने खुश मिज़ाज नसीब पर इठलाते मंत्री जी ने ज़रा भी देर नहीं की. 

            भूकंप के अगले ही रोज़ उनके चरण-कमल भारत भूमि पर पड़े. आ कर पहले घर जाना चाहिये था, जहां दो नवजात मुंह पिता द्वारा चूमे जाने का इंतज़ार कर रहे थे. मगर नहीं. वे पुत्र मोह में नहीं पड़े. पड़ भी कैसे सकते थे ! हजारों लोगों की मृत आत्माएं उन्हें चुनाव क्षेत्र से पुकार जो रही थीं.अपने प्रिय नेता का अंतिम दर्शन किये बगैर कई  हजार आत्माएं क्षत-विक्षत शरीरों से बाहर निकलने को कतई राजी न थीं. उन्हीं आत्माओं की चीख-पुकार सुन कर आप एअरपोर्ट से सीधे भूकंपस्थल की तरफ बदहवास से भागे.  न पैरों में चप्पलों का खयाल, न चेहरे पर बरबस लपक पड़ती खुशी की बिजलियों की फिक्र.

 अपने चुनाव क्षेत्र को कुरुक्षेत्र में बदला देख, वह गला फाड़ फाड़ कर हंसने लगे. जी हां. ज़्यादा दुखी होने पर वे हंसने लगते थे.

       वह देखते क्या हैं कि  सारा शहर ज़मींदोज़ हो चुका है. हर तरफ लाशें ही लाशें थीं. सियार भेड़िये व चील कव्वे उन ज़िन्दा मुर्दा लाशों को चोंथ रहे थे. उठाईगीर मरी औरतों के गहने उतारने में व्य्स्त थे. चोर ढहे मकानों में घुस कर माल-मत्ते को ठिकाने लगाने में बिज़ी थे. जान माल का ऐसा नुकसान नेता जी ने  होश संभालने के बाद पहली बार देखा था.

      उनके पीछे आनन-फानन में भारी भीड़ जुट गई.  भीड़ जिन्दाबाद के नारे लगा रही थी, जबकि वहां चारों तरफ  मुर्दे आबाद थे.

           अपनी पारखी नज़रों से उन्होने नुकसान का अंदाज़ा लगा लिया था. अंदाज़ा लगा कर भी वह घर की तरफ नहीं मुड़े, बल्कि सीधे हाइकमान के दरबार में हाज़री दी. सज़दा किया. अभयदान की कटीली मुस्कान पाकर आश्वस्त हुए. फिर गुहार लगाई-   अन्नदाता, पूरे पचास हजार करोड़ का नुकसान हुआ है. कम से कम तीस हजार करोड़  तो फौरन रिलीज़ करने पड़ेंगे.

          मुंह मांगी तो मौत भी नहीं मिलती. फिर भी दस हजार करोड़ अप्रूव हो गए. कट कटा कर दो हज़ार करोड़ तो बचे बचाए थे. सब कुछ निपटा कर भी अपने हिस्से में पांच सौ करोड़ तो आने तय थे. मुसकराहट के रूप में जब हाइकमान की अप्रूवल मिल गई, तब कहीं जाकर नेता जी ने घर की सुध ली. घर आए.  भाग्य के धनी सपूतों का माथा सूंघा. नवजात ट्विन  भी वर्दी फादर का स्पर्श पा, खिलखिला कर हंस दिये.

              नेता जी ने इस खुशी के मौके पर कलि-गीता का अठारह अध्याय पाठ रक्खा.

        'कलि गीता का पहला चैप्टर बांचते हुए पंडित जी बोले-हे अर्जुन ! जब जब धरती पर सुख शांति छाने लगती है,  धर्म की बढोत्तरी होने  लगती है, गरीबी की जड़ों में मट्ठा पड़ने लगता है-- तब तब सुख शांति की ईंट से ईंट बजाने के  लिए, अफरातफरी का कंपनी राज जमाने के लिए, धर्म-कर्म की कब्र खोदने के लिए, -भुखमरी ,बेरोजगारी व गरीबी को फिर से  स्थापित करने के लिए -मैं हर युग में धरती पर  अवतार लेता हूं.

हे अर्जुन, ये भारत नामका देश मुझे राइट फ्रोम द बिगनिंग ही पसंद है.  अब देखो, मैने जितने भी अवतार लिये, सब यहीं पर लिये. अमेरिका ब्रिटेन, जर्मनी या चीन में नहीं लिये. यहां के नेता मेरे "संख्या-योग"  का बड़ी लगन से पालन  करते हैं. पिछले साठ बरसों से ब्लैक मनी की रकम को दिन दूना, रात चौगुना करने की उनमें होड़ मची हुई है. अट्ठाईस लाख करोड़ की रकम इस तरह वे अब तक तड़ी पार कर  स्विट्ज़रलैंड पहुंचा चुके हैं. ये नेता चाहें तो  हिन्दुस्तान का सारा विदेशी कर्ज़ एक झटके में उतार दें. हर हिन्दुस्तानी को लखपति बना दें. पर नहीं रे. ये ऐसा नहीं करेंगे. अगर इन्होनें ऐसा कर दिया तो मुझे और इन्हें पूछेगा कौन ! भूख, बीमारी, बेरोजगारी, दलाली, बदहाली  रिश्वत आदि बहनें बेकार, बेरोज़गार  नहीं हो जाएंगी !  देश एक बार फिर सोने की चिड़िया नहीं हो जाएगा ! मगर हे कुंती के पुत्र, मैं इस  देश को गोरों का गुलाम बनाए रखने के लिए कृत संकल्प हूं. देश के हाथ में भीख का जो कटोरा मैने सन सैंतालीस में पकड़ाया था, उसे गिरने  न देने की मैने कसम खाई है. देश के आदमी को हमेशा रोटी कपड़ा और मकान के जंजाल में  फंसा कर रखना मेरा परम कर्तव्य है, जिसका मैं जी जान से पालन करूंगा. तभी तो लोग मुझे याद करेंगे. तभी मेरी ताकत का लोहा मानेंगे. और मेरे इंसानी रूप यानी नेता को मेरी तरह ही पूजेंगे. शायद तुम्हें मालूम नहीं है कि कलि काल में  मैने नेता योनि में अवतार लेने का डिसीजन लिया है.

            कलि-गीता सुनने वालों में ज़्यादातर किराए की भीड़ थी. जैसे अदालतों के बाहर झूठी गवाही देने वाले पेशेवर गवाह हर वक्त  सजी सजाई घोड़ी की तरह तैयार मिलते हैं. ठीक उसी तरह ये किराए के भक्त भी थे, जो सौ रुपए रोज व दो टाइम के खाने की आसान शर्त पर पिछले कई बरस से नेता जी के लिए जुटते आ रहे थे.

         इनमें से एक भक्त जिज्ञासु नेचर का था. बोला-हे पंडित जी, ये जो हमारे नेता जी के घर में दो आत्मा आई हैं, क्या ये भी सेम टु सेम केस हैं !

         पंडित जी ने छाती फुलाते हुए कहा- बहुत अच्छा प्रश्न पूछा राम खेलावन तूने. ये जौन दुइ बच्चा नेता जी के घर पधारे हैं, जे कान्हा और दाऊ के ही अवतार हैं.

-पर हम कैसे मान लें.  एक आवाज़ आई.

         पंडित जी तो ऐसी शंकाओं के समाधान के लिए मानो कमर कसे बैठे थे. तपाक से बोले, ' अरे, चोखे, तू तो निरा भुरकस  ही रह गया रे.  हे अग्यानी, मूरख परानी, इतना बड़ा भूकंप इन आत्माओं के जनम पर आया ! तब भी तू इन्हें पहचान न पाया ! अरे तेरी जान में ऐसा ज़लज़ला पहले कभी सुनाई पड़ा ! किसी के पैदा होने पर इतने लोग पहले कभी मरे !  

       अगले रोज इलाके भर में आग की तरह खबर फैल गई कि नेता जी के द्वारे खुद नन्द दुलारे किसन कन्हैया, बंसरी बजैया, गैया चरैया, माखन चोर पधारे हैं.. साथ में उनके बड़के भैया दाऊ भी आए हैं. चलो अब तो कुछ अपना भी उद्धार होगा. पालागी कर आवें चल के. कौन जाने- यही कल अपने मुलुक के खेवन हार बनें. बधाई देने वालों का तांता लगा था.

इधर  भीड़ बधाइयां दे रही थी, उधर पंडित जी जातकों के ग्रह नछत्तर बांच रहे थे. नेता जी सरधा भक्ति में पगे बैठे जी लगा कर सुन रहे थे-

   हे नेता जी, आपके इन लालों के जनम के ठीक पहले मैनें आसमान में चीलों के झुंड उड़ते देखे थे. और हां. दसहरे वाले मैदान में कल से दो गधे भी गला फाड़ कर रेंकने में लगे हैं. चुप होने का नाम ही नहीं लेते. इधर कल ही डेंगू के दो केस अस्पताल में भरती हुए. कोयल को कांव कांव करते व कव्वे को पंचम सुर में गाते भी कल मैने खुद अपने कानों से सुना. ज़लज़ले में कितनी जानें गईं, इसका कोई हिसाब ही नहीं. ये सारे लच्छन बताते हैं कि ये दोनो बच्चे कान्हा व दाऊ हैं.

        नेता जी मुस्करा कर बोले- सो तो ठीक है पंड्डिज्जी, मगर ग्रह कैसे पड़े, ज़रा ये तो बताओ.

-अरे ऐसे ग्रह तो मैने आज तक नहीं देखे ! बस यूं समझो नेता जी कि द्वापर में रास लीला व महाभारत रचाने के बाद केशव फिर लौट आए हैं. उधर बलदेव जी, याने शेषनाग के अवतार भी अपने प्रभु बिस्नू जी के संगे-संगे  चले आए हैं. अरे नीच का शनि लगन में पड़ा है. ये तो डंडे  बूते पर सत्ता हथियाएंगे. और पैसा ! मत पूछो नेता जी. स्विस बैंक वाले भी इत्ता पैसा जमा करने से हाथ खींच लेंगे. दुनियां के सभी चोर बैंकों में इन्हें पैसा रखना पड़ेगा. और जब तक परलय नहीं आ जाती, जब तक सूरज चाँद बुझ नहीं जाते, तब तक इस खानदान का नाम रोशन रहेगा.

       ये तबीयत से थोड़े रसिया भी होंगे. किसन महाराज की तो सोलह सौ पटरानियां थीं, इन दोनों की लाखों में होंगी.  इनके शासन में आतंकवादी घर में घुस कर उन चालू लोगों को मारेंगे जो बड़े भोले सीधे ईमानदार बने फिरते हैं.

       देश पर विदेशी कर्जे का बोझ इतना बढ़ जाएगा कि हर आदमी के हिस्से कम से कम पर पचास लाख का कर्जा जरूर आएगा. जैसे सूर्य वंश, चन्द्र वंश नन्द वंश फेमस हैं, वैसे ही ये आपके सपूतों का वंश भी  इतिहास में अमर हो जाएगा.

           गुरु महारज आठवें घर में पड़े हैं. पढ़ाई-लिखाई से जरा इनका दूर का ही नाता रहेगा. वैसे भी इन्हे पढ़ने लिखने की जरूरत ही क्या है.  पढ़ते तो गरीब गुरबे हैं. ये तो दुनियां को पढ़ानेे आए हैंं .

     आपके नाम पर चार सौ चाँद लगाएंगे ये दोनो लाल. आप में गाली देने की जो प्रतिभा है- वह पूरी तरह खिल नहीं पाई थी. आप गाली देते वक्त कई चीज़ों का ख्याल रखते हैं- जैसे कि गालियों की भाषा अश्लील न हो जाय, मां बहनों को गालियों में स्थान न दिया जाय वगैरह वगैरह. पर आपके ये सपूत गालियों के केस में किसी भी मर्यादा का पालन नहीं करेंगे. ये ऐसी ऐसी गालियों की खोज करेंगे, जो आज तक न किसी ने दी होंगी और न आगे भी कोई दे पाएगा. संस्कृत के श्लोकों की भांति ये दोनो भाई गालियों का सस्वर तथा धाराप्रवाह  पाठ करेंगे. सुनने वालों का जी चाहेगा कि ये दोनो भाई गालियां देते रहें और वे अनंत काल तक उनका श्रवण करते रहें. ..........

     अभी पंडित जी ग्रह नक्षत्र का फल बता ही रहे थे कि बाहर कोलाहल मच गया. नेता जी के कान में उनके पीएस ने कुछ कहा. सुनते ही नेता जी तीर की तरह बाहर भागे.

    बाहर हाइकमान खड़े  मुस्करा रहे थे. नेता जी जमीन पर सीधे लेट गए व हाइकमान के चरण कमल जकड़ लिये.

    हाइकमान ने प्यार से उठाया. पर सीने से नहीं लगाया. ये उचित भी नहीं था. फिर कटीली मुस्कान आंखों व होंठों पर बिखेर कर बोले- तुम्हारे यहां साक्षात भगवान आए हैं. ऐसा जलजला तो यही हिंट दे रहा है. सोचा-इलेक्शन का टाइम है. हम भी आशीर्वाद  ले लें.

     और फिर हाइकमान उन नवजात नेतापुत्रों की तरफ बढ़ गए, जो हाइकमान को दूर से देख कर ही साष्टांग लेट गए थे.
(समाप्त) 








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