हमेशा
की तरह आज भी इतवार था. मगर एक मायने मे यह बाकी इतवारों से अलग था. आज मैने पक्का
फैसला किया था कि 'इस इतवार' को
दोस्तों-यारों, बीवी-बच्चों या फिर किसी भी मेहमान की बलि
नहीं चढ़ने दूंगा. इसे पूरी तरह खुद के लिए जिऊंगा. आने दो, जिसे
भी आना हो आए, मगर किसी मिर्ज़ा विर्ज़ा के लिए न तो बाहर
निकलूंगा और न किसी को ज़्यादा देर बिठाऊंगा.
बस बैठे बैठे दिन भर जी भर कर टीवी देखूंगा. इतने सारे चैनल आते हैं. कोई न
कोई तो मन पसंद का निकल ही आएगा.
अपने
पक्के इरादे पर मैने अमल भी शुरू कर दिया. कई लंगोटियों के फोन आए. यहां चलेंगे, वहां चलेंगे. मैने सबको दो टूक जवाब देते हुए अपने पक्के इरादे ज़ाहिर कर
दिए. मिर्ज़ा तो कहां बाज़ आते. खुद चले आए. मगर मैने घास नहीं डाली. एक प्याली चाय
सुड़की,फिज़ां का रंग भांपा, व निकल गए पतली गली से.
नाश्ता
करके हम पलथी मार कर जा बैठे बिस्तर पर. रिमोट हाथ में धारण किया और लगे चैनल
बदलने. सोचा-सीरियल देखना तो बेकार है. वहां या तो सास-बहू के झगड़े होंगे, या फिर वही बासी पड़ चुकी प्रेम कहानियां. सोचा, खबरें
देखना ठीक रहेगा.

एक
न्यूज़ चैनल खोला. संवाददाता माइक हाथ में लिए लगभग चीख रहा था- देखिये मैं इस वक्त
ठीक होटल ताज के बाहर खड़ा हूं. मैं आपको बता दूं कि 26 नवंबर के हमले के पच्चीस
दिन बाद ही ताज को पब्लिक के लिए खोल दिया गया है. जो लोग हादसे वाले रोज़ ज़िन्दा
बच कर निकल गए थे, उन्हें आज़ खास तौर पर बुलाया गया है.
चारों तरफ बड़ी चहल पहल है. ताज़ को दुल्हन की तरह सजाया गया है. आप को ये जान कर
खुशी होगी कि यह खबर आप तक पहुंचाने वाले हम पहले चैनल बन गए हैं.
आइये बात करते हैं एक गेस्ट से, जी क्या आप बताएंगे कि 26 नवंबर को आप यहां क्या करने आए थे ?
आइये बात करते हैं एक गेस्ट से, जी क्या आप बताएंगे कि 26 नवंबर को आप यहां क्या करने आए थे ?
आदमी
चिढ़ कर जवाब देता है- मत मारी गई थी मेरी. इसी लिये आया था. और कुछ?
-जी, उसी जगह करीब एक महीने बाद फिर आ कर कैसा लग रहा है आपको ?
-
आप भी तो उसी जगह से एक बार फिर कवर कर रहे हैं. कैसा लग रहा है आपको ?
......धत्त
तेरे की. इतने बड़े देश में और कुछ आज हुआ ही नहीं. अरे और चाहे कुछ हुआ हो या न
हुआ हो, दो तीन किसानों ने आत्महत्या तो ज़रूर की
होगी. चन्द्रयान ने चन्द्रमा के नए फोटो तो भेजे होंगे. जनता ने कहीं न कहीं अपनी
सुरक्षा अपने हाथों में तो ली होगी. ये सब खबरें क्या खबरें नहीं हैं?.....
दूसरा
न्यूज़ चैनल खोलता हूं. वहां भी एक महिला संवाददाता होटल ओबेरॉय के सामने खड़ी
हिंगलिश में चीख रही है-
इट्स
अमेज़िंग. ये होटेल इतनी ज़ल्दी ऑपरेट करने लगेगा किसी ने सोचा भी न होगा. ट्वेंटी
सिक्स को यहां से बच कर जाने वाले लक्की लोगों को आज स्पेशियली इनवाइट किया गया
है. आज उन्हें खाने का बिल नहीं देना होगा. आइये मिलते हैं उस लेडी से जो उस दिन
खुद तो बच गई, मगर शायद उसका हस्बेंड मारा गया.
एक्सक्यूज़ मी, जी मैं आपसे बात कर सकती हूं?
-यस
प्लीज़.
-आपका
नाम ?
-क्या
करेंगी नाम जान कर ? इज़ देअर एनी रिलेशन बिट्वीन नेम एंड
मिसहैपेनिंग ?
-हमारे
दर्शक आपका नाम जानना चाहेंगे.

-मगर
क्यों ? अभी आपके दर्शक मेरा नाम पूछ रहे हैं.
फिर मेरे हस्बेंड का, मेरे बच्चों का नाम पूछेंगे, जो उस दिन मारे गए थे.
-अच्छा
चलिये इतना तो बता दीजिये कि उसी जगह पर दोबारा आकर कैसा लग रहा है आपको ?
-पहले
आप बताइये कि ये हादसा आपके साथ होता तो कैसा लगता आपको ?
-पत्रकार
महिला झेंप जाती है व बात बदल कर कहती है- दोस्तो, चलिये, पूछते हैं, उस बूढ़े
दंपति से --सर, क्या आप छब्बीस नवंबर को यहां थे?..........
तभी
स्टूडिओ पर समाचार वाचक कहता है- तो ये थी
होटल ओबेरॉय से हमारी संवाददाता-कामिनी.
बूढ़े दंपति ने क्या कहा- सुन कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. मगर पहले लेते
हैं एक छोटा सा ब्रेक. .....
शुरू
हो गया ब्रेक ! एक मिनट की खबर और दस मिनट का ब्रेक! ब्रेक में वही त्वचा निखारने वाले शैंपू, क्रीम लोशन, बाथ टबों में नहाती सुंदरियां, उनके मांसल अंग, रिचार्ज कूपन, सीमेंट ...और भी न जाने क्या-क्या...
क्या
बकवास है ! इतने बड़े मुल्क में ताज, ओबेरॉय
ट्राइडेंट से बड़ी आज कोई घटना नहीं घटी ?
ये
क्या तमाशा है ?हमें चैनल वालों की दया पर जीना पड़ेगा?
जो दिखाएं वही देखना पड़ेगा? कोई गाइड लाइंस
नहीं, कोई डाइरेक्टिव्स नहीं. थोपते रहो दर्शकों पर, जो मन में आए ! उपभोक्ता को गुलाम बनाकर रख दिया ! कोई विकल्प नहीं छोड़ा
!क्या ये सरासर गुंडागर्दी नहीं है ?
गुस्से
में बड़बड़ाते हुए चैनल बदलता हूं. यहां कॉमेडी दिखाई जा रही है. इसे देख कर लगता है
कि यहां कॉमेडी की शव यात्रा निकल रही है. चुक गए हैं सभी कॉमेडियन, दिवालिये हो चुके सभी कॉमेडी चैनल. खुद ही सुनाते हैं भोंडे, भद्दे जोक, खुद ही सुनते हैं उन्हें, और खुद ही हंसते हैं उन पर. मुझे तो यह लगने लगा है कि ये चैनल वाले जोक्स
पर नहीं, हम देखने वालों पर हंसते हैं,
कि अच्छा बेवकूफ बनाया तुम्हारा. हमारे थर्डक्लास प्रोग्राम देख कर रोने की बजाय
हंस रहे हो पागल ! इतने
घटिया, इतने फूहड़ प्रोग्राम आखिर पास कैसे हो
जाते हैं? क्या प्रसार भारती वालों की आंखें फूट गई हैं?
दिखाई नहीं देता? ईडियट! कॉमेडी की आड़ में
दिखाते रहो नंगापन ! शर्म बेच खाई. नैतिकता की ऐसी तैसी कर दी ! सेंस ऑफ ह्यूमर
बिगाड़ कर रख दिया लोगों का !
चैनल
बदलता हूं. इस चैनल पर एक बड़बोला पत्रकार दिल्ली पीएमओ से लाइव टेलीकास्ट दे रहा
है. दाढ़ी खुजाते हुए कहता है- हम आपको बता देना चाहते हैं कि यहां पीएमओ में थोड़ी
देर मे जो बैठक शुरू होने वाली है, वो कितनी अहम
है. तीनों सेनाओं के अध्यक्ष यहां आ चुके हैं. डिफेंस मिनिस्टर पहुंच चुके
हैं.पार्टी अध्यक्ष तथा खुद पीएम भी आ चुके हैं.
हम आपको बता दें कि जब भी ऐसी बैठकें हुईं, पड़ोसी
मुल्क पर हमला किया गया. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही हमें अन्दर की खबर
मिलेगी हम उसे आप तक ज़रूर पहुंचाएंगे, ये हमारा वादा
है. बस आप बने रहिये आखिर तक. मिलते हैं
इस छोटे से ब्रेक के बाद. ब्रेक के बाद हम बात करेंगे यहां खड़े लोगों से कि कैसा
लग रहा है उन्हें इस मीटिंग की तैयारियां देख कर........
फिर
शुरू हो गया है विज्ञापनों का वही सिलसिला, जिसमें
हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है. वही एक मिनट में सुखा देने वाले डाइपर, वही त्वचा निखार देने वाले लोशन, वही दांतों की सड़न
रोकने वाले पेस्ट. वही कपड़ों के जिद्दी मैल पल भर में छुड़ा देने वाले डिटरजेंट....
दर्शक
के पास बने रहने के अलावा एक ही रास्ता बचा रह जाता है कि वह चैनल बदल दे. मगर उसे
तो लालच दिया गया है कि ब्रेक के बाद दिखाया जाने वाला है इस मीटिंग का कारण, और फिर पूछा जाने वाला है किसी भी राह चलते से ये सवाल -कैसा लगता है आपको
इस मीटिंग के बाद.
मगर
मुझमें इतना सब्र नहीं. मैं नहीं रह पाता, और बदल देता
हूं चैनल.
इस चैनल पर बताया जा रहा है कि अपना पैसा कहां
लगाएं.
नहीं
आएगी शर्म इन सियारों को. अरे, पैसा तो सब
चूस कर ले गए अंग्रेज़ !पेट काट-काट कर रातों रात अमीर बनने के ख्वाब पाले थे जिन
लोगों ने, सब एक ही झटके में रीत गए ज़ालिम. और ये चैनल सीख दे
रहा है कि पैसा कहां लगाएं ? कल तक जो शेयर सूचकांक 21000
पार कर गया था आज वह 10000 के इर्द गिर्द कैसे आ गया ? बलात्कार
की शिकार महिला की तरह औंधे मुंह पड़े सुबक रहे हैं लुटे-पिटे शेयर. जिनकी पूंजी
डूबी है वे खुदकुशी कर रहे हैं, और ये चैनल सीख दे रहे हैं
कि पैसा किन शेयरों में लगाएं? आखिर किसका भला चाहते हैं ये
चैनल? आम आदमी का या इन बड़ी कंपनियों का? क्या ये दलाल बन गए हैं? क्या इनके पास कोई सामाजिक
मुद्दे नहीं बचे? .....
.... स्टॉक
एक्सचेंज के बाहर खड़ा चैनल का संवाददाता पास खड़े एक आदमी के पास माइक ले जाता है-
-आप
शेयर खरीदते हैं?
-फायदा
होता है?
-फायदा
कभी थोड़ा बहुत हो जाता है पर नुकसान ज़्यादा होता है.
-
अभी पैसा किस सेक्टर में लगाना ठीक रहेगा?
-अभी
मंदी है. सभी में ठीक रहेगा.
-आप
लगाएंगे?
-जी
लगाऊंगा.मैने लोन अप्लाई किया है. जितना भी मिला सब लगा दूंगा. नहीं मिला तो खोली
बेच दूंगा.
संवाददाता
मुस्करा कर कैमरे की तरफ देखता है
-तो
देखा आपने ! हमारा भारतीय निवेशक कितना मेच्योर
हो चुका है ? अपने निवेशक की इसी जवांमर्दी के कुछ और
किस्से हम बताएंगे ब्रेक के बाद........
सिर
पीट कर चैनल बदल देता हूं.
मगर
दिक्कत ये है कि कौन सा चैनल देखूं ? कहीं
आध्यात्म पर ज्ञान बघारा जा रहा होगा, कहीं क्रिकेट के
किस्से होंगे तो कहीं बॉलीवुड के सितारों के इंटरव्यू. हद से ज़्यादा गिरे हुए सवाल
होंगे तो उससे भी ज़्यादा गिरे हुए ज़वाब.
या
फिर दर्शकों से पूछा जा रहा होगा कि आपकी जेब भी कट रही है, आपकी गर्दन भी कट रही है.
दोनों चीज़ें एक साथ कटने से कैसा लग रहा है आपको
?
(समाप्त)
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