व्यंग्य- आषाढ़ के पहले दिन

         यक्ष शर्मा नाम के पुलिस अधिकारी को एक बार मुख्यमंत्री ने कुपित होकर शाप दे दिया। शाप के प्रभाव से यक्ष तत्काल सस्पेंड हो गया। फिर वह दक्षिण में रामगिरि पर्वत पर बने कारागार में निवास करने चला गया।

            वहां अपमान और वियोग के कड़वे घूंट पीते-पीते वह दुर्बल हो गया। तब आषाढ़ मास के पहले दिन उसने आकाश में घिर आए  बादलों को देखा। अपनी व्यथा को बादलों के माध्यम से उसने पत्नी तक भेजना चाहा।

           याचना करता हुआ यक्ष बोला-‘हे मेघ ! गिरफ़्तारी के अपमान से जो पीड़ित हैं, शीतल छाया प्रदान कर आप उनका संताप मिटाते हैं। आप सुदूर हिमालय तक गमन करते हैं, जहां अलकापुरी में मेरी विरह पीड़िता पत्नी छोटे बच्चों के साथ रहती है। आप कृपा करके मेरा संदेश उस तक पंहुचा दीजिये।’

            हे मेघ ! इस रामगिरि पर्वत से आगे बढते ही आप तेलंगाना पहुंचेंगे। वहां चिलचिलाती धूप में औरतें, मर्द और बच्चे खेतों में काम कर रहे होंगे। पसीने से सराबोर उनके काले, अर्धनग्र, मरियल शरीर देखते ही आप समझ जाना कि वे रेड्डी ज़मींदारों के बंधुआ मज़दूर हैं। उनकी आस भरी नज़रें आपकी तरफ ज़रूर उठेंगीं। तब दो घड़ी के लिए उनके ऊपर आप घनी छाया कर देना।

            तेलंगाना में आपको चप्पे-चप्पे पर पुलिस के हथियार बंद सिपाही भी मिलेंगे, जो जगंल में छिपे ‘आंतकवादियों’ को मुठभेड़ में मारने आये होंगे। उन आतंकवादियों का गुनाह है कि बंधुआ मज़दूरों को वे ज़मींदारो के चंगुल से छुड़ाना चाहते हैं, उनकी जो ज़मीन जमींदारों ने ज़बर्दस्ती छीन लीं, वे उसे वापस लेना चाहते हैं। हे मेघ ! सामाजिक न्याय के मसीहा बननेवाले मतलबपरस्त नेता जब फाइवस्टार होटलों में गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे- ठीक उसी वक्त आतंकवादी करार दिये गये नौजवान जगंलों में जान बचाते भाग रहे होंगे। उन नौजवानों को मेरा संदेश देना कि यह लड़ाई चंद दोषियों को सज़ा देकर या पुलिस थानों को बमों से उड़ाकर नहीं जीती जा सकेगी। इसके लिए जनता का साथ चाहिये, सत्ता की ताक़त चाहिये। वरना आतंकवादी बता कर फर्जी मुठभेंड़ों में तुम्हें यों ही ख़त्म किया जाता रहेगा।


            हे चातक पक्षियों के परम सखा ! तेलंगाना से आगे बढ़ने पर आप उड़ीसा के कलिंगनगर पहुंचेंगे। वहां की ज़मीन ख़ून से रंगी होगी। यह ख़ून उन लोगों का है, जो शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे थे। राज्य के सारे खनिज भंडार एक विदेशी कंपनी को बेचे जाने के साथ-साथ लोगों को विस्थापित किये जाने का दुख भी वहां की बस्तियों मे छाया होगा। जुलूस पर गोलियां चलवा कर पटनायक ने जनरल डायर की याद ताज़ा कर दी होगी। लाशों के दाहिने हाथ काटकर जब शव उनके आश्रितों को सौपे गये होंगे तो क्या बीती होगी उनके दिलों पर ? हे मेघ ! आप सभी मृतकों को अपने पवित्र जल की श्रद्धांजलि ज़रूर देना।


            उड़ीसा से आगे जाने पर आपको झारखंड नाम का राज्य मिलेगा। वहां की खड़ाऊं सरकार ने भी सारी लौह संपदा मित्तल ग्रुप के हवाले कर दी होगी। वहां भी आपको बेघर कर दिये गये आदिवासी मिलेंगे। उनकी आंखों में आसू, होंठों पर भयानक ख़ामोशी और दिल में कुछ सवाल होंगे- इस प्रदेश के कुदरती साधनों पर हमारी कोई हिस्सेदारी नहीं ? पांच साल उम्रवाली सरकारों को अमीरों के आगे पूंछ हिलाने और ग़रीबों पर गुर्राने की आदत क्यों है ? हम आजाद़ क्यों हुए ? क्या फ़र्क था, उस गुलामी और इस आजादी में ? अनजान राहों पर किसी नये धरातल की तालाश में भटकते वे लोग प्यासे होंगे। अपना स्वच्छ शीतल जल बरसा कर आप उनकी प्यास बुझा देना।

            हे सिद्ध पुरूषों के हितकारी मेघ ! गंगा के ऊपर उड़ते हुए आप दक्ष प्रजापति के यज्ञस्थान कनखल पहुंचेंगे। वहां तनिक ठहर कर आप नीचे देखना। दिव्ययोग पीठ नामक एक कारखाना आपको दिखाई पड़ेगा । वहां मार कर लाये गये ऊदबिलाव होंगे, बारहासिंगे और हाथियों के सींगों के ढेर होगे तथा यत्र-तत्र बिखरी मानव-खोपड़ियां होंगी-जिन्हें कुछ स्त्रियां इमामदस्तों में कूटकर चूरा बना रही होंगी। कुछ मज़दूर गेट पर धरना दे रहे होंगे। पिछले कई महीनों से भुगतान नहीं की गयी अपनी पगार मांग रहे होगे। ऐसे ढोंगी और धन के लोलुप योगियों से आप कड़क कर कहना- योग और आयुर्वेद भारत की प्राचीन धरोहर हैं। उनका प्रचार तो करें किन्तु व्यापार बंद करे। प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखें।


             हे प्राणि मात्र का संताप हरण करने वाले देव स्वरूप मेघ ! गंगाद्वार से आगे तुम्हें मध्य हिमालय की हरी भरी पर्वत उपत्यकाओं पर बसे अनेक गांव दिखाई पड़ेगे । चीड़,  बांज , बुरांस काफल, भीमल खड़ीक च्यूर आदि कितने ही लाभदायक वृक्षों से घिरे वे अत्यंत सुंदर , शांत आश्रमों जैसे घर , कर्म योगियों जैसे उनमे निवास करने वाले लोग आकाश मे तुम्हें देख कर अत्यंत प्रसन्न हो उठेंगे । खेतों मे कंडों से गोबर की खाद सारती ग्राम बालाएं व बहुएं तुम्हारा मन मोह लेंगी। तनिक रुक कर तुम उन  क्लांत नर- नारियों को अपनी शीतल छाया अवश्य प्रदान करना।


          हे मेघ ! देवप्रयाग से आगे तुम रुद्रप्रयाग पहुंचोगे । यहां अलकनंदा अपनी बहन मंदाकिनी से गले मिल कर प्रसन्नता से तरंगायित हो रही होगी । यहीं से तुम्हारा मन भगवान शिव के धाम केदारेश्वर जाने का भी होगा, किंतु पहले तुम कर्ण प्रयाग की दिशा मे आगे बढ़ना । वहां से आगे उज्ज्वल धवल हिम से ढके उत्तुंग पर्वत शिखर उत्साह के साथ तुम्हारा स्वागत करेंगे। औली की दुग्ध धवल शृंखलाएं तुम्हें रोमांचित कर देंगी । तुम कुछ काल उन नयनाभिराम पर्वत शृंखावलियों मे अवश्य विचरण करना, किंतु अपना अंतिम पड़ाव भी स्मरण करते रहना। 


        हे शीतल जल राशि के संवाहक मेघ ! मार्ग मे विष्णु प्रयाग तथा नंद प्रयाग जैसे अत्यंत पावन प्रयाग तुम्हे दृष्टिगोचर होंगे । नाना प्रकार के दिव्य पुष्पों वाली, अत्यंत शीतल मंद सुगंधित वायु से अठखेलियां करती विस्तृत फूलों के रंग बिरंगी उपत्यका तुम्हे हर्ष विभोर कर देगी । स्थान स्थान पर उगे मनोहर ब्रह्मकमल तुम्हारी ओर आशा भरी आंखों से टकटकी लगा कर निहारेंगे । तुम उनका अभिवादन अवश्य स्वीकार करना ।   


            हे मेघ ! कमल की नाल चोंच में दबाये, मानसरोवर जाते राजहंस आपके आगे के मार्ग में सहयात्री बनेंगे। हिमालय की सुरम्य उपत्यका में बसी अलकापुरी आपको प्रसन्नचित्त कर देगी। वहां जिस घर में उदास विरहिणी घुटनों में मुंह छिपायें सिसकती हो, वही मेरा घर होगा। आपकी गर्जना सुनकर वह अधीर हो उठेगी।


      तब आप धीरे-धीरे उसके समीप जाना और अपना शीतल स्पर्श देकर यक्षपत्नी का संपूर्ण उत्ताप हर लेना । जब वह स्वस्थ तथा शांत हो जाए, हे मेघ ! तब अपनी गंभीर वाणी मे  कहना- आपके पति को ‘एक निर्दोष युवक की नक़ली मुठभेंड़ में हत्या’ करने का आदेश दिया गया था। वह चाहते तो उसे मारकर प्रमोशन पा लेते। पर उन्होंने आत्मा की आवाज़ सुनी और आदेश मानने से इंकार  कर दिया। इस का दुष्परिणाम यह हुआ कि उन्हें मुख्यमंत्री ने शाप दे दिया। शाप के प्रभाव से वह तत्काल सस्पेंड हो गये। फिर एक वर्ष के सश्रम कारावास पर उन्हें रामगिरि पर्वत की जेल में भेज दिया गया। हे विरहाग्रि से दग्ध यक्ष -पत्नी, यक्ष शर्मा जेल सें सकुशल हैं। अपने फैसले पर उन्हें पश्चाताप नहीं है। उन्होंने कहा था कि अन्याय के ख़िलाफ़ किसी न किसी को शुरूआत करनी ही पड़ती है। निर्दोष युवक को अपनी गोलियों से छलनी करके तुम्हारे यक्ष को क्या न मिलता ? प्रमोशन, विदेश यात्रा, मनचाहे स्टेशन पर तैनाती , और भी कई फायदे होते । किंतु तुम्हारे यक्ष ने अंतरात्मा का साथ दिया, उस राक्षस जाति के वंशज मुख्यमंत्री का नहीं।

            हे प्रकृति मात्र को अपने आगमन से हर्षित कर देने वाले मेघ ! यह संदेश पाकर यक्ष पत्नी अपने सारे दुख भूल कर प्रसन्न हो जाएगी ।

और, तब मेरे पूर्वज यक्षराज कुबेर की पावन राजधानी अलकापुरी को सघन व शीतल  वर्षा से आप्लावित करके आप संपूर्ण वातावरण की ऊष्मा शांत कर देना।

(समाप्त)







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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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