व्यंग्य--रावण का पुनर्जन्म


  उस रोज़ रावण बेचैन था। स्वर्ग के फ्लैट में छत पर इधर-से-उधर टहलते हुए वह कुछ बड़बड़ा रहा था। तभी आकाश से नारद जी उतरे। रावण इतना परेशान था कि अतिथि को प्रणाम करना भी उसे याद न रहा।

तब नारद जी ने पूछा-‘क्या समस्या है राक्षस राज ? बड़े चितिंत हैं ?’

रावण बोला-‘आपके स्वर्ग में समस्या और चिंता के अलावा है भी क्या ? जब से आया हूं सिर्फ़ दूध, दही, खीर, फल ! भला ये भी कोई खाना है ? न पीने को कहीं शराब है और न खाने को मांस मछली, न वध करने के लिए सज्जन मानव हैं और न अपहरण करने को आर्य पत्नियां। पेट ख़राब है। गैस बनती है। अश्विनी कुमारों के यहां कई बार चैकअप करा लियां। अल्ट्रासाउंड, सोनोग्राफी, एनएमआर-जाने क्या-क्या खींच लिया मक्कारों ने। ढेरों दवाइयां खिला पिला दीं, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। कुंभकर्ण को नींद नहीं आती। सूख कर कांटा अलग हो गया है। मेंघनाद सपने में भी लक्ष्मण को मारने की बात करता है। मेरी  कंडीशन आपके सामने है ।’

नारद जी मुस्कराते हुए बोले-‘खुलकर कहिये लंकेश क्या चाहते हैं ? ’

रावण-‘हे नारद जी, आप नारायण के काफ़ी क्लोज़ हैं। क्या एक बार फिर हमें भूलोक पर नहीं भिजवा सकते ? भुने हुए भैंसे खाए  और अंगूरों से बनी शराब पिये कितने युग बीत गये ?’

नारद जी ने कहा- ‘हे दशानन, लंका की कंडीशन अभी इतनी अच्छी नहीं है. वहां अभी भी  तमिल चीतों का आतंक है। उनके आत्मघाती दस्तों के निशाने पर आ गये तो फिर यहीं पहुंच जाओगे। कोई दूसरी जगह बताओ तो सिफ़रिश करूं।’

            जब काफ़ी सोचने के बाद भी रावण किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा तो नारद जी बोले-‘मेरी राय में इंडिया तुम्हें सूट करेगा। वहां  हर राज्य में भैंसे तो क्या गाय- बैल, भेड़-बकरी कुत्ते-बिल्ली जिसका गोश्त  खाना चाहो - आसानी से मिल जाएगा. और शराब ! इतने ब्रांड तो तुमने सुने भी न होंगे, पीना तो रहा दूर. अंगूर  की शराब, सेब की शराब, अन्नानास की शराब, मिक्स फ्रूट की शराब, जौ की शराब, - ऐसी ही हजारों किस्म की शराब तुम्हे जब मांगो मिल जाया करेगी. 

रावण - लेकिन हे नारद जी, वह देव भूमि भी कहलाती है. कई राज्यों मे नशाबंदी हुई तो ? 

नारद जी हंसते हुए बोले- हे दशानन, इंडिया मे कानून आदमी आदमी के हिसाब से इंप्लीमेंट होते हैं. जिसके पल्ले न पैसा है, न जो पढ़ा लिखा है, न माफिया गिरोह से है- ऐसे गरीबों  के लिए ही  कानून बनाए गए हैं. जो पैसे वाला है, उस पर  कानून का शिकंजा नहीं कसता. वह हमेशा विन विन पोजीशन मे रहता है. आज  राक्षस-संस्कृति के लिए इंडिया सबसे ज्यादा माकूल जगह है. 

रावण -  पर हे देवर्षि, यहां स्वर्ग मे भी पृथ्वी लोक के कुछ चैनल लगते हैं. उन्हे देखता हूं तो रोज राम मंदिर, राम लला की बातें आती रहती हैं. क्या इंडिया मे जन्म लेना सेफ रहेगा ? 

नारद- अरे दशानन ! अभी क्या कहा मैने ? ये सब राजधर्म है . सब कुछ चलता रहेगा. मूर्तियां तो महान पुरुषों की ही लगेंगी. मंदिर भी उन्ही के बनेंगे, पर काम सारे वही होंगे जो तुम्हे सूट करते हैं. डोंट वरी. 

 रावण खुश होकर कहने लगा-‘आपका सुझाव मुझे मंजूर है नारद जी।  इंडिया मे जन्म लेकर मैं राम-भक्तों का वह हाल करूंगा कि वाल्मीकि को दूसरी रामायण लिखनी पड़ेगी। हे महर्षि, अब कृपा करके मुझे यह बताएं कि इंडिया के  किस  प्रदेश मे  जन्म लेना ठीक रहेगा ? 

नारद जी बोले- हे लंकेश, मेरे ख्याल से तो  उत्तराखंड बेस्ट रहेगा. 

रावण- बट उत्तराखंड ही क्यों नारद जी ?

नारद जी बोले- पिछली बार भी तुम वहीं पैदा हुए थे . तुम्हारे दादा पुलस्त्य ऋषि व तुम्हारे पिता विश्वश्रवा उत्तराखंड मे ही  रहते थे ! तुम्हारा सौतेला भाई कुबेर भी वहीं चमोली जिले मे अलकापुरी मे रहता था. वहीं तुम्हारी आराध्य शिव का निवास भी है. वहीं दशोली नामक स्थान पर तुमने  अपने दस शीश काट कर  शिव अर्पित किये थे. बाकी  खाने पीने की कोई  प्रॉब्लम नहीं होगी. 

रावण बोला- हे  देवर्षि, जरा विस्तार से बताइये कि आज उस देवभूमि की सिचुएशन कैसी है ?   

नारद जी बोले- ‘हे लंकेश, उत्तराखंड मे भी कोरोना फैला हुआ है. स्कूल कॉलेज महीनों से बंद पड़े हैं. किंतु शराब के ठेके खुले हैं. अस्पताल  हैं पर दवाइयां गायब हैं. डॉक्टर हैं पर सुविधाएं नहीं हैं.  अंग्रेज़ी  और देसी ठेके तुम्हे गली गली मे मिल जाएंगे. शाम होते ही देवताओं की संतानें शराब पीकर मस्त हो जाती हैं। तुम तो एक जानकी का किडनैप करके बदनाम हो गये, यहां तो अपहरण व्यवसाय बन गया है. जब इच्छा हो किसी को भी  उठवा कर खा जाना.  रोजगार की समस्या वहां बिल्कुल नहीं है. क्योंकि ज़्यादातर बेरोजगार पलायन कर गए हैं. हजारों गांव उजड़ गए हैं. घरों पर ताले लटके हैं. 

रावण यह सुनकर डर गया, और बोला, ‘जब वहां कोई रोजगार नहीं है तो मै काम क्या करूंगा ?  मेरी इनकम का जरिया क्या होगा ? मुझे तो खुला ख़र्च करने की आदत है महर्षि।’

नारद जी बोले-‘नौकरियां थोड़ी  बहुत हैं राक्षसराज, पर ख़रीदने के लिए  पांच- सात लाख रूपए होने चाहिएं । खाए बगैर उत्तराखंड ही क्या, सारे इंडिया में अब काम नहीं होता। पर  तुम नौकरी के लफड़े में पड़ना ही मत। सीधे पालिटिक्स में उतर जाना। टेलेंट तो तुममें है ही। थैलियां चढ़ाते रहना. प्रमोशन पाते रहोगे और जल्दी ही मंत्री, मुख्यमंत्री तक पहुंच जाओगे।’

            रावण ने पूछा-‘हे नारद जी, मंत्री बनने के बाद मुझे क्या करना होगा ?’ कृपा करके मार्गदर्शन कीजिये।

            नारद जी बोले-‘पहले तुम अपनी राक्षसी वासनाओं को तृप्त करना। तीन-चार साल में जब मन भर जाय तब कुंभकर्ण को एमएलए और मेघनाद को एमपी बनवा देना। अखबारों और टीवी चैनलों पर बड़ी बड़ी घोषणाएं करवाते रहना. दिखावा ऐसा करना कि तुम सबके हो, लेकिन काम केवल राक्षस जातिवालों के ही  करना. अपने रिश्तेदारों को मलाईदार पदों पर बैठाना, चमचों को लाइसेंस, परमिट दिलवाना.  और हेराफेरी करके इतनी दौलत जोड़ लेना कि सात पुश्तों तक तुम्हारे खानदान मे पैदा होने वाले  राक्षस आराम से बैठ कर खा सकें।

रावण ध्यानपूर्वक सुन रहा था।

नारद जी कहते जा रहे थे-  ‘हे रावण, औलादों का भविष्य सुरक्षित करने के कुछ आदर्शवादी तुम्हारे  यज्ञ में बाधा डालेंगे। गुप्त कैमरा लेकर तुम्हारे राज खोलेंगे। अखबारों और टीवी में सच छपेगा तो तुम्हारी क्या इज़्ज़त रह जायेगी। भले ही तुम्हारी खाल गैंडे-सी सख़्त और मोटी होगी, और सरे बाज़ार नंगे होकर भी तुम्हें शर्म नही आएगी, पर पार्टी चुनाव हार जायेगी। सत्ता सुख भोगने के बाद अपोजीशन में बैठना तुम्हे बहुत खटकेगा ! अतः मीडिया को हमेशा अपने पक्ष मे रखना।’

            रावण ने सहमति में सिर हिलाया और पूछा-‘हे नारद जी, आपका एक-एक शब्द मेरे हृदय में बैठ गया है, लेकिन इन ख़तरनाक जंतुओं से मैं डर गया हूं। क्या ऐसे जंतु और भी होंगे भूलोक में ?’

            नारद जी बोले- ‘हां दशानन, कुछ और कीड़े-मकौडे़ भी तुम्हारे यज्ञ में बाधा डालेंगें, जैसे अंश कालिक टीचर, बैंकवाले, बिजलीवाले व  फ़ैक्टरी वर्कर आदि । इन्हे सपोर्ट करेंगी यूनियनें व पढे-लिखे बेरोजगार। ये  जुलूस निकालेंगे, धरना देंगे, अनशन करेंगे, बंद कराएंगे। तब तुम कुंभकर्ण को यूज़ करना।  उसकी नींद न खुले तो पुलिस कब काम आएगी । आंदोलन करने वालों की ऐसी तुड़ाई कराना कि महीनों तक वे बिस्तर से न उठ सकें। 

रावण- अगर तब भी स्थिति नियंत्रण मे न आई तो ? 

नारद - तब इन्हे शहरी नक्सल घोषित करवा देना. इन पर देशद्रोह के मुकदमे ठुकवा देना. जब जेल मे सड़ेंगे तो अपने आप दिमाग सही हो जाएगा. 

            यह सुनकर भी रावण की चिंता दूर नहीं हुई। वह बोला-‘आप तो जानते हैं नारद जी, मैं निरंकुश स्टाइल का राजा हूं। इतने सारे बंधनों के बीच राज-काज चलाना अपने बस का नहीं। मेरा गुस्सा भी आपसे छिपा नहीं है। फिर कैसे काम चलेगा ?’

           नारद जी मुस्कराए और बोले- एक-एक करके विपक्षी नेताओं का सफाया कराते रहना। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। 

            फिर कुछ रूककर नारद जी बोले- ‘पर एक बात गांठ बांध लो दशानन। तुम जितना चाहे उल्टा-सीधा करना, पर लोकतंत्र की माला फेरना मत भूलना। सुबह कौमी दंगे कराओ तो शाम को सेकुलरिज़्म पर प्रेस कांफ्रेंस ज़रूर करा देना। ‘डेमोक्रेसी’ और ‘सेकुलरिज़्म’ इन दो शब्दों में अथाह शक्ति छिपी है। अतः शाम, सुबह, दोपहर, हमेशा इनका जाप करना। इससे तुम्हारे सारे पाप क्षीण होते रहेंगे।

रावण अब भी परेशान था। नारद जी ने पूछा-‘अब क्या दिक्कत है ?

रावण बोला-‘नारद, जब जब भी मैं भूलोक में जन्म लेता हूं। नारायण भी क्षीर-सागर छोड़ वहां चले आते हैं और मुझे डिस्टर्ब करते हैं। यदि इस बार भी वे आये तो ?’

नारद जी बोले-‘उन्हें हाइ कमान से कहकर राज्यपाल बनवा देना।’

यह सुनकर रावण निश्चिंत हो गया तथा  कुंभकर्ण और मेघनाद को साथ ले भूलोक पर उतर आया।

(समाप्त)







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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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