रविवार, 17 मई 2020

मिर्जा ने बनाई कोरोना की दवाई

                 

लॉक डाउन की वजह से दफ्तर बंद था. घर अब जेल लगने लगा था. गुस्सा इस बात पे आ रहा था कि जिंदगी मेरी है. मरूं या जिऊं- इस तरह घर मे क्यों कैद कर रक्खा है  ? इतनी फिकर है तो बेरोजगारों को नौकरी दो, भूखों को खाना दो, इलाज के लिए  अस्पताल बनवाओ ! महंगाई घटाओ ! 
ऐसे मे मरदूद मिर्जा की बड़ी याद आ रही थी. कमबख्त पहले तो चौबीसों घंटे छाती पर मूंग दला करे था,  न खाने दे, न सोने दे. जब देखो किसी सय्याद की तरह इर्द गिर्द मंडराता रहता. और अब हफ्तों से घर पर पड़े हैं तो मिर्जा के दुश्मनों के साए भी दूर तक नज़र नही आते !

फिर समझ मे आया कि लॉकडाउन चल रहा है. मिर्जा यहां आएगा तो कोई न कोई देख लेगा और पुलिस को फोन कर देगा. फिर आगे क्या होगा- उसी को सोच कर शायद मिर्जा बाहर नही निकल पा रहे हैं.

मिर्जा का घर दो गली छोड़ कर कब्रिस्तान से सटा हुआ था. इलाका हॉट स्पॉट होने की वजह से पूरी तरह सील था. सड़कों पर मौत का सा सन्नाटा पसरा था. बाहर से किसी के आने की कोई गुंजाइश न थी. हमने सोचा क्यों न आज मिर्जा की खोज खबर ली  जाए.  पता तो चले कि मुगलिया सल्तनत की आखिरी  निशानी महफूज़ है या कोरोना की भेंट चढ़ गई ?

सो चारों तरफ देखते हुए चौकन्ने हो कर हम मिर्जा की “सो काल्ड”  हवेली की तरफ लपके.

बाहर मिर्जा कहीं दिखाई न पड़े. आहाते मे मातम सा छाया हुआ था. तभी छत से आवाज़ आई – खुशामदीद मियां. मिर्जा ऊपर है.

बगल मे ही सीढ़ियां थीं. ऊपर पहुंचे . देख कर कुछ खौफ सा हुआ. मिर्जा के सामने तमाम जड़ी बूटियां बिखरी पड़ी थीं. कुछ सूखी तो कुछ हरी. एक तरफ कड़ाही मे तेल जैसा कुछ उबल रहा था. दूसरी तरफ हरी ताज़ी बूटियों का शीरा निकाला जा रहा था. दो तीन शागिर्द इमामदस्ते मे लाल पीली कुछ अदबियात कूट पीस रहे थे. खुद मिर्जा खरल मे बूटियों के शीरे के साथ  कुछ पिसी हुई दवाइयां  घोट रहे थे. बगल मे चार पांच मरे हुए चमगादड़ रखे थे.

चमगादड़ों की तीन चार अदद लाशें देख कर अपने होश फाख्ता हो गए. इन्ही मरदूद परिंदों की वजह से तो आज दुनिया भर मे कोरोना का कोहराम  मचा हुआ था ! और मिर्जा बेखौफ उन्ही लाशों के बगल मे बैठे हकीमी जौहर दिखा रहे हैं !

हम चुपके से पीछे हटते हुए खिसकने के चक्कर मे थे कि मिर्जा ने झट हाथ पकड़ कर बिठा लिया.  बगल मे रखे पानदान से निकाल कर दो- दो  गिलौरियां हमेशा की तरह  दोनो कल्लों मे धकेलीं.  फिर किसी कसाई की तरह बेरहमी से उन्हें कुचलते हुए चीखे- अमां यहां कोरोना का इलाज मुकम्मल हुआ नहीं कि जनाब तशरीफ ले जाने लगे ! ये हो केसे सकता है मियां ?

हमने कहा – आहिस्ता बोलो मिर्जा, तुम्हारे हमदर्द पड़ौसी लटूरे ने सुन लिया तो अभी बुला लेगा पुलिस को. नमक मिर्च लगा के बताएगा कि कैसे कुछ लोग सरकार की कोरोना हटाने की मुहिम को पलीता लगा रहे हैं? उसके बाद जो होगा शायद मिर्जा की खड़खड़ाती हड्डियां उसे बरदाश्त न कर सकें !  

हमने चुपचाप मिर्जा के बगल मे बैठने मे ही भलाई समझी.  मिर्जा बोले- जनाब कोरोना किस बला का नाम है यहां तो कैंसर और टीबी वालों को चलता कर चुके हैं. यूनानी इलाज से बेहतर न तो एलोपैथी है और न तुम्हारी बैद्यक. ये देखो मियां पारे का झक्कास सुफैद कुश्ता. बस्स ! एक चावल खुराक कोई खा ले तो रगों मे चार सौ चालीस का करेंट न दौड़ जाए तो हमारा नाम मिर्जा नही चमगादड़ रख देना.

जी मे तो आया कि कह दें- नाम रखने की जरूरत है कहां? तुम तो साक्षात चमगादड़ हो. शक्ल सूरत मे, पहनावे मे बिल्कुल चमगादड़ के फूफा लगते हो. जैसे अभी तक उल्टे लटके थे किसी पिलखन पर और कोई पकड़ कर लिटा गया छत पर.

हमने कहा मिर्जा ये कुश्ता खुद पर क्यों नहीं आजमाते
खिसिया कर बोले मिर्जा- अच्छा मजाक कर लेते हो मियां. चलो एक हुनर तो सीखा हमारी सोहबत में.   जनाब आप की खिदमत मे तो हम पेश करेंगे शिंगरफ का सौ आंच मे पकाया हुआ सुर्ख कुश्ता. एक सींक कुश्ता पचाने के लिए रोज दो सेर पक्का दूध चाहिए. मक्खन , घी कमस कम पाव भर अलग से.  फिर दिन भर मे कोई पांच सेर मट्ठा. जब जाकर उसकी गरमी झेल सकोगे मियां. ज़रा बता दो दुनिया को कि मिर्जा ने कोरोना की दवाई बना ली है. अब कोरोना से खौफ खाने की कोई जरूरत नहीं. दो गज दूरी की तो बात ही दूर, दस दस आदमी भी एक के ऊपर एक चढ़े हों तब भी कोरोना की क्या मजाल कि फैल कर दिखाए !

उधर कड़ाही मे रक्खा तेल उबलने लगा. मिर्जा ने मरे चमगादड़ तेल मे दाखिल किये और फिर नीले पीले सफूफ छिड़क कर कलछी से चलाने लगे. हमने कहा – ये क्या बन रहा है मिर्जा ?

मिर्जा झट से बोले- देखो मियां हकीमी का पहला उसूल है कि जो बीमारी जिस चीज़ से फैलती है ठीक भी उसी चीज़ से होती है. ये बात पुरानी पोथियों मे दर्ज है.

हमने शक जाहिर किया- मिर्जा,  कोरोना को आए जुम्मा जुम्मा पांच या  छै महीने ही बीते हैं. फिर पुरानी किताबों मे कोरोना कहां से आ गया ?

मिर्जा सकपकाए . फिर संभल कर बोले- मियां ये जो सोशल डिस्टेंसिंग की बातें हो रही हैंगी , ये सब हमारे हकीम पहले से बताते थे. दवाई का एक परहेज ये भी था कि जब तक दवाई चल रही है तब तक अलग सोवो. अलग खाओ पकाओ. जब तबीयत ठीक हो जाए तो फिर मिल बैठ कर खाओ पीओ

तेल मे उबल रहे चमगादड़ों मे मिर्जा कई तरह के  चूरन मिलाते जा रहे थे. उछल उछल कर वह कभी एक शीशी खोलते, तो कभी दूसरा डिब्बा. चेहरे से  गजब  का सेल्फ कंफिडेंस   टपक रहा था.

तभी हमे बूटों की धीमी आवाज सुनाई पड़ी, जो करीब आती जा रही थी. हमारे चेहरे पर उड़ती हवाइयां देख मिर्जा चहके,  अमां ये रोनी सूरत मुबारक हो आपके दुश्मनों को. मिर्जा के पास आओ तो खुश होके और जाओ भी खुश होके.

तभी लाठी का भरपूर वार मिर्जा की पीठ  पर हुआ. दूसरा वार हमारी पीठ पर और शागिर्दों को तो वहीं छत पर लिटा कर रुई की तरह धुना जाने लगा.

दरअसल हमारा मोबाइल ऑन था. उसमे आरोग्य सेतु एप कल ही डाउन लोड किया था. उसी से पुलिस को मालूम चला  कि मिर्जा कोरोना पोजिटिव हैं और तीन लोग जो उनके इर्द गिर्द बैठे हैं वे सही सलामत हैं. बस ! फौरन पुलिस मौकाए वारदात पर आ धमकी और शुरू हो गया महाभारत का  भीष्म पर्व.

पिछले चौदह दिनों से हम भी भर्ती हैं आइसोलेशन वार्ड में . बगल की वार्डों मे मिर्जा और उनके शागिर्द आइसोलेशन फरमा रहे हैं. मिर्जा की चार पसलियां और हंसली की हड्डी तो उसी रोज टूट गई थी अब सांस भी उखड़ने लगी है. वेंटिलेटर मंगवाया है. बता रहे हैं एक महीने से पहले वेंटिलेटर पहुंचना मुश्किल है. 

इधर सुना है मिर्जा अपनी बनाई कोरोना की दवाई की  जिद पर अड़े  हुए हैं.

(समाप्त) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें