मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से चल रहा लॉकडाउन आज पचास दिन से ऊपर पहुंच चुका है. इस दौरान कई इलाकों को चिन्हित करके हॉट स्पॉट घोषित किया
गया. उन इलाकों को सील कर दिया गया. सड़कों
पर बेरीकेडिंग कर दी गई. न कोई आ सकता था,
न जा सकता था. सारे देश मे
हवाई उड़ानें बंद कर दी गईं,
चाहे घरेलू हों या
अंतर्राष्ट्रीय. ट्रेन सेवाएं,
सार्वजनिक तथा निजी
अंतर्राज्यीय बस सेवाएं बंद हो गईं.चौपहिया वाहनों का आवागमन बंद कर दिया गया.
शॉपिंग मॉल, स्कूल-कालेज, सिनेमा
हॉल, बंद कर दिये गए. सरकारी, गैर
सरकारी दफ्तर, कल कारखाने सभी बंद कर दिये गए. तीन महीने
मार्च, अप्रैल व मई के लिए रिज़र्व बैंक के
निर्देशों के अनुसार लिए गए कर्जों की अदायगी पर रोक लगा दी गई. कहा गया कि नब्बे दिन तक किश्त न चुकाने पर भी किसी को विलफुल
डिफाल्टर नही माना जाएगा.
इस सारी कवायद के पीछे वजह यही थी कि कोरोना वायरस को
फैलने से रोका जा सके. चीन के वुहान शहर की एक प्रयोग शाला से निकल कर यह वायरस
वहां के पशु बाज़ार पहुंचा, और फिर संक्रमण बढ़ता ही चला गया. सोशल
मीडिया पर वुहान शहर की भयानक तस्वीरें आने लगीं. संक्रमितों को उनकी मर्जी के
खिलाफ बलपूर्वक खींच कर अस्पतालों मे भर्ती किया गया. बहुमंजिली इमारतों को सील कर
दिया गया ताकि कोई भी बाहर निकल कर संक्रमण न फैला सके. लाखों पालतू सुअरों और बत्तखों को जेसीबी मशीन से खाइयां खोद कर जिंदा
ही दफना दिया गया. वुहान के शमशान घाटों
से रात को ऊंची ऊंची लपटें देखी गईं. सेटेलाइट के जरिये पता चला कि
सल्फर डाइ ऑक्साइड का हवा मे अनुपात सामान्य से बहुत ज़्यादा बढ़ गया. इसी से
सिद्ध हुआ कि वहां भारी तादाद मे शवों को जलाया जा रहा था. अपुष्ट स्रोतों से पता चला कि कम से कम
अस्सी हजार लोगों की वहां मौत हुई. सरकारी
खबरों के अनुसार यह आंकड़ा तीन हजार के आस पास बताया गया.
इस तरह जाकर वुहान मे संक्रमण पर काबू पाया गया.
लेकिन अभी हाल मे दोबारा वुहान मे संक्रमितों की जानकारी
मिल रही है. कहा जा रहा है कि वायरस आक्रमण का यह दूसरा चरण है. भले ही सार्वजनिक
आवागमन खुला है. स्कूल दुकानें दफ्तर भी खुल गए हैं लेकिन दूसरे चरण के संक्रमण का
खतरा भी बरकरार है.
भारत मे लॉकडाउन के कारण शुरू मे वायरस बहुत धीरे धीरे
फैल सका. आपसी संपर्क न हो सके इसके लिए सभी तरह के आवागमन बंद किये गए. भीड़ भाड़
वाली जगहों जैसे स्कूल, शॉपिंग मॉल, सिनेमा
हॉल आदि बंद कर दिये गए. जहां संक्रमण ज्यादा था उन इलाकों को हॉट स्पॉट के रूप मे चिन्हित करके बिल्कुल सील कर दिया
गया. ताकि कोई कोरोना वाहक अन्य क्षेत्रों मे इसे न फैला सके.
इसका फायदा भी दिखाई पड़ा. काफी समय तक भारत स्टेज 1 व
स्टेज 2 मे रहा. सबसे खतरनाक स्टेज 3 मे भारत न जा सके इसके लिए एड़ी चोटी का जोर
लगाया गया. संक्रमण जांचने वाले किट भी
बाहर से मंगाए गए . आज प्रतिदिन करीब सत्तर हजार लोगों की जांच की जा रही है.
रोगियों को आइसोलेशन मे रख कर इलाज किया जा रहा है. इसके नतीजे भी अच्छे मिल रहे
हैं.
लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद कम्युनिटी ट्रांसमिशन
(स्टेज 3) को आने से नही रोका जा सका है. महाराष्ट्र, गुजरात, बंगाल, मध्यप्रदेश
आदि राज्य इसके उदाहरण हैं.
शुरू मे कहा गया कि यह वायरस हवा से नहीं फैलता. रोगी के
छींकने से वाष्प कणों के साथ अधिक से अधिक एक मीटर यानी तीन फीट तक ही जा सकता है.
लेकिन अब कहा जा रहा है कि यह वायरस हवा से भी फैल सकता है. अगर हवा से भी यह
वायरस फैलता है तो फिर इसे लॉकडाउन से रोकने की कोशिश ज्यादा सफल नही हो सकती. रेत
के बांध से नदी का बहाव नहीं रुकता. हमे कुछ और सोचना होगा.
इसके लिए सरकार ने आरोग्य सेतु नामका एक एप विकसित कराया
है, जो हमारी हर हलचल पर नजर रखेगा. अगर हमारे
आस पास कोरोना संक्रमित कोई व्यक्ति है तो इस एप से तत्काल अधिकारियों को मरीज की
लोकेशन मिल जाएगी.
लेकिन एप सिर्फ आपको मरीज की लोकेशन बता सकता है. उसके
बाद की क्या तैयारियां हैं?
दूसरे इस एप को अनिवार्यत: लोड
कराने के निर्देश सरकार की तरफ से अखबारों मे प्रकाशित किए गए हैं. इस अनिवार्यता
के खिलाफ केरल हाई कोर्ट मे याचिका दायर हुई है. कहा जा रहा है कि वायरस की
जानकारी की आड़ मे निजता के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है. जस्टिस कृष्णा ने इस एप को अनिवार्य किये जाने को असंवैधानिक
बताया है. उनके अनुसार ऐसी अनिवार्यता नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का
हनन करती है.
संक्रमण रोकने के लिए ही हमे लॉकडाउन तथा एप को अनिवार्य
रूप से लोड करवाने जैसे अलोकतांत्रिक कदम का सहारा लेना पड़ा. देश हित मे लोगों ने
इसका स्वागत भी किया और करीब पचास दिन से देश का औद्योगिक उत्पादन ठप पड़ा है. मजदूर
शहरों मे लाखों की तादाद मे बेकार फंसे हुए हैं. फसलें काटने और गहाने के लिए कुछ
छूट मिली थी लेकिन नई फसल बोना,
बीज, ऊर्वरक,
जुताई,
बुवाई सभी गतिविधियां या तो बंद हैं या फिर बहुत
धीमी. स्कूल कालेज डेढ़ महीने से बंद पड़े हैं ऑन लाइन माध्यमों से पढ़ाई का स्तर
पहले जैसा नही रह गया है. कल कारखानों मे काम न होने से कर्मचारियों के वेतन मे
कटौती हो रही है. विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है. जीएसटी से इस तिमाही मे करीब
अट्ठाइस हजार करोड़ रुपए ही आए हैं जबकि पहले यह रकम एक लाख करोड़ से ऊपर रहती थी.
जीडीपी की ग्रोथ लगभग शून्य रहने की आशंका
रेटिंग संस्थानो ने जताई है. विदेशी निवेश की हालत भी चिंताजनक है. तमाम सुविधाएं
दिये जाने की घोषणाओं के बावजूद चीन से निकल रही करीब 1000 कंपनियों मे से किसी ने
भी हमारे यहां आने मे रुचि नही दिखाई है.
जबकि चीन,
अमेरिका आदि देशों ने या तो
उत्पादन बंद ही नही किया या किया भी तो जितनी जल्दी हो सका उसे शुरू भी कर दिया.
आज हम उस दोराहे पर खड़े हैं जहां से हमे यह तय करना है
कि कोरोना से आगे भी क्या इसी तरह निपटा जाएगा या फिर कोई और तरीका सोचा जाएगा ?
स्वेडेन नार्वे आदि देशों ने लॉकडाउन वाला तरीका नही अपनाया. उनका कहना था कि हर आदमी अपनी हिफाज़त खुद कर सकता है और अच्छी तरह कर सकता है. सरकार चिकित्सा सहायता दे सकती है तथा रोगियों की पहचान कर सकती है. इस तरह रोगी का आत्मरक्षा तंत्र खुद वायरस के खिलाफ रणनीति बनाएगा कि उससे कैसे निपटना है. धीरे धीरे शरीर की रक्षा प्रणाली वायरस के स्वभाव से परिचित हो जाएगी और इम्युनिटी बढ़ाने वाली घरेलू वस्तुओं से ही वायरस अटैक से निपटा जा सकेगा.
प्रश्न यह है कि गवर्नेंस को किस सीमा तक नागरिक के जीवन
मे हस्तक्षेप करना चाहिए ?
यदि स्वतंत्रता के प्राकृतिक सिद्धांत के आधार पर बात
करें तो गवर्नेंस निर्देश न दे बल्कि चिकित्सा, और
जांच वगैरह की सुविधा दे. काम काज बंद हो गया है तो उस दौरान निशुल्क भोजन की व्यवस्था
करे.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष ने अभी हाल
ही मे कहा था कि हम मानव संकट से मानवाधिकार संकट की तरफ बढ़ रहे हैं.
इस वाक्य मे यही चिंता छिपी हुई है कि सरकारें कोरोना संकट
की आड़ मे अलोकतांत्रिक होती जा रही हैं. किसी भी नीति को लागू करने से पहले उसे संसद
से पारित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नही होता. सरकारें या सत्ताधारी दल स्वयं ही निर्णय
ले रहे हैं. सत्ता जब अधिनायकवादी आचरण करने लगती है तो उसका सबसे ज्यादा दुष्परिणाम
उन लोगों को झेलना पड़ता है जो समाज मे सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं. सक्षम और संपन्न लोग अपने रसूख के बल पर या पैसे
की ताकत से बच जाते हैं.

इस निर्णय से सरकार का राजस्व तो जरूर बढ़ा, लेकिन
उसकी भारी कीमत हमारे समाज के हर वर्ग को चुकानी
पड़ रही है. कॉलेज की लड़कियां जिस तरह आठ दस बोतलें खरीद कर खुले आम ले जा रही हैं इसका
हमारे युवा वर्ग के चरित्र पर क्या प्रभाव पड़ रहा है क्या हमने कभी सोचा ? आज
हम मुस्लिम समाज की आलोचना करने से नहीं थकते, लेकिन
क्या किसी मुस्लिम लड़की को इस तरह खुले आम शराब की बोतलें खरीद कर ले जाते देखा है
किसी ने ? क्या फैशन के नाम पर किसी मुस्लिम लड़की के अर्ध
नग्न शरीर देखे हैं किसी ने ?

स्वास्थ्य की बात पूरी हुई. अब बात करते हैं शिक्षा की. अचानक
एक दिन फरमान जारी कर दिया जाता है कि स्कूल कॉलेज बंद कर दिये जाएं. कोरोना न फैले
इसलिए. चलिये ठीक है. पढ़ाई ऑन लाइन की जाए. टीचर ऑन लाइन बच्चों से जुड़े. उन्हे लेक्चर
दे. बच्चे उसे सुनें. और समझें.
लेकिन क्या हर बच्चा स्मार्ट फोन खरीद सकता है ? क्या
हर स्कूल मे ऑन लाइन शिक्षा देने के पर्याप्त
संसाधन मौजूद हैं ? क्या इस तरह बच्चे टीचर से अपनी शंकाओं का समाधान
उसी तरह कर पाएंगे जैसे क्लास मे करते थे ?
क्या ऑन लाइन प्रैक्टिकल उतने
प्रभावी हो सकते हैं जितने कि खुद बच्चे द्वारा अपने हाथ से करने पर होते? क्या
शारीरिक प्रशिक्षण जैसे खेल कूद,
फिजीकल एजूकेशन उन्हे उसी तरह
मिल सकेंगे जैसे स्कूल मे मिलते हैं?
क्या परीक्षाएं भी अब ऑन लाइन
होंगी ? आज ऑन लाइन बैंकिंग सिस्टम के दुष्परिणाम हम
झेल रहे हैं . हैकर्स डेटा उड़ा लेते हैं. नकदी खाते से गायब हो जाती है. क्या ऑन लाइन परीक्षाओं मे भी ऐसा नहीं हो सकता?
जब बच्चे इस तरह की पढ़ाई से ऊब जाते हैं तो या तो उनका मोबाइल
खराब हो जाता है, या इंटर नेट कनेक्टिविटी टूट जाती है, या
वह बीमार हो जाते हैं या लेक्चर “गलती से“ डिलीट हो जाता है. या फिर “लेक्चर आता ही
नहीं” . अब हमारा सारा ध्यान बच्चे की इन चालाकियों या फिर सिस्टम की खामियों से जूझने
मे ही लग जाता है. बच्चे की पढ़ाई मुख्य काम न होकर गौण हो जाती है, और
इन समस्याओं का निराकरण मुख्य काम हो जाता है.
आज दुनिया के विकसित देश भी शिक्षा को स्कूलों मे ही देना
पसंद करते हैं. वे तो हमसे कई गुना ज्यादा विकसित हैं. उनकी इंटरनेट स्पीड, उनकी
डेटा सिक्योरिटी, उनके मोबाइल एप्लीकेशन हमसे कई गुना ज्यादा एडवांस
हैं लेकिन फिर भी वे शिक्षा का ऑनलाइनीकरण नही कर रहे ! कुछ तो
कारण होगा ?
कारण सबसे बड़ा तो यही लगता है कि शिक्षा का वातावरण घर के
वातावरण से अलग होना चाहिए. मानव क्या कोई भी जीव एक जैसी दिनचर्या मे नही जी सकता
. दिन भर घर मे रह कर वह डिप्रेशन का शिकार हो जाएगा. उसका घर से बाहर निकलना जरूरी
है. चाहे शिक्षा के लिए, या फिर नौकरी के लिए या फिर खरीद फरोख्त के लिए. ऑन लाइन शिक्षा एक विकल्प के रूप मे अभिभावकों के
सामने रखा जा सकता है. इसे बल पूर्वक थोपना नागरिक के मूल अधिकारों मे कटौती करना है.
क्या अब सरकारें यह भी तय करेंगी कि हम कैसे चलें, क्या
पहनें, क्या खाएं कैसे पढ़ें वगैरह वगैरह ? क्या
नागरिक को कुछ भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं रहेगा ?
विश्व के जितने भी लोकतांत्रिक देश हैं वहां नागरिक की स्वतंत्रता, उसकी
अस्मिता सबसे ऊपर है. सिटिज़न मतलब होता है उस देश का प्रतीक. उस सिटिज़न का सम्मान मतलब
राष्ट्रीयता का सम्मान. संस्कृति का सम्मान. सरकार का पहला दायित्व यह सुनिश्चित करना
होना चाहिये कि उसका नागरिक स्वतंत्रता का अनुभव करे, देश
मे निर्भय हो कर जी सके, उसे लगे कि कानून सबके लिए है. उसके लिए भी.
नागरिक को भयमुक्त करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी
चाहिए.
लेकिन आज हमारे देश मे नागरिक भयभीत है. कभी सीबीआइ से,
कभी ईडी से, कभी
पुलिस से, कभी सरकारी फरमानों से, कभी
सत्ताधारी दलों के समर्पित कार्यकर्ताओं की दादागीरी से तो कभी हमारी दोगली नीतियों
से .
स्विटज़रलैंड हमारे उत्तरप्रदेश से भी छोटा देश है लेकिन आज
हम जानते हैं कि वह कितना संपन्न है. कितना खुशहाल है. इसके
विपरीत हमारा युवा आज कितने डिप्रेशन मे है?
उसमे असुरक्षा की भावना किस
हद तक घुस चुकी है/ अपने सामने घुप्प अंधेरा देख कर वह कितना डरा हुआ है- क्या हमने
कभी सोचा ?
क्या क्षेत्रफल मे देश का बड़ा होना ही बड़े राष्ट्र की पहचान
है ? इज़राइल कितना बड़ा है ? हम
भर्तृहरि हरि के इस श्लोक को शायद भूल गए हैं-
यस्यास्ति वित्तं स नर: कुलीन: । स पंडित: स: श्रुतिवान
गुणज्ञ ॥
स एव वक्ता स च दर्शनीय, सर्वे गुणा कांचनमाश्रयंति ॥ (नीति शतक)
अर्थात पैसा ही सब गुणों की खान है.
अत: सबसे पहले हमे अपने देश को संपन्न बनाना चाहिए. व्यक्ति
समाज की न्यूनतम इकाई का नाम है. उसका आत्मविश्वास
टूटना नहीं चाहिए. आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उसके बैंक खाते मे कुछ धन जरूर होना
चाहिए. महर्षि व्यास ने भी कहा है –
आपद्दर्थे धनं रक्षेद्दारा रक्षेद्धनैरपि: । आत्मानं सततं
रक्षेद्ददारैरपि धनैरपि ॥ (महाभारत)
लेकिन आज कोई भी बैंक मे पैसा रखने को तैयार नहीं है. पता
नही कब नोटबंदी हो जाए ? पता नही कब बैंक का दिवाला निकल जाए ? पता
नही कब आर्थिक आपातकाल लग जाए ?
आज आदमी घर पर भी पैसा नही रख सकता, नोटबंदी
की वजह से, चोरी डाके की वजह से या फिर सीबीआइ, ईडी
के डर से. आज आप प्रॉपर्टी भी नहीं खरीद सकते. कहां से आया पैसा, कहां
भ्रष्टाचार किया - उस सब जांच की तकलीफ देह प्रक्रिया से बचने के लिए. आप शेयर बाजार
मे लगा सकते हैं अपनी गाढ़ी कमाई. लेकिन जहां रातों रात मार्केट अचानक क्रैश हो जाती हो वहां अपनी
पूंजी एक ही झटके मे कब साफ हो जाए, कोई
नही जानता.
कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि चाहे व्यक्ति हो चाहे सरकार, जब
कथनी और करनी मे फर्क आ जाता है तो न व्यक्ति की विश्वसनीयता बचती है और न गवर्नेंस
की.
कहने को बहुत कुछ
है लेकिन आज बस इतना ही.
(समाप्त)
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