किसे हिंदू कहें किसको
मुसलमां ?
यहां मजहब सियासी हो
गया है ॥ 1॥
नफासत से जिऊंगा मैं
इसे यारो ।
ये मेरी सिर्फ मेरी
ज़िंदगी है ॥2॥
खिड़कियां खोलो व आने
दो हवा ताज़ी ।
यहां हर शख्श का दम
घुट रहा है ॥ 3॥
गौर से देखो हमारा रहनुमा ।
काठ की बैसाखियों पर
चल रहा है ॥ 4॥
यही जो रात का पहला पहर है ।
यही तो दर्द का अंतिम
चरण है ॥ 5॥
बेगुनाहों को जहालत
बख्श कर ।
वह गुनाहों को बढ़ावा
दे रहा है ॥6॥
उठा होना ज़रूरी है उठाने
के लिए ।
जरा देखो वो खुद ही
गिर रहा है ॥7॥
मौत आते वक्त मे भी
साथ थी ।
मौत जाते वक्त मे भी
साथ है ॥8॥
बुराई भी सभी उपलब्धियां बन जाएंगी ।
वो चीजों को करीने से
उठाता है ॥ 9॥
उजले सफेद रंग से भी
रंग डालो चाहे ।
तब भी कव्वा हंस नहीं बनता है ॥10॥
जिस पर बैठा उसी डाल
को काट रहा है ।
कालिदास अब तक कैसे ज़िंदा है ॥ 11 ॥
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