युद्ध होता ही इसलिए है कि
हम
हट गए हैं – 'जीओ और जीने दो' के वादे से।
हम
जीना तो चाहते हैं, किंतु
जीने
नहीं देना चाहते ।
इंसान के
क्रमिक विकास की यात्रा गवाह है कि
युद्ध कब नही हुए -
जब
कबीले थे, तब कबीलों के लिए,
गांव
बने, तो गांवों, जमीन जानवरों के लिए,
नगर
बने, तो व्यापार, सड़कों, नदियों पर कब्जे के लिए,
और
आज जब देश बने हैं तो अमीर देश अपने निखट्टू कारपोरेटों की विलासिता के लिए करते
हैं युद्ध.
पर शायद बात आगे भी है-
युद्ध सत्ता मे बने रहने के लिए भी होते हैं
सत्ता सुख पाते रहने के लिए कुछ निरंकुश
सत्ताधीश
युद्ध थोप कर
छीनते
हैं जीने का अधिकार उन लोगों से,
जो
लड़ना नहीं चाहते.
जो
मानते हैं कि चाहे अमीर हो या गरीब,
जीने
का हक सभी को है.
जो मानते हैं कि भूगोल की सीमाओं के लिए
खून बहाना हैवानियत है।
जो मजहब को इंसान के लिए मानते हैं
न कि इंसान को मजहब के लिए
दिनेश थपलियाल
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