
पिछले हफ़्ते की बात है, ट्रेन से दिल्ली जा रहा था। मेरे सामनेवाली सीट पर जो
महानुभाव बैठे थे, उनका हुलिया कुछ इस तरह था कि
उन्हें किसी राष्ट्रीय पार्टी का नेता कहा जा सकता था।
खादी का सफेद कुरता, चूड़ीदार पाजामा, गांधी टोपी, आंखों पर चढ़ा काला चश्मा, क़लाई पर बंधी सुनहरी घड़ी, उंगलियों में लाल, हरे, नीले, पीले क़ीमती पत्थरों से जड़ी सोने की अंगूठियां, गले में पड़ी रूद्राक्ष की माला, उसी के साथ साथ सोने की दमकती मोटी सांकलनुमा चेन, हाथ में क़ीमती सेलफ़ोन, गठीली क़द-काठी और उम्र सत्तर के क़रीब। वह भी समर्थकों की भीड़ के साथ दिल्ली जा रहे थे।
लगता था कि वे राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। चेहरा ताज़ा लाल सेब जैसा। आत्म विश्वास से भरा हुआ । वजन भी करीब सवा कुंटल के आस पास तो हर हाल मे रहा होगा ।
खादी का सफेद कुरता, चूड़ीदार पाजामा, गांधी टोपी, आंखों पर चढ़ा काला चश्मा, क़लाई पर बंधी सुनहरी घड़ी, उंगलियों में लाल, हरे, नीले, पीले क़ीमती पत्थरों से जड़ी सोने की अंगूठियां, गले में पड़ी रूद्राक्ष की माला, उसी के साथ साथ सोने की दमकती मोटी सांकलनुमा चेन, हाथ में क़ीमती सेलफ़ोन, गठीली क़द-काठी और उम्र सत्तर के क़रीब। वह भी समर्थकों की भीड़ के साथ दिल्ली जा रहे थे।
लगता था कि वे राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। चेहरा ताज़ा लाल सेब जैसा। आत्म विश्वास से भरा हुआ । वजन भी करीब सवा कुंटल के आस पास तो हर हाल मे रहा होगा ।
मुझे लगा कि दिल्ली पहुंचते
पहुंचते देश की तमाम समस्याओं पर खुल कर नेता जी के विचार जाने जा सकते हैं।
मैंने अपना कैमरा निकाल कर पहले तो कई
कोणों से नेता जी के कई फोटो खींचे। फिर अपना शॉर्ट हैंड पैड व पेंसिल निकाल कर
बैठ गया ।

मेरे बारे में भी नेता जी ने जानना चाहा तो
मैंने बताया – यूं ही थोड़ा बहुत कलम घसीट लेता हूं । नेताजी खुश हुए। फिर हंसते
हुए बोले, ‘आप और हम एक ही थैली के
चट्टे-बट्टे हैं। आपके बगैर हमारा गुजारा नहीं..........
उनकी बात
बीच मे ही काटते हुए मैंने कहा.
.... और
आपके बगैर हमारा गुजारा नहीं....
डिब्बे मे
हंसी के सैकड़ों गुब्बारे जैसे एक साथ फूटने लगे।
मुस्कराते हुए नेता जी ने आगे कहा –
आपके साथ अब तो दिल्ली तक खूब छनेगी । मैं यही सोच कर परेशान था कि ट्रेन के छह
घंटे के उबाऊ सफर को कैसे झेल सकूंगा ? लो ऊपरवाले ने आप को भेज दिया ! ’
थोड़ी ही देर में हम इतने खुल गए कि नेताजी ने अपना मुखौटा उतार फेंका और तहे दिल
से हर मसले पर बोलने लगे।
मैंने पूछा-‘दूनियां के साठ अति
भ्रष्ट मुल्कों में हम सत्तावनवें नंबर पर आ गए हैं। बस तीन ही मुल्क हैं
जिन्होंने हमसे बाज़ी मार रखी है। आप क्या कहते हैं ?’
‘ये क्या, आप करप्शन को तरक़्की कहते हैं?’
‘जी हां, मैं पूरे होशो-हवास में हूं।’ नेताजी ने समझाया, ‘बुखार का पता कैसे लगता है? बदन गरम होने से न ! मुल्क की तरक़्की का पता भी वहां
फल-फूल रहे भ्रष्टाचार से ही चलता है। वह मुल्क क्या खाक तरक्की करेगा जहां करप्शन
न हो? जहां का सारा पैसा स्विस बैंकों मे न जमा हो! जहां आधी आबादी गरीबी की
रेखा से नीचे रहने मे ही अपना कल्याण समझती हो! जहां का किसान हर रोज फांसी के
फंदे पर न झूलता हो!
मगर हम तो मानते हैं कि भ्रष्टाचार
एक घुन है, जो भीतर ही भीतर समाज को खोखला कर
रहा हैं।’
‘आप ही नहीं, चंद कारपोरेटों
को छोड़ दें तो देश के बाकी लोग यही मानते हैं।’ नेताजी ने खुलासा किया-
‘अब देखिये, बड़े बिजनेस घराने करोड़ों रूपये का चंदा न दें तो कोई पार्टी
चुनावों का भारी-भरकम बोझ कैसे उठा लेगी भला ? चुनाव जीतने के बाद सरकार अगर उन्हें पचास – साठ हज़ार करोड़
का फ़ायदा करा भी देती है तो आप मीडियावाले इतना बवाल क्यों खड़ा कर देते हैं ? बेडरूम,
बाथरूम टॉयलेट - कहीं भी अपना स्पाइ कैमरा लेकर पहुंच जाते हैं। अरे नैतिकता
भी तो कोई चीज़ है कि नहीं ?
बताइये ?’
‘यानी ग़लती पकड़ना अनैतिक कर्म है।
और ग़लती करना? वह नैतिक है ?
बंगारू लक्षमण ने, जया जेटली ने जो किया, वह सब क्या नैतिक था ?’ मैंने पूछा।
यह सुनकर नेताजी ने कड़वा सा मुंह
बनाया और सीट पर पालथी मारकर बैठते हुए बोले- ‘अरे छोड़िए, किन लोगों की बात कर दी आपने। पहली बार सत्ता का स्वाद चखा
था। लगे भुक्खड़ बेतहाशा भकोसने। अरे चौकन्ने होकर काम किया होता तो आज ये थुक्का फ़जीहत
न होती ! लेन-देन की सारी गरिमा मिट्टी में मिलाकर रख दी ससुरों ने।’

मैं अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहता था। तपाक से सवाल दाग़ डाला
- ‘आप उन लोगों की जगह पकड़े जाते तो क्या करते?’
नेताजी बड़े सहज अंदाज में बोले,- ‘हम अगर खाते हैं तो खिलाते भी हैं। आखिर हम समाजवादी भी तो
हैं थोड़े से ! और हमें शिष्टाचार भी
आता है। आपका इस बारे मे क्या खयाल है ? कहते हुए नेता जी
ने खीसें निपोर दीं।
मैं कुछ नहीं कह सका। कहने को बचा
भी क्या था। फिर भी हिम्मत जुटाकर आखि़री सवाल दाग़ ही बैठा-
‘नेताजी हम भारतवासी हैं। हम ईमानदारी, मारल वैल्यूज़,
कैरेक्टर और तहज़ीब को भी तवज्जो देते हैं। फिर आप भ्रष्टाचार की यह खुल्लम
खुल्ला वकालत किस मुंह से कर रहे हैं ?

बाक़ी रही बातें मारल वैल्यूज़् की, कैरेक्टर की,
ईमानदारी की.... तो वे बातें हम अपने भाषणों में हमेशा दोहराते ही हैं। क्या
कभी ऐसा हुआ है कि हमने वैल्यूज़ को मॉरल को, करेक्टर को कोट न किया हो अपने भाषणों में?
आप ही बताइये न ! हमारे नेताओं के भाषण आप अक्सर सुनते रहते थे।
सुनते रहते भी हैं। हमने अपने संस्कारों की कभी अनदेखी नहीं की । न कभी भूले हैं,
और न कभी भूलेंगे ....’

इसके बाद मैं अगला सवाल पूछने की
हिम्मत न कर सका। मैंने दोनों हाथ जोड़कर नेताजी को प्रणाम किया। मगर नेताजी मोबाइल
पर किसी को धमकाने में व्यस्त थे- ‘अरे भाई, इतनी बड़ी डील है, दस खोखे प्रति किलोवाट से नीचे बात
नहीं बनेगी.....।
थोड़ी देर मे एक और फोन आया। नेता
जी धमकाते हुए बोले— एक बार बता दिया न पूरी स्टेट के ठेकों का अलग रेट रहेगा। वरना दस दस खोखा प्रति ठेका । मीटिंग मे हूं। बार बार फोन मत करना ।
(समाप्त)
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