‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?’ -यही मूल-मंत्र था जिसके बूते मास्टर मक्खनलाल जी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते
चले गए ।
राजनीति के व्यापार में आने से पहले मक्खनलाल जी एक ‘सरकारी प्राइमरी स्कूल’ के मास्टर हुआ करते थे। आपकी उम्र के बाकी लड़के
जब शर्ट-पैंट पहने यहाँ-वहाँ घूमते, तब आप सफेद धोती,
सफ़ेद बंगाली कुरता, कोकाकोला कलर की वास्कट तथा
चमरौंधी (जूतियां) पहने-पैदल ही जनसंपर्क पर निकले रहते। आपका कहना था कि आगे बढ़ना
है तो अलग दिखाई दो।
महान होना ज़रूरी नहीं है, मगर महान दिखना ज़रूरी है। ऐसे-ऐसे काम करो कि मीडियावाले तुम्हें जम कर कोसें।
महान होना ज़रूरी नहीं है, मगर महान दिखना ज़रूरी है। ऐसे-ऐसे काम करो कि मीडियावाले तुम्हें जम कर कोसें।

ऐसे ही तीन होनहार छात्र और थे जिन्हें मक्खनलाल जी ने अपनी डेयरी का कार्यभार सौंपा हुआ था।

चौथी क्लासवाले होनहार छात्र जंगल से लकड़ियां बीन कर लाते और गुरूजी का चूल्हा जलने का कारण बनते।
तीसरी कक्षा वाले सब्ज़ी की क्यारियों की निराई-गुड़ाई करते। कुछ लड़कियां उपले पाथतीं तो कुछ बच्चे चारा मशीन पर कुट्टी कटवाते।
दूसरी और पहलीवालों को लेकर ‘भैन जी’ ग्राउंड में आ जातीं और स्वेटर बुनने के पुनीत कार्य मे जुट जाती। भैन जी का मानना था कि मासिक पगार तो एक किस्म की पेंशन है । इससे पेट भी नहीं भरता। आगे बढ़ना है तो ‘साइड जौब’ करना ही पड़ेगा।
जबसे स्कूलों मे मिड डे मील (दोपहर का भोजन)
शुरू हुआ, स्कूल का वातावरण ही बदल गया। प्रार्थना के फ़ौरन
बाद खाना पकने लगता। हाफ टाइम होते ही बच्चे तबीयत से दाल भात खाते और फिर शाम तक
बर्तन मांजने में जुट जाते।
इस तरह स्कूल की व्यवस्था संपन्न करने के बाद
मास्टर मक्खनलाल जी समाज और राजनीति के कामों मे भी रूचि लेने लगे। राजनीति के अपने
यहां कई विचार-गटर मौजूद हैं, मगर कोई भी गटर मक्खनलाल जी
को अपना परमानेंट कचरा न बना सका । जितनी देर में आम आदमी कपड़े बदल पाता है, उससे भी
कम समय में मक्खनलाल जी पार्टी बदल लेते थे। पुराने लोग बताते हैं कि राजनीति मे
आया राम-गया राम की शानदार परंपरा आपके स्कूल के असाधारण प्रतिभा के धनी
विद्यार्थियों ने ही शुरू की थी । बंसीलाल, देवीलाल, भजनलाल, हरद्वारीलाल आदि भारतीय राजनीति के पुरोधा
आपके स्कूल से ही ‘पास-आउट’ थे तथा आपके प्रिय शिष्यों में गिने जाते थे।
ख़बरों में बने रहने के लिए मास्टर जी को आख़िर
क्या-क्या नहीं करना पड़ा ? कभी बहरों के लिए शास्त्रीय संगीत
का प्रोगाम कराया तो कभी अंधों के लिए भरतनाट्यम का आयोजन किया । हाल ही में आपने
विकलांगों की साइकिल रेस कराई, जिसमें दूर-दूर तक के ख़्याति-प्राप्त
विकलांगों ने हिस्सा लिया। हार-जीत के नतीजे तो पता नहीं चल सके, मगर प्रतियोगी अपनी बची-खुची टांग ज़रूर तुड़वा बैठे थे। इस प्रतियोगिता के
बाद अख़बारों में मास्टर जी की ख़ूब बदनामी हुई। मास्टर जी का नाम सुनते ही लोग
थू-थू करने लगते, पर मास्टर जी हंसकर कहते-
‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ?’
‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ?’
अभी साइकिल रेस का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था
कि मास्टर जी ने शराबबंदी पर एक नाटक करा डाला। समारोह की शुरूआत इलाक़े के विधायक
जी ने की, जो मदिरा-प्रेम के लिए दूर-दूर तक मशहूर थे।
छोटे-बच्चों की एक्टिंग देखकर शराब के नशे मे टुन्न विधायक जी फूट-फूट कर रोने
लगे। फिर स्टेज पर आकर उन्होंने बच्चों को गोद में उठाया और बोले-दोस्तो-शराब इतनी
बुरी चीज है तो मैं आज से इसे छोड़ने की कसम खाता हूं। इन प्यारे प्यारे बच्चों की
कसम- आज से मैं शराब को हाथ तक नहीं लगाऊंगा।
पर नशा उतरते ही
विधायक जी कसम भूल गए थे।
लेकिन मक्खनलाल जी का अगला कारनामा तो वाकई
हैरत-अंगेज था। इस बार उन्होंने जिस संस्था की आधारशिला रखी- उसका नाम था- अखिल
भारतीय भ्रष्ट कौंसिल । अंग्रेजी मे बोले तो “आल इंडिया करप्ट कौंसिल”।
कौंसिल की पहली बैठक में देश के कोने-कोने से
आए अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति-प्राप्त भ्रष्टों ने भाग लिया। इस समारोह के लिए मास्टर
जी के स्कूल से अच्छी जगह भला कौन सी हो सकती थी ? उद्घाटन
समारोह की अध्यक्षता करते हुए मक्खनलाल जी बोले
-मेरे महान भारत के
कोने-कोने से पधारे भ्रष्ट भाइयो। कौंसिल की पहली बैठक में मैं मास्टर मक्खन लाल आपका
इस्तक़बाल करता हूं। दरअसल जब से हमने नैतिकता के वेताल को पीठ से उतारा है,
हम अमीर होते गए हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार लबालब भरा है। संवेदी सूचकांक पागल बैल की तरह दस हजार पार कर
गया है। लेकिन दोस्तों, हम सच्चे देश-प्रेमियों को अब भी कुछ
झूठे राष्ट्रभक्त अफ़सर परेशान करते हैं। कमीशन की पूरी परसेंटेज लेने के बाद और कई
डिमांड भी रखते हैं। ऐसा ही रवैया नेताओं का है। हथियारों की दलाली में जो कुछ
मिलता है-नेता हड़प जाते हैं और हम भ्रष्टों को बलि का बकरा बना देते हैं। मैं
मेवालाल मखीजा जी से गुजारिश करूंगा कि कुछ सुझाव दें।
मक्खीकट मूंछों पर बैठी मक्खियां उड़ाते हुए
मेवालाल जी बोले
-साथियों,
अब वक़्त आ गया है कि हम भ्रष्टों को वीआईपी का दरजा दिया जाय। पद्मश्री, पद्मभूषण, भारतरत्न आदि पुरस्कार हमें भी
दिये जाएं । महान भ्रष्टों की जीवनी पाठ्य-पुस्तकों में शामिल की जाए । हमारी पूजा
भी नारी के समान ही सारे समाज मे की जाए । एक नया श्लोक भी हमारे लिए बनाया जाए
जैसे कि - ‘यत्र भ्रष्टास्तु पूज्यंते, रमंते तत्र लक्ष्मी।’
इसी प्रकार अनेक सुझाव आते रहे। अंत में सबने
मिलकर गाना गया- ‘हम होंगे कामयाब....एक दिन....हममें है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन।’

मास्टर मक्खनलाल जी का यह कारनामा मीडिया मे
ठीक उसी तरह फैलने लगा जैसे जंगल मे आग फैलती है । इस ख़तरनाक मुद्दे की अनदेखी शिक्षा विभाग भी नहीं
कर सका। कई चैनलों ने एआईसीसी की इस बैठक
का आंखों देखा हाल टीवी पर दिखा दिया था।
अगले रोज़ प्रशासन से मक्खनलाल जी को एक
चिट्ठी मिली। लिखा था- ‘आदरणीय मास्टर मक्खनलाल जी, जिला
शिक्षा विभाग पर आपके ढेरों एहसान हैं। पर क्या किया जाय, बात
हद से आगे बढ़ चुकी है। आप से प्रार्थना है कि कुछ दिन के लिए सस्पेंड होना मंजूर कर
लीजिए । आधी तनख़्वाह ठीक पहली तारीख़ को आपके घर पहुंचा जाया करेगी, बाद में जैसे ही धूल-धक्कड़ शांत होगी, आप बाइज्जत बहाल
कर दिये जाएंगे। उतने दिनों की बाकी पगार भी हफ्ते भर के भीतर आपके खाते मे जमा कर
दी जाएगी।
चिट्ठी बंद करते हुए मास्टर जी मुस्कराए और
अपने आपसे बोले-‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ?’
(समाप्त)
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