गुरुवार, 16 जुलाई 2020

व्यंग्य- वर्चुअल डेमोक्रेसी


     एक बार अरस्तू ने अपने शिष्य सुकरात को पत्र लिखा था. पत्र का विषय था-वर्चुअल डेमोक्रेसी. वह पत्र फटी-पुरानी हालत में रोम के एक कोलोजियम के खंडहरों से पिछले हफ्ते किसी पुरातत्व विज्ञानी को मिला. घूमता फिरता वह पत्र  किसी तरह हम तक भी पहुंच गया.

   करीब ढाई हज़ार साल पहले लिखे उस पत्र को क्या आप भी पढ़ना चाहेंगे ? लीजिए, पेश हैं उसके कुछ हिस्से :

    प्रिय सुकरात, जेल में बैठे-बैठे मैने अपनी किताब "पोयतिका" का दूसरा भाग भी पूरा कर लिया है. 
इस हिस्से में  मैने यह दिखाने की कोशिश की है कि आने वाले दिनों में डेमोक्रेसी का चेहरा कैसा 
होगा ? मेरा तो मानना है कि भविष्य में पॉलीटिक्स की शक्ल सूरत काफी कुछ वर्चुअल टाइप की
 हो जाएगी.

    तुम्हारे दिमाग मे एक सवाल कुलबुला रहा होगा- ये वर्चुअल पॉलीटिक्स क्या बला है? तुम तो जानते 
ही हो कि  डेमोक्रेसी लोगों के द्वारा, लोगों के लिए होती है. इसी तरह वर्चुअल डेमोक्रेसी भी कंप्यूटर
 द्वारा कंप्यूटर के लिए होगी. ये कंप्यूटर एक ऐसी मशीन होगी जो गुलामों की तरह इंसान का हर 
काम करेगी.

     वर्चुअल डेमोक्रेसी में नेताओं को घटना स्थलों पर जा कर पब्लिक को ढाड़स बंधाने की जरूरत 
नहीं पड़ेगी. कहीं आग लगे, बाढ़ आए, भूकंप आए, सूखा पड़े, बम फटें, किसान बड़े पैमाने पर 
खुदकुशी करें, नेता वहां नहीं जाएंगे. वहां जाने का काम सिर्फ पत्रकारों का होगा. वे लोग  
मौका-ए वारदात पर जाकर सीन शूट करेंगे, सीन स्टूडियो में लाकर स्क्रीन पर प्ले किये जाएंगे. 
जनता के सेवक  इन्हीं दृश्यों के सामने एअर कंडीशंड स्टूडियो में बैठ जनता के रीयल आंसू 
वर्चुअली पोंछेंगे.

    हो सकता है पहले पहल  लोगों को यह अटपटा लगे, मगर बाद में वे आदी हो जाएंगे.

     सीनेट में बैठ कर सीनेटर्स पब्लिक की समस्याओं पर जो विचार विमर्श करते हैं, वे  बैठकें भी वर्चुअल हो जाएंगी. नेता लोग घर या होटल में बैठ कर ही सीनेट की कार्यवाहियां निपटा सकेंगे. कभी कभी तो ऐसा भी वक्त आएगा कि सीनेट के तकरीबन सभी नेता दुनियां के अलग अलग देशों में सैर कर रहे होंगे और ठीक उसी वक्त वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के ज़रिये सीनेट की कार्यवाही भी अटेंड कर रहे होंगे. धधकती गरमी में जलती जनता को बर्फ की वर्चुअल वादियों के दर्शन कराते हुए ये नेता खुद यूरोप के ठंडे देशों में ग्लोबल-वार्मिंग  पर सेमीनार अटेंड करते नज़र आएंगे.
 
   चुनाव करीब आते ही जनता को वर्चुअल रियायतें मिलनी शुरू हो जाएंगी. किसानों के कर्ज़े वर्चुअली माफ होने लगेंगे, महंगाई का सूचकांक उन दिनों एक दम नीचे पहुंच जाएगा. शेयर सूचकांक तेज़ी से आसमान पर पहुंचता  जाएगा.लुटे-पिटे शेयर भी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन जाएंगे, फिर बड़े शेयरों की तो बात ही क्या !

    चुनाव के बाद महंगाई का सूचकांक आसमान पर पहुंच जाएगा. दालें आटा, तेल, किरासन, के भाव रॉकेटों की तरह अंतरिक्ष की तरफ भागने लगेंगे. शेयर सूचकांक सड़क किनारे लंगड़ी कुतिया की तरह लुटा पिटा जमीन पर औंधे मुंह पड़ा होगा, मगर कोई पूछने वाला न होगा.

    वामपंथी दलों का स्वभाव भी रीयल से वर्चुअल हो जाएगा. वे समाजवाद की तो बातें खूब करेंगे, मगर काम ऐसे करेंगे, जिनसे पूंजीवादी ताकतें ही मज़बूत होंगी. जाति की राजनीति करने वाले जात-पांत को खत्म नहीं होने देंगे.समाज ऊपर से देखने मे तो एक जैसा दिखाई देगा, मगर असल में वह कई हिस्सों में बंटा होगा. अगड़े-पिछड़े, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुसलमान, नॉर्थ साउथ, ईस्ट-वेस्ट- जाने कितने टुकड़ों में ये नेता समाज को बांट डालेंगे ?  इलेक्शन के करीब आते ही वे इन टुकड़ों को वर्चुअली जोड़ने लगेंगे. जोड़-तोड़ का यही वर्चुअल खेल खेलते हुए ये चतुर लोग सत्ता का सुख भोगते रहेंगे, आने वाली अपनी पीढ़ियों को ये टेक्नीक सिखाते रहेंगे. और नागरिक तमाम परेशानियां, मुसीबतें झेलता हुआ गाना गाने पर मजबूर होगा- मेरा देश महान.

    प्रिय सुकरात, मेरे "अनुकरण-सिद्धांत" की नई व्याख्या भी आने वाले पॉलीटीशियंस अच्छी तरह करेंगे. पार्टी के बड़े-बूढ़े नेता भी पार्टी अध्यक्ष के छोटे बच्चों के नेता बनने पर उनका अनुकरण करने में अपना जीवन धन्य समझेंगे. उनके पॉलीटिक्स में आगे आने की वर्चुअल खुशी में उनके द्वारे नाच नाच कर दोहरे हुए जाएंगे. उनके चरणों की धूल अपने माथे चढ़ा कर वे वयोवृद्ध नेता भीष्म पितामह की राजगद्दी के प्रति निष्ठा को भी लज़्ज़ित करते हुए चमचागीरी के अद्वितीय व अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित करेंगे. उस दौर में आदमी प्रकृति का नहीं, बल्कि प्रकृति आदमी का अनुकरण करेगी.

   "अच्छी कविता" वह मानी जाएगी जिसमें सत्ताधारी नेता की तारीफ की गई हो. तारीफ जितनी बढ़ा-चढ़ा कर की जाएगी, व जितनी झूठी होगी, उतनी ही ऊंची किस्म की मानी जाएगी. राज्य की समस्याओं से हटा कर निजी कुंठाओं, नारी सौंदर्य, पूजा-पाठ, चांद-तारों   की तरफ ले जाने वाली वर्चुअल कविताएं राजकीय पुरस्कार व सम्मान के लायक समझी जाएंगी. 

   आम आदमी की परेशानियों का ज़िक्र करने वाली कविताएं घटिया किस्म की मानी जाएंगी. उनके लेखकों को पुरस्कार के बदले जेल, व सम्मान के बदले अपमान मिलेगा.

     वर्चुअल राजनीति के उस दौर में  नेताओं की भूख बेहिसाब बढ़ जाएगी. वे सारी दुनियां को ही लील जाना चाहेंगे. वे  चांद -तारों पर भी वर्चुअल प्लॉटिंग शुरू करवा देंगे, वहां भी फ्लैट, शॉपिंग कॉंप्लेक्स, व होटल खुलवा देंगे. देश का उत्पादन ठप्प करवा कर वे हर चीज़ बाहर से मंगवाना पसंद करेंगे. दलाली खाना हर अफसर व नेता का राष्ट्रीय व नैतिक कर्तव्य हो जाएगा. ऊपर की इनकम के बगैर किसी का भी खाना हज़म नहीं हुआ करेगा.  ईमानदार लोग लुप्त होते जानवरों की प्रजातियों की तरह  अज़ायबघर के पिंजरों में सलाखें पकड़े, -आने-जाने वालों को घूरते मिलेंगे.
 
     उस युग में नेता ही भगवान हो जाएगा. मन्दिरों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा आदि की मूर्तियों की जगह नेताओं की मूर्तियां पूजी जाएंगी. हनुमान चालीसा की जगह नेताओं की चालीसा गाई जाने लगेंगी. राम लीला कृष्ण लीला की जगह नेताओं की लीलाएं टीवी पर दिखाई जाएंगी. नेताओं की आरतियों के वीडियो कैसेट बाज़ार में, पान की दुकानों पर, सब्ज़ी की ठेलियों पर रिचार्ज कूपन की तरह आसानी से उपलब्ध होंगे.

     इतने इंतज़ामों का नतीज़ा यह निकलेगा कि समाज का हर आदमी या तो सो जाएगा या इतना व्यस्त हो जाएगा कि उसे सोचने के लिए एक पल की फुर्सत भी नसीब नहीं होगी. अगर किस्मत का मारा कोई तब जगा रहा या  सोचने की जुर्रत करेगा तो उसके लिए क्रिकेट के मैच तैयार रहेंगे. यह क्रिकेट डंडे-व गेंद का वही खेल होगा, जिसे अंग्रेज़ गडरिये भेड़ें चराते वक्त सर्दी से बचने के लिए आजकल खेला करते हैं. कभी फिफ्टी-फिफ्टी, तो कभी लीग मैच, कभी वन डे, तो कभी फाइव डे मैच ! चल बेटे कहां तक सोचेगा ! वर्चुअल चीयर बालाएं जब हर चौके छक्के पर सामूहिक नृत्य क्षणिकाएं प्रस्तुत करेंगी तो कहां तक सोच लेगा तू महंगाई पर ?करप्शन पर ?अन्याय पर? नैतिकता पर ?

    रिश्ते नातों की हालत उन कुत्ते-बिल्लियों सी हो जाएगी, जो रोज़ ट्रकों कारों व बाइकों के नीचे कुचले जाएंगे. जिनके चिथड़े सड़कों पर सरे आम दिखाई देंगे. ये ट्रक, कार, बाइक उस युग में आने जाने के साधन होंगे, जैसे कि आज रथ या घोड़े होते हैं.

   प्यारे सुकरात, राजतंत्र तब गणतंत्र के रूप मे होगा. सीनेटों का चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के ज़रिये किया जाया करेगा. इन मशीनों में जीत हार का फैसला देखने में तो बड़ा निष्पक्ष नज़र आएगा, मगर होगा बिल्कुल पक्षपातपूर्ण. सॉफ्टवेयर के द्वारा या बटन दबा कर किसी भी उम्मीदवार को हराया या जिताया जा सकेगा. कागज़ के बैलेट पेपर नहीं होने के कारण इन चुनाव नतीजों को चैलेंज भी नहीं किया जा सकेगा.

    तो मेरा ख्याल है कि आने वाले दिनों में मेरी किताब "पोयतिका" का यह दूसरा भाग ही एप्लीकेबल होगा. पहले भाग को तो सिर्फ वे लोग पढ़ेंगे जिनकी रिसर्च वगैरह में दिलचस्पी होगी. प्रैक्टीकल पॉलीटिक्स करने वालों के लिये तो यह दूसरा भाग ही फायदेमंद रहेगा.


    मेरा तुम्हें यही आदेश है कि आज का राजतंत्र भी सत्ता व सुविधा भोगी ही है. अगर तुम उसकी गलतियां निकालोगे तो वह  तुम्हें जहर का प्याला पीने पर मजबूर कर देगा. अगर राजतंत्र की कारगुजारियों से आंखें मूंद लोगे तो तुम्हें जागीर मिलेंगी, राज्य आश्रय मिलेगा, सम्मान मिलेंगे, सभी सुख मनोरंजन मनोविनोद ऐशोआराम के साधन मिलेंगे, यश मिलेगा. आने वाले हज़ारों साल तक तुम्हारा गुणगान होता रहेगा.

    मेरे प्यारे शिष्य, यदि तुममें जरा सी भी अक्ल बची हो तो सबसे पहले हर स्याह सफेद की तरफ से आंखें  मूंद लेना. ऐसी कोई भी चीज़ तुम्हें न दिखाई दे जो परेशानियों की तरफ ले जाती हो. अरे आम आदमी तो आम ही है. उसके चक्कर में तुम तमाम आफतें मोल मत ले लेना. अपने वाम पंथियों से सबक सीखना कि कैसे आम आदमी की बातें करते हुए भी अमीरों को फेवर किया जा सकता है तथा  सत्ता की मलाई खाई जा सकती है.

    तो मुझे यकीन है कि वर्चुअल पॉलीटिक्स का मेरा यह विचार तुम्हारी समझ में अच्छी तरह आ गया होगा. न्याय करते हुए  नज़र आने मे कोई बुराई नहीं है, मगर न्याय करने मत लग जाना. सत्ता की थोड़ी बहुत आलोचना करते हुए तो थोड़ा बहुत नज़र आ जाना, मगर  सीरियसली बुराई  मत करने लग जाना. मैने इंडिया के एक महाकाव्य "महाभारत" में बड़े पते की बात पढ़ी थी, तुम भी सुनो- आपद्दर्थे धनं रक्षेद, दारा रक्षेद धनैरपि. आत्मानं सततं रक्षेद दारैरपि धनैरपि. मतलब कि इस दुनियां में अगर सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट कुछ है तो वह तुम खुद हो. तुम से ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है, इसलिये पहले अपने को देखो. सिद्धांत बाद में देखना.अच्छा-बुरा भी उसके बाद देख लेना.

   जेल से छूट गया तो बाकी बातें बाद में करूंगा.

   तुम्हारा अरस्तू.

 (समाप्त)  


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