शनिवार, 6 जून 2020

गज़ल आपको कविता सुनाने की पड़ी है ....




बिक गई इंसान की इन्सानियत
हो गया इन्साफ  भी नंगा यहां
जल रहा है आग में सारा शहर
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
दोपहर में ही अंधेरा छा गया है
बाड़ ही चरने लगी है खेत को
जो न होना था वही सब हो रहा है
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
हर नदी है आज कल पागल यहां
बन गया है हर शहर जंगल
आदमी खुद बिक रहा बाजार में
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
हो गया है अब बड़ा  सुविधाजनक
भूख से शमशान तक का ये सफर
फिक्र है ये पेट की ज्वाला बुझे कैसे
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
वक्त पर्वत हो गया हिलता नहीं
हो गए जज़्बात भी पत्थर यहां
छिन गई पांवों तले की भी जमीं
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
आपके चर्चे  सुने हैं  हर तरफ
आपकी आवाज़ भी मशहूर है
आदमी हैं आप बेशक काम के पर
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !
सिर्फ कविता पाठ ही काफी नहीं है
पेट भी इससे कभी भरता नहीं
आदमीहैं आप बेशक काम के पर
            आपको कविता सुनाने की पड़ी है  !

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