कंप्यूटर और हिंदी (भाग- 9)



















इंटरनेट और हिन्दी :


हिन्दी पर कुछ कहने से पहले हमें यह जानना होगा कि हिन्दी भाषा की मानक वर्णमाला क्या है:

हिन्दी की मानक वर्ण माला :

   इस भाषा में भी स्वर और व्यंजन होते हैं । हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हिन्दी भाषा में कुल बावन ध्वनियाँ हैं, जिनमें दस स्वर और चालीस व्यंजन हैं। दो इसमें मोड़ीफ़ायर्स हैं। इनके अलावा चार ध्वनियाँ और भी हैं, जो पहले स्वरों के रूप में प्रयोग की जाती थीं, पर अब नहीं की जातीं।

स्वर(vowels) :

        स्वर दो तरह से लिखे जा सकते हैं। एक तो अक्षरों के रूप में , तथा दूसरे मात्रा के रूप में ।मात्रा के रूप में ये तब प्रयुक्त होते हैं, जब ये व्यंजनों के साथ लिखे जाते हैं।
नीचे स्वरों के दोनों रूप दिखाए जा रहे हैं : 

 
Hindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
A
aa/A
e/i
ee/ii
u
oo/uu
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi AlphabetHindi Alphabet
Hindi Alphabet
E
Ai
O
ou
aM
aH

स्वर, जो आमतौर पर प्रयोग नहीं होते :

r^
r^^
l^
l^^
AUM

व्यंजन(consonants) :

Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
ka
Kha
Ga
gha
nga
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
cha
Chha
Ja
jha
nja
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Ta
Tha
Da
Dha
Na
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
ta
Tha
Da
dha
na
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
pa
pha / fa
Ba
bha
ma
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
ya
Ra
La
va/wa
Sha
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
Hindi Alphabet
त्र
shh
Sa
Ha
ksh
tra
ज्ञ




jnja





नुक्ते के साथ व्यंजन :

        हिन्दी भाषा को जब अरबी या फारसी बोलने वाले लोगों ने प्रयोग किया तो उनके उच्चारण में अपनी वर्णमाला के उच्चारण का प्रभाव आ गया। इसी कारण निम्न लिखित व्यंजनों को वे थोड़ा अलग ढंग से बोलने लगे। धीरे धीरे इन उच्चारणों का चलन इतना बढ़ गया कि हिन्दी वर्ण माला में उनका अलग स्थान बनाना पड़ा। ये व्यंजन इस प्रकार हैं।

.na
.ra
.La
.ka
.kha
.ga
.ja
.Da
.Dha
.fa
.ya

विशेष चिह्न  :

जब किसी व्यंजन के साथ नासिक्य ध्वनियों का प्रयोग करना हो तब निम्न लिखित चिह्नों का प्रयोग होता है जैसे-
.

अनुस्वार

विसर्ग

चंद्रबिंदु

चन्द्र

नुक्ता
'
विराम

उदात्त
M
H
.~
डॉट + तिलदा
~
तिलदा
.N
`
ग्रेव असेंट
.^
डॉट  + ^

अनुदात्त

दंड

डबल दंड

अवग्रह

ग्रेव असेंट

एक्यूट असेंट

._
डॉट + अंडरस्कोर  
|
खड़ी पाई
||
//
\
/


अंग्रेजी की-बोर्ड वाले कंप्यूटर पर हिन्दी में लिखना:

          हिन्दी भाषा के सभी स्वरों की केवल एक ध्वनि होती है, इसीलिए यह ध्वन्यात्मक भाषा भी कही जाती है। ऊपर हर हिन्दी के स्वर और व्यंजन के समतुल्य अंग्रेजी के अक्षर दिखाए गए हैं। अंग्रेजी के कीबोर्ड पर उन अंग्रेजी अक्षरों को दबाने से उनके समतुल्य हिन्दी अक्षर स्क्रीन पर आ जाते हैं। पर उसके लिए पहले कीबोर्ड को एडिट करना होगा। यह काम Hindi Indic IME जैसे एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर की मदद से किया जा सकता है।

(क)                 इंटरनेट (Internet) या अंतर्जाल :  

        इंटरनेट पर हिन्दी की स्थिति जानने से पहले हम इंटरनेट पर संक्षिप्त चर्चा करेंगे.  ‘इंटरनेट’ शब्द दो शब्दों का संक्षिप्त रूप है . ये हैं- ‘इंटरनेशनल’  तथा ‘नेटवर्क’. अत: हम कह सकते हैं कि इंटरनेट दर असल विश्व के सभी कंप्यूटरों  के आपस में जुड़ जाने से बना एक जाल है. इस जाल से जुड़ा  कोई भी कंप्यूटर किसी भी दूसरे कंप्यूटर से  सूचना ले सकता है, या फिर अपनी सूचना दूसरे कंप्यूटर को दे सकता है.

          सूचना प्रौद्योगिकी के ज़रिये आज सूचनाओं का संकलन, प्रेषण,व प्रसारण बहुत आसान हो गया है. भारत के पहले, व सफल चन्द्रयान मिशन का-प्रक्षेपण स्थल से सीधा प्रसारण इसका प्रमाण है कि अब सूचनाओं के संकलन, प्रेषण व प्रसारण में  समय नहीं लगता.वे घटना स्थल से सीधे सीधे 'लाइव' प्रसारित होती हैं.
हिन्दी मीडिया पर भी यह बात ठीक उसी तरह लागू होती है, जैसी अन्य भाषाओं पर. हिन्दी भारत के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा तो है ही, साथ ही यह भारतीय संघ के कार्यालयों की भाषा भी है. केन्द्र सरकार के सारे कामकाज इस राजभाषा हिन्दी में ही होते हैं.

      आज हम देखते हैं कि किस तरह इंटरनेट  सूचना व ज्ञान का विराट कोष बन गया है. लेकिन हम यह भी देखते हैं कि इंटरनेट के ज्ञान कोष पर अंग्रेज़ी भाषा का वर्चस्व है. इस ज्ञान का लाभ वही वर्ग उठा रहा है जिसे अंग्रेज़ी आती है. और इस वर्ग  में भारतीय नागरिकों की संख्या 10-15% से भी कम है.  

         इसका मतलब यह हुआ कि  सूचना प्रौद्योगिकी ने ज्ञान का जो विशाल खजाना  हमें सौंपा है, हम  भाषा के कारण उसका फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. भारत की अधिकांश जनता हिन्दी से ही परिचित है, तथा हिन्दी में ही आसानी से विचार व्यक्त कर सकती है. अत: इंटरनेट पर भी यदि हिन्दी के सर्च इंजन, हिन्दी की वेबसाइटें व हिन्दी के समाचार, हिन्दी की पाठ्य-पुस्तकें आदि  उपलब्ध हो जाएं तो हमारे देश के ज़्यादातर लोग इस विश्व व्यापी जाल के हिस्से बन कर  ज्ञान अर्जित कर सकते हैं.

         आज अमेरिका की सिलीकॉन वेली में करीब पचास प्रतिशत भारतीय इंजीनियर अपने  ज्ञान व प्रतिभा का योगदान कर रहे हैं. लेकिन यह योगदान हिन्दी के लिए न होकर अंग्रेज़ी के लिए है. क्या यह हमारा दुर्भाग्य नहीं कि हमें अपनी हिन्दी का विकास छोड़ कर अंग्रेज़ी आधारित सूचना प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए विवश  होना पड़ रहा है ?

             इस समस्या का एक ही समाधान है- हिन्दी को रोज़गार से जोड़ा जाए. हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग कंप्यूटर पर किया जाए. विदेशी भाषाओं में उपलब्ध साहित्य, कला, विज्ञान, टेक्नोलॉजी आदि का अनुवाद हिन्दी भाषा में करके उसे इंटरनेट पर मुहैया कराया जाए. हिन्दी ई-मेल को बढ़ावा दिया जाए. मानक तकनीकी शब्दकोष  वेब साइट पर रखे जाएं. हिन्दी वेबसाइटों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए.

       साथ ही हिन्दी प्रशिक्षण की सुविधा भी इंटरनेट के माध्यम से आम आदमी तक पहुंचनी ज़रूरी है. इसके लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करने की ज़रूरत है.

         आज चीन जर्मनी जापान रूस व फ्रांस जैसे देश अपनी अपनी भाषाओं में ही सूचनाओं का आदान प्रदान करते हैं. अपनी ही भाषा में विज्ञान व तकनीकी विकास करते हैं. पर दुर्भाग्य से हमारे देश में हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल सका है जो उसे मिलना चाहिए था. क्या चीन, जापान, जर्मनी फ्रांस व खुद इंग्लैंड आदि देशों में वहां की राष्ट्र भाषाओं के अलावा और भी कई भाषाएं नहीं बोली जातीं ? मगर इन देशों नें सुविधा के लिए एक सर्वसम्मत भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में चुना. एक भाषा चुनते ही आगे का रास्ता आसान हो गया.

       लेकिन भाषा जैसे मसले पर ही जब हम राजनीति करने लगेंगे तो एक मज़बूत भारत कैसे बन पाएगा ?

           इस लेख का उद्देश्य यह बताना है कि हिन्दी के जिस अंतर्जालीय स्वरूप की हम कामना करते हैं, वह धीरे धीरे ही सही, किंतु आकार ग्रहण करता जा रहा है. आज इंटरनेट पर हिन्दी की सैकड़ों वेब साइटें मौजूद हैं. और दिन प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है.

         यह बहुत सुखद स्थिति है तथा एक मज़बूत भारत के निर्माण की पहली जरूरत भी. वह दिन बहुत दूर नहीं जब इंटरनेट पर हिन्दी की हजारों नहीं, लाखों वेबसाइटें उपलब्ध होंगी. दुर्गम गांव में बैठा एक मामूली पढ़ा लिखा  आदमी भी इंटरनेट के द्वारा किसी भी विषय की जानकारी हिन्दी में पा सकेगा.

गूगल के सीईओ एरिक स्मिथ ने 2005 में कहा था कि "आज से पांच-दस साल बाद हिन्दी इंटरनेट की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होगी". 

           उनके कहने के तीन साल में ही यह भविष्यवाणी संभावना में बदलने लगी है. आज गूगल में "हिन्दी" शब्द की खोज करते ही आपके सामने 17 करोड़ परिणाम हाजिर हो जाते हैं. यानी 17 करोड़ बार गूगल के डाटाबेस में हिन्दी शब्द मौजूद है. अगर यही hindi आप अंग्रेजी में लिखकर खोजते हैं तो परिणाम 75 करोड़ तीस लाख आता है. देर से ही सही लेकिन हिन्दी का वर्चस्व इंटरनेट पर बढ़ने लगा है. प्रगति दहाई, सैकड़ा में नहीं बल्कि हजार में है. यानी अगर आप इंटरनेट पर हिन्दी के ग्रोथ को पैमाना बनाएं तो यह दूसरी किसी भी भाषा से ज्यादा तेजी से इंटरनेट पर विकसित हो रही है.

          विकास के दूसरे तरीके यहां इंटनेट पर लागू नहीं होते. मसलन और किसी मीडिया की विधा में सर्विस प्रोवाइडर तय करता है कि भाषा में सक्रियता का स्तर कैसा रखना है. लेकिन यहां इंटरनेट पर इसके उलट है. यहां प्रयोक्ता (user) तय करता है कि किस भाषा का वर्चस्व नेट पर कायम रहेगा. फिलहाल इस मामले में अंग्रेजी और (मंदारिन) चाईनीज का वर्चस्व है. इन दो भाषाओं में ही सबसे ज्यादा सर्विस प्रोवाईडर काम कर रहे हैं क्योंकि सबसे ज्यादा यूजर इन्हीं दो भाषाओं में सक्रिय हैं. 

         हिन्दी के प्रयोक्ता  जिस तेजी से बढ़ रहे हैं उससे इस बात की संभावना प्रबल हो रही है कि एरिक स्मिथ की भविष्यवाणी तय समय में पूरी हो जाएगी. एरिक स्मिथ की मानें तो 2015 तक इंटरनेट पर हिन्दी तीसरी सबसे बड़ी भाषा होगी. तब जो होगा उसके लिए आज क्या तैयारियां की जा रही हैं आइये उस पर एक नजर डालते हैं. साथ ही यह भी देखने की कोशिश करते हैं कि भविष्य में इंटरनेट पर हिन्दी अगर नेट की तीसरी भाषा होगी तो उसके मूल में कौन सी बाते हैं.

अब आया यूनिकोड 5.1

              एरिक स्मिथ ने केवल भविष्यवाणी ही नहीं की बल्कि उन्होंने इस पर अमल करते हुए गूगल का सारा डाटाबेस यूनिकोड में बदला. यूनिकोड में डाटाबेस होने से भाषाओं का दायरा बढ़ा और पहली बार ईमेल और ब्लागलेखन में वे भाषाएं प्रयुक्त होने लगी जिनमे  प्रयोक्ता अभी तक मजबूरी में रोमन लिपि  के सहारे अपना काम चला रहे थे. थोड़े टालमटोल के बाद याहू( Yahoo)  ने तेजी से काम किया और अपना डाटाबेस यूनिकोड में परिवर्तित किया. इसके बाद  माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) का लाईव सर्च इंजन भी यूनिकोड के भरोसे हो गया और दुनिया के पहले  सर्च इंजन अल्टाविस्टा ने भी यूनिकोड को मान्यता दे दी. आस्क (Asc) जैसे सीमित सर्च इंजनों ने भी अपना डाटाबेस यूनिकोड में बदला है और यूनिकोड में मानकीकृत भाषाओं के सर्च को सपोर्ट कर रहे हैं. इंटरनेट पर यूनिकोड आधिरत डाटाबेस तेजी से बढ़ रहा हैं. 

         सर्च इंजनों के इस सहयोग के कारण इंटरनेट पर तेजी से हिन्दी के प्रयोक्ता भी बढ़े हैं और सर्विस प्रोवाईडर भी. लेकिन गूगल ने  यूनिकोड 5.1 को स्वीकार कर लिया है. 

            यूनिकोड 5.1 यूनिकोड कन्सोर्टियम का नया आविष्कार है जो वर्णमाला के जटिल शब्दों को भी अपने में समेटे हुए है. साथ ही अब तक यूनिकोड फॉंट  में जो कुछ समस्याएं आ रही थीं उनको भी इसमें दूर करने की कोशिश की गयी है. भारत सरकार लगातार यूनिकोड कन्सोर्टियम को यह कह रहा था कि यूनिकोड में उन शब्दों को भी शामिल किया जाए जो वेदों, उपनिषदों और पुराणों में प्रयुक्त होते थे. इसकी पूरी लिस्ट यूनिकोड कन्सोर्टियम को दी गयी थी. यूनिकोड 5.1 में उन शब्दों को शामिल कर लिया गया है.

हिन्दी भाषा या देवनागरी लिपि ?

                    एरिक स्मिथ के बयान को सही मानते समय हमें केवल हिन्दी भाषा के बारे में नहीं सोचना चाहिए. असल में हिन्दी में जिस भाषाई विकास की बात की जा रही है वह देवनागरी लिपि  का का विकास होगा. अब अगर देवनागरी लिपि  को देखें तो आज वर्तमान में हिन्दी सबसे ज्यादा लोगों द्वारा प्रयुक्त की जानेवाली भाषा जरूर है लेकिन ऐसे लोग इंटरनेट पर नहीं है जो खालिस हिन्दी को महत्व देते हों. ऐसे लोग तो खैर इंटरनेट की दुनिया में आये ही नहीं हैं जो हिन्दी के अलावा कोई और भाषा नहीं जानते इसलिए मजबूरी में हिन्दी के अलावा कोई और भाषा प्रयोग ही नहीं करते. इंटरनेट पर देवनागरी लिपि  का विकास तेजी से हो रहा है. इस लिपि  विकास में जो अन्य भाषाएं तेजी से इंटरनेट पर अपना पांव पसार रही हैं उनमें नेपाली और मराठी भी हैं. 

                   पता नहीं इंटरनेट प्रयोग करनेवाले कितने हिन्दीभाषी नेट पर इस लिपि  विकास और भाषाई विकास का अंतर समझ पा रहे हैं लेकिन अब देवनागरी लिपि  में खोज परिणामों में आपको नेपाली और मराठी के परिणाम भी दिखाई देते हैं. फिर भी ऐसा नहीं मान सकते कि यह इति है. असल में यह शुरूआत है. यहां से बात शुरू होती है. आनेवाले समय में देवनागरी लिपि  में लिखी जाने वाली ऐसी कई बोलियां भी इंटरनेट पर होंगी जिन्हें अभी हम तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया में जगह नहीं देते. 

              आज हिन्दी के नाम पर हम जिस बोली का इस्तेमाल करते हैं वह खड़ी बोली है. लेकिन इस खड़ी बोली का विकास बहुत सी उपबोलियों से मिलकर होता है लेकिन जब मीडिया के लिए भाषा तय करते हैं तो खड़ी-बोली और अंग्रेजी का गठजोड़ करते हैं. अगर यह गठजोड़ खड़ी बोली और स्थानीय बोलियों का हो तो सही मायने में हिन्दी संपर्क की ऐसी भाषा होगी जिसकी जड़ें बोलियों के माध्यम से हमारी अपनी माटी की ओर जाती है. मुख्यधारा की मीडिया ने यह प्रयोग नहीं किया लेकिन नया मीडिया यह सेतु बनाने में कामयाब होगा. 

            एक जैसी शब्दावली के कारण न केवल हिन्दी भाषा बल्कि देवनागरी लिपि  के कारण बोलियां भी इंटरनेट की मुख्यधारा में होगी. आनेवाले समय में इस संभावना पर बहुत काम करने की जरूरत होगी. यह न केवल हिन्दी के भविष्य के लिए बहुत सुनहरा मौका है बल्कि जो लोग हिन्दी को अंग्रेजी का कचरा संस्करण मानते हैं उनको भी नये सिरे से सोचने के लिए मजबूर करती है कि क्या ऐसा कोई गठजोड़ बनाया जा सकता है. 

          अभी यह सब होने में वक्त लगेगा. इसकी झलक पानी हो तो आप ऐसे समझिए कि मैंने गूगल में सेक्सी वेबसाइट शब्द को सर्च किया. मुझे जो पहला परिणाम मिला वह मराठी की वेबसाइट है. है न कमाल की बात.

Share on Google Plus

डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें