गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

नए वर्ष 2017 के शुभागमन पर



प्रथम जनवरी सत्रह को जो सूर्य उगा है ।  

आशाओं की स्वर्णिम किरणों से वह रंगा हुआ है

वह साधारण सूर्य नहीं वह दिव्य पुंज है

साठ वर्ष के इंतज़ार का मीठा फल है

देर हुई,  होनी ही थी,  होती रहती है

देर देर ही रही,  नहीं अंधेर हुई

हाड़ कंपाती पौष माघ की लम्बी काली रातें

काला बाजारी, काला धन और काला मन

खत्म हो गए सभी नए सूरज  के आते




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