जिस तरफ भी देखिये बीमार पीले चेहरे ।
इस शहर में पेय जल सुविधा नहीं है ॥
जहां भी देखिये केवल मुखौटे दीखते हैं ।
यहां हर शख्श असली चेहरा ढांपे हुए है
॥
पराया मुंह लगा कर बोलते पाया उसे ।
वो दुनियां भी पराई आंख से ही देखता है ॥
कयामत भी अगर आ जाए तो शरमाएगी ।
ये कैसे दौर से हमको गुजरना पड़ रहा है ॥
पुलों
को तोडना फिर जोड़ना है शौक उनका ।
हमारी जान
का यह शौक दुश्मन हो गया है ॥
तोड़ने और जोड़ने के इस सियासी खेल में ।
शहर में जलजले का खौफ पैदा हो गया है ॥
क्या कोई बीमा करेगा उस फसल का ।
जिसे खूंखार सांड़ों का बड़ा गुट चर रहा है ॥
बताते हैं यहां कल तक इबादत भी हुई थी
मगर अब ये लुटेरों का ठिकाना हो गया है ॥
सड़क पर दूर तक फैला हुआ ताजा लहू ।
भरोसे के तड़पते जिस्म से निकला हुआ है ॥
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