सुबह
का सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नही था . हमने देखा किसी परकटे परिंदे की तरह
फड़फड़ाते मिर्जा सीधे बेड रूम मे घुसे आ रहे हैं. आते ही हमारे हाथ मे थमी चाय की प्याली जबरन यों
हथियाई मानो तलवे मे घुसा नागफनी का कांटा खींच रहे हों. एक ही सांस मे प्याला
खाली कर मेज पर पटका और हांफते हुए गुर्राए “ लाहौल विला कुव्वत ! अमां यहां जान पर बनी है और पड़ोसी चुस्कियां सुड़क रहे हैं
?
हमने कहा- इतने
बेताब क्यों हुए जा रहे हैं मिर्जा ? तुम्हारी
जान आसानी से नही निकलने वाली . अब बको भी सही, क्यों मचा
रक्खी है ये हाय तौबा ?
मिर्जा ने झट
से पानदान खोला . दो गिलौरियां बांए कल्ले मे तो दो दांएं कल्ले
मे रसीद कीं. कुछ देर उन्हें बेरहमी से
कुचलने के बाद बोले- अरे वो तुम्हारे किरपा बाबा
हैं न जो? हमने टीवी पर उनके प्रोग्राम देखे. भई क्या पहुंचे
हुए फकीर हैं! दुनिया जहान के जाने कितने
नसीब के मारे उन्होने अब तक ठिकाने लगा दिए होंगे ? नुस्खे
भी क्या गजब सुझाते हैं ! दिल बाग बाग हो जाता है . बस्स. अब और नहीं रुका जाता.
बेमुरव्वत, कमबखत , पड़ौसी के नाम पर
बदनुमा धब्बे, अरे जितनी जल्दी हो सके हमे किरपा बाबा से
मिलवा . जिस किसी जलनखोर ने हमारे कुनबे पर कुछ करा धरा है किरपा बाबा उसे जड़ समेत
उखाड़ फेंकेंगे.
मिर्जा को हांफते
देख हमे तरस आ गया, फिर भी उन्हे समझाने
की बेकार सी कोशिश करते हुए हमने कहा ,
‘ मियां मेरी मानो तो इन
बाबाओं के चक्कर मे मत पड़ो. खटमल हैं.
चूस कर छोड़ देंगे.
मगर मिर्जा कब
मानने वाले थे ?उन पर तो जैसे खून सवार था. मेज पर पूरी
ताकत से घूंसा जड़ते हुए चीखे, ‘नहीं ! किरपा बाबा से हमारी
फौरी मुलाकात बेहद ज़रूरी है. माफ कीजिए अपनी दो कौड़ी की सलाह किसी अकल के अंधे के
लिए महफूज़ रक्खें. हमें तो तुम्हारा खाली वक्त चाहिए जो खुशकिस्मती से फालतू है.
हमने टालने के एक
और बेकार कोशिश करते हुए पांसा फेंका,’ मिर्जा
जरा सोचो एक शख्श जो कोयले की दलाली न कर सका, किराने की
दुकान न चला सका जो ठेकेदारी मे बुरी तरह नाकामयाब रहा, कुल
मिला कर लब्बो लुबाब ये है कि जो खुद अपनी मदद
न कर सका हो वो तुम्हारी खाक मदद
करेगा ?
पर मिर्जा कान देने
को तैयार न थे . बात पूरी होने से पहले ही गुर्राए, ‘ अमां
ये तुकबंदी सुनाना जा कर मुल्ला नसरुद्दीन के जाहिल गधे को हां ! सारा मुल्क आज
किरपा बाबा का मुरीद है. भूला भटका जो भी उनके दर पर गया खाली नहीं लौटा. बाबा की
रूहानी ताकतें, हमारे उजड़े चमन मे बहारें ले आएं तो तुम्हारा
क्या चला जाएगा हैं ?
अब हम समझ चुके थे
कि मरदूद मिर्जा हमारी छुट्टी का बैंड बजाए बगैर नहीं मानेगा. हार कर झख मार कर
किरपा बाबा के पीएस को फोन घुमाया . जवाब मिला – पहले आश्रम जाकर रजिस्ट्रेशन
कराइए.
मरता क्या न करता.
शहर के मशहूर आलीशान होटल पहुंचे , जिसे हाल
ही मे बाबा ने खरीद कर आश्रम नाम दिया था.
नसीब के मारों की वहां काफी भीड़ इकट्ठा
थी. हर कोई दो दो हजार की रसीदें कटवाने के लिए लंबी लंबी कतारों मे लगा था. रुपयों का नाम सुनकर पहले तो मिर्जा के कान खड़े हुए. फिर कुछ सोच कर शेरवानी
की सुरंगनुमा तंग जेब मे हाथ डाला. लॉकडाउन मे अरसे से पड़े मुड़े तुड़े नोटों को धूप दिखाई. फिर मुस्करा कर गोल चश्मों से
झांकते हुए हमें यूं घूरा जैसे बता रहे हों स्थित तनावपूर्ण जरूर है मगर नियंत्रण मे है.
जैसे तैसे
रजिस्ट्रेशन निपटा. हमे कहा गया कि ठीक दस
बजे किरपा बाबा के दरबार पहुंच जाएं. और हां. जो सवाल पूछना है पहले आश्रम
के पूछ्ताछ वाले कमरे मे लिखवा लें ताकि एन वक्त पर जिन्नातों को परेशानी न हो.
बहर हाल,
सवाल भी लिखवा दिये
गए.
रात भर मिर्जा सो न सके. दिन निकलते ही सीधे
दरबार का रुख किया. खुद जाते तो कोई बात न थी. मगर हमें भी साथ चलने का फरमान सुना
दिया. मन मार कर दफ्तर से छुट्टी ली कि तबीयत बेहद नासाज है. आ नहीं पाएंगे. मन ही
मन गुस्से को दबाए मिर्जा को लेकर दरबार पहुंचे.
दरबार हॉल खचाखच
भरा था. सामने बेशकीमती पर सोफे पर बेफिक्री से पसरे बाबा मंद मंद मुस्करा रहे थे
और हर नए आने वाले का सलाम कुबूल कर रहे थे. फूलझाड़ू नुमा पकी सफेद मूछें होंठों
के दोनो तरफ तराजू सी लटकी थीं. चेहरे से टपकती मक्कार मुस्कराहट ठीक वैसी ही थी
जैसी अपनी लहलहाती फसल देख कर किसान के चेहरे पर आ जाया करती है.
आखिर मिर्जा का नाम
पुकारा गया. झुकी कमर थाम कर मिर्जा सज़दे मे खड़े हुए. दाएं हाथ से कई बार आदाब
अर्ज किया. फिर संभल कर मिमियाए- बाबा जी कोटि कोटि आदाब ! मै हालात का मारा,
बेबस मिर्जा आपकी खिदमत मे अर्ज़ी पेश करता हूं. अर्ज़ ये है कि पांच
जवान बेटियां निकाह के इंतजार मे अरसे से सजी बैठी हैं, मन
माफिक शौहर नही टकरते. तीन जवान लौंडे एम ए करके सड़कों की धूल फांक रहे हैं. कहीं
नौकरी नही मिलती. मैं खुद कचहरी मे अर्जीनवीस हूं, मेरे टाइप
राइटर की तरफ अब कुत्ता भी टांग नहीं
उठाता. सब कंप्यूटर की तरफ भागते हैं. कहां पहले शाम तक तीन चार सौ सीधे कर लेता
था कहां अब सौ पचास के लिए भी एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है. जबकि मेरा अंगूठाटेक
पड़ौसी मुकद्दर अली खतने की बदौलत रोज पांच सात सौ झटक लेता है. नाउम्मीद हो गया हूं. आपकी किरपा हो जाए तो
अंधेरा छंटे.
किरपा बाबा
मुस्कराए. झाड़ू सी झूलती मूछों के नीचे मुस्कराहट का उजाला फैलने लगा. दोनो हाथों
की उंगलियों को आपस मे फंसाते हुए बोले, ‘ये
टिक्की छोले आ रहे हैं मिर्जा. पिछली बार कब खाए थे टिक्की छोले और कितने खाए थे’
?
मिर्जा के मुंह मे
पानी भर आया. ख्वाबों की दुनिया से किसी तरह बाहर आ कर बोले,’
बाबा जी डाक्टर कहते हैं ज्यादा मिर्च मसाले
और तला भुना मत खाना वरना पछताना पड़ेगा. तुम्हारे पेट मे अल्सर है.
बाबा कुछ यूं
मुस्कराए मानो जिन्नातों और रूहों के साथ गुफ्तगू करके मिर्जा के फ्यूचर पर कोई
डिसीजन ले रहे हों. फिर ठहर कर बोले, मिर्जा
यहां से बाहर निकल कर सीधे हाथ पर टिक्की छोले की दुकान है. जितने टिक्की छोले खा
सको, खा जाओ. आज से सभी घरवाले महीने भर तक सिर्फ टिक्की
छोले खाओ. इस बीच कोई दूसरी चीज़ मत खा लेना. एक बात और ! अपना बटुआ हमेशा खोल कर
रखना. इससे क्या होगा कि बटुए मे किरपा बरसेगी. जब बटुए मे धुंआधार किरपा बरसनी
शुरू हो जाए तो उस किरपा का दसवां हिस्सा हमारे बैंक खाते मे हमेशा जमा कराते
रहना. किरपा की बरसात होती रहेगी. कभी नही
थमेगी.
हाथ जोड़े मिर्जा
किरपा बाबा के आशीर्वचनों की बरसात मे सराबोर हो गए. कुछ बोल न सके. बस सहमति मे
गरदन हिलाते रहे. उन्हें सारी दिक्कतों का आसान सा हल मिल चुका था.
तभी दूसरा फरियादी
उठ खड़ा हुआ. हमने मिर्जा की शेरवानी खींची. मिर्जा समझदार थे. सीधे वहीं बैठ गए जहां
से उठे थे. फिर उनकी खड़खड़ाती पथरीली पीठ पर हाथ फेरा,
हौसला बढ़ाया और कान मे धीरे से कहा,’ वाकई
दरबार के सामने दाईं तरफ टिक्की छोले की दुकान है. हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या. अभी चल
कर टिक्की छोले निपटाते हैं. सौदा बेहद सस्ता है. टिक्की छोले खाकर किरपा बरसती है
तो क्या हर्ज है ?
मिर्जा ने सहमति मे
सिर हिलाया. किसी रोबोट की तरह चुपचाप मेरे पीछे आने लगे. दुकान पर पहुंच कर
शेरवानी की गहरी सुरंगनुमा तंग जेब मे हाथ डाला और कुछ टटोलने लगे. अचानक उनके
चेहरे का फ्यूज़ उड़ गया . थोबड़ा हमारी तरफ उठा कर बड़बड़ाए,
किसी ने बटुआ उड़ा लिया.
जी मे तो आया कि
कहें,
तुम्हारा बटुआ ही बचा था उड़ाने को, जिसमे
चवन्नी तक नही मिलती ? पर जी थाम कर चुप रह गए. फिर नकली
मुस्कराहट होठों पर बिखेरते हुए हमने कहा, कोई बात नही
मिर्जा. फिलहाल हमे टिक्की छोले खाने हैं.
हां भई ठेली वाले भइया जरा दो प्लेट टिक्की छोले बनाना. मिर्जा की किस्मत का बंद
पड़ा गेट खोलना है.
मिर्जा के मुंह मे
फिर पानी भरने लगा जिसे वह बार बार घूंटते रहे. एक के बाद दूसरी,
इस तरह मिर्जा सात आठ प्लेट टिक्की छोले चटोर गए गोया आज ही किस्मत
का बंद पड़ा ताला खोलने की जिद पकड़ ली हो. टिक्की छोलों के बाद मिर्जा की चटोरी नजर
चाट, गोलगप्पों और खट्टे मीठे पानी के पतीलों पर जा टिकी.
रूमाल से होंठ पोंछते हुए बादशाही अंदाज़ मे ठेली वाले को हुक्म सुनाया अब गोलगप्पे
और चाट खिलाओ.
मारे गुस्से के
हमारे कानों से धुआं निकलने लगा. जी चाहा कि कह दें बिल तुम्हारे मरहूम अब्बा
भरेंगे मियां? फिर सोचा किसी की बेइज़्ज़ती करना हमारी
फितरत मे नहीं है. बस इतना ही कहा, याद नहीं किरपा बाबा ने क्या कहा था ? महीने भर तक सिवा टिक्की छोले के कुछ नहीं खाना !
मिर्जा खिसियाए, मानो रंगे हाथ चोरी करते धरे गए हों. बोले,
मजबूरी है. मगर महीने बाद आकर पूरा कनस्तर खाली करेंगे.
हमने चलने से पहले
सलाह दी मिर्जा घर के लिए भी बंधवा लें टिक्की छोले?
मिर्जा झेंपते हुए
नजरें झुका कर बोले,
अमां यहां भी खानदानी अमीर हैं कोई फकीर नहीं. नीलामी के
बाद भी खाकसार के झोंपड़े से लाखों का लोहा लंगड़ निकल आएगा हां !
हमने बहस मे उलझना
मुनासिब न समझा और मिर्जा के सभी घरवालों के लिए टिक्की छोले बंधवा लिये.
शाम गए थके हारे घर
पहुंचे .पत्नी पानी पी पी कर मिर्जा को कोस रही थी. वक्त की नजाकत भांपने मे
उस्ताद मिर्जा दबे पांव पतली गली से अपने
घर की तरफ खिसक लिये.
अगली सुबह हमने
देखा हकीम अजमल मियां मुंह अंधेरे अपनी संदूकची उठाए मिर्जा के घर की तरफ लपके जा
रहे हैं. हमने पूछा तो धीरे से कान मे बोले भुक्खड़ मिर्जा ने कल जम कर मुफ्त के
टिक्की छोले उड़ाए हैं. सबर तो ऊपर वाले ने बख्शा ही नहीं. पैर कबर मे हैं मगर जीभ
हद से ज़्यादा चटोरी. पेट तो चलना ही था. जनाब कल रात से पाखाने मे बैठे हैं खून
रुकने का नाम ही नही लेता.
हकीम साहब ने तमाम
तजुर्बे आजमाए. मगर कोई फायदा न हुआ. दोपहर होते न होते मिर्जा की नब्ज डूबने लगी.
आनन फानन मे उन्हे सरकारी अस्पताल मे भर्ती करा दिया गया.
मुहल्ले भर के लोग
मिजाजपुरसी के लिए अस्पताल आ रहे थे. पड़ोस की बात थी. इच्छा न होते हुए भी मरदूद
मिर्जा को देखने जाना पड़ा. मियां आइसीयू
मे आंखें मूंदे चित पड़े थे. डॉक्टर
कह रहा था अल्सर फट गया है. मरीज की हालत बेहद नाजुक है.
प्यारे पड़ोसी की
बेबसी देख हमारा दिल भर आया. हमने कहा, डॉक्टर साहब किसी भी कीमत पर मिर्जा को बचा
लीजिए. जो भी खर्चा होगा हम भुगत लेंगे.
पर डॉक्टरों की
जद्दोजहद के बावजूद मिर्जा को बचाया न जा सका.
जनाजे की भीड़ मे
खोए हम सोच रहे थे – अभी कितने और भक्तों पर बरसेगी बाबा की किरपा ?
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